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ज़्यादातर अख़बार प्रचारक हो गए हैं पर एक डंटा हुआ है

संजय कुमार सिंह-

बांटो और राज करो… मीडिया को भी सफलता पूर्वक बांट दिया गया है। ज्यादातर पत्रकार और अखबार जब प्रचारक बन गए हैं तो एक अखबार डटा हुआ, रोज सवाल कर रहा है। अर्नब के व्हाटऐप्प लीक पर गोदी मीडिया को तो सांप सूंघ गया है।

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राजेश यादव-

अर्णव गोस्वामी की व्हाट्सएप चैट लीक होने से एक बात तो साबित हो गयी कि ये राष्ट्रवादी पत्रकार पुलवामा हमले और 43 जवानों की शहादत से बहुत खुश था। इसने खुश होकर व्हाट्सएप पर लिखा कि अब इस अटैक से हम चुनाव जीतेंगे। सैनिकों की मौत का कहीं कोई दुख नही। इसी की तरह बीजेपी के बाकी समर्थक भी खुश हुए होंगे ! सैनिकों की शहादत में उन्हें उस समय दोबारा सत्ता नजर आने लगी थी।

पुलवामा हमले के समय जो सवाल थे वो आज भी जीवित हैं। आपको याद दिला दूँ कि 14 फरवरी 2019 को पुलवामा में सीआरपीएफ के 43 जवानों से भरी बस को 300 किलो विस्फोटक से भरी एक कार टकरा कर शहीद कर दिया गया था। जैसा कि हमेशा होता आया है,शहीद होने वाले अधिकतर किसानों के बेटे थे।

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एक तयशुदा एजेंडे के तहत जवानों की शहादत के बाद मीडिया चैनलों ने देशभक्ति और राष्ट्रवाद का खूब माहौल बनाया था। 12 दिन बाद एयर स्ट्राइक के गीत गाये गए थे। मुझे अच्छी तरह से याद है कि उस समय और अभी भी किसी चैनल ने इस हमले में सरकार से सवाल नही किये थे कि भारी बर्फबारी के कारण जब बीएसएफ ने केंद्र सरकार से जवानों को वापस भेजने के लिए विमान से हवाई यात्रा की मांग की तो 4 महीने तक गृह मंत्रालय इस मांग वाली फाइल को दबाए क्यों बैठा रहा ? जब सरकार के पास स्पष्ट इंटेलिजेंस इनपुट थे कि कार से विस्फोट करा कर जवानों को निशाना बनाया जा सकता है, फिर भी जवानों को 78 बसों के काफिले में क्यों भेजा गया ? जवानों के मूवमेंट की जानकारी लीक कैसे हुई ? देश मे इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक कहाँ से और कैसे आया ? बसों के काफिले में 5वी बस बुलेट प्रूफ नहीं है ये बात आतंकियों को कैसे पता चली ?

पूरा आतंकी हमला एक सुनियोजित साजिश की ओर इशारा कर रहा था। किसी चैनल की हिम्मत नही थी कि वो प्रधानमंत्री से पूछ सके कि पुलवामा हमले के बाद वो उत्तराखंड में चुनावी रैली को फोन से क्यों सम्बोधित कर रहे थे, उसी शाम जिम कार्बेट नेशनल पार्क में डिस्कवरी चैनल के लिए डॉक्यूमेंट्री वीडियो की शूटिंग क्यो कर रहे थे ? हमले के बाद बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में अनुपस्थित रहकर चुनावी रैलियां क्यों कर रहे थे ?

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कई चैनल तो बाकायदा स्टूडियो में ही वार रूम बनाकर बैठ गए थे। कुछ ने सिंधु नदी का पाकिस्तान की तरफ जाने वाला पानी रोकना शुरू कर दिया था। याद रखिये हमारे देश मे पाकिस्तान के नाम पर ही देशभक्ति जगती है चीन के नाम पर नही। एक योजनाबद्ध तरीके से न्यूज चैनलों के माध्यम से लोगों के गुस्से को उभारा गया था, ताकि राष्ट्रवाद की ठेकेदार पार्टी के पक्ष में चुनावी माहौल बना सकें। हमले के फौरन बाद दनादन चुनावी रैलियों में जवानों की शहादत और एयर स्ट्राइक को जमकर भुनाया गया। व्हाट्सएप ज्ञानियों के दिमाग मे तो पहले से ही भरा जा चुका था कि आतंकवादी सेना को मारे तो पाकिस्तान जिम्मेदार होता है और सेना आतंकियों को मारे तो क्रेडिट मोदी को देना है।

आपको ये भी याद दिला दूँ, कि सीआरपीएफ या फिर किसी अन्य पैरामिलिट्री फोर्स का जवान अगर किसी हमले में शहीद होता है तो उसको शहीद का दर्जा नहीं दिया जाता है, जो दर्जा सेना के जवान को मिलता है। सरकार ने शहीद जवानों को जो मुआवजा राशि व अन्य सुविधाएं देने की घोषणा की थी वो अभी तक उनके परिजनों को नही मिल सकी हैं। आज लगभग 2 साल बाद भी NIA ये पता नही लगा पाई है कि पुलवामा में विस्फोटक कहां से आया ? सनद रहे अपने साथ 2 ईनामी आतंकियों को दिल्ली लाने वाला जम्मू कश्मीर का डीएसपी दविंदर सिंह रैना उस समय पुलवामा में ही तैनात था।

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कुल मिलाकर ये जान लीजिए, न पुलवामा हमला होता तो न ही हमारी वायुसेना बालाकोट पर एयर स्ट्राइक करती और न ही राष्ट्रवाद की लहर के चलते सत्तारूढ़ पार्टी को इसका भारी चुनावी लाभ मिलता। हमारे लिए जवानों की शहादत नमन करने योग्य है लेकिन उनके लिए फायदे का सौदा साबित हुई। इसमें दुनिया मे विश्वनीयता के मापदंड पर 142वें स्थान वाली भारतीय मीडिया का बहुत बड़ा रोल था। इतिहास इस बात को भी याद रखेगा !

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