तब पुलवामा हो चुका था अब सिंधिया को हराने वाले केपी यादव के योगदान का उपयोग भी देखना है, दिल्ली में सिर्फ मनोज तिवारी के जीतने का भरोसा, अखबारों का इसपर आंख मूंदना बहुत कुछ कहता है
संजय कुमार सिंह
आज मेरे सभी अखबारों में भाजपा के टिकट वितरण की खबर लीड है। 2019 के मुकाबले यह कुछ जल्दी है पर इसका मकसद चुनावी तैयारियों में खुद को कांग्रेस से आगे दिखाना हो सकता है। प्रचारकों ने इसीलिए इसे लीड बनाया होगा वरना द टेलीग्राफ में यह खबर लीड तो छोड़िये पहले पन्ने पर ही नहीं है। यहां इस खबर को बांसुरी स्वराज को पहली बार चुनाव लड़ने का टिकट दिये जाने और शिवराज सिंह को लोकसभा में लाने के प्रयासों का जिक्र है। आप जानते हैं कि ये दोनों तथ्य भाजपा की राजनीति के लिहाज से क्या संदेश देते हैं। वंशवाद की राजनीति का विरोध करना प्रधानमंत्री का प्रिय शौक है और और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज की अधिवक्ता बेटी को नई दिल्ली से चुनाव लड़ाना दो करोड़ रोजगार दिलाने के वादे का हिस्सा तो नहीं ही हो सकता है। इस चक्कर में जो खबरें पहले पन्ने पर छपने से रह गई हैं उनमें प्रमुख हैं –
1. पाकिस्तान जा रहा चीनी ‘न्यूक्लियर’ कार्गो जब्त हुआ। कराची भेजा जा रहा ‘दोहरे उपयोग’ वाला कनसाइनमेंट मुंबई में 22 जनवरी को पकड़ा गया था। इसमें की मशीनों का उपयोग न्यूक्लियर हथियारों के कार्यक्रम में किया जा सकता है। कहने की जरूरत नहीं है कि यह खबर पुरानी भले है, चीन और पाकिस्तान से संबंधित होने के कारण महत्वपूर्ण है। यह जानकारी इतने समय तक छिपी रही यह भी खबर है। हिन्दुस्तान टाइम्स में भी आज यह खबर है लेकिन सिंगल कॉलम में। द हिन्दू ने आज इसे पहले पन्ने पर लीड बनाया है।
2. दस साल के कार्यकाल के अंतिम समय में किये जा रहे सरकारी कामों में एक काम की खबर भी आज के अखबारों में पहले पन्ने पर है। इंडियन एक्सप्रेस ने इसे लीड के बराबर में टॉप पर छापा है, नवोदय टाइम्स में यह बॉटम है और हिन्दुस्तान टाइम्स में सिंगल कॉलम। खबर का शीर्षक है, केंद्र सरकार ने आदिवासी अधिकारों के लिए त्रिपुरा सरकार और तिपरा मोथा के साथ करार किया।
3. आज द टेलीग्राफ की लीड भी अलग है। ममता, मोहुआ पर मोदी मौन। भाजपा में परेशानी, (महुआ) मोइत्रा खुश। इसके मुकाबले हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर का शीर्षक है, “प्रधानमंत्री ने नाडिया में कहा, टीएमसी स्कीम्स को स्कैम्स में बदल रही है।” विपक्षी दलों पर आरोप लगाने की प्रधानमंत्री की आदत 10 साल प्रधानमंत्री रह लेने के बाद भी नहीं जा रही है। विपक्षी नेता ऐसे आरोप लगाये तो उसका मतलब होता है कि वह सत्ता में आयेगा तो जांच होगी, कार्रवाई करेगा। पर 10 साल सत्ता में रहने के बाद ऐसी खबरें पढ़कर सवाल उठता है कि आप क्या कर रहे हैं या 10 साल क्या किया? यह सवाल अखबारों को पूछना चाहिये और पाठकों को जवाब बताना चाहिये पर अखबार यह सब नहीं करते हैं और प्रधानमंत्री एक तरफा मन की बात करते जा रहे हैं। इसमें दिलचस्प यह भी है कि महुआ मोइत्रा के खिलाफ कार्रवाई हुई है तो वह आरोप नहीं लगा रहे हैं। यही हाल ममता बनर्जी के मामले में है जो टेलीग्राफ ने छापा है।
4. आज की चौथी प्रमुख खबर इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर है और द हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर लीड है। हालांकि, इसके ऊपर कर्तव्य पथ की तस्वीर है जो कल शाम दिल्ली में हल्की बारिश के बाद का दृश्य है। यह झारखंड में एक स्पैनिश पर्यटक के साथ सात लोगों द्वारा सामूहिक बलात्कार की खबर है। 30 साल की यह महिला अपने 64 साल के पति के साथ मोटर साइकिल पर दक्षिण एशिया का दौरा कर रही है। मुझे लगता है कि डबल इंजन वाली सरकार के राज में अगर बलात्कार के मामले आम हों तो विपक्षी दल की सरकार में बलात्कार का कारण मुख्यमंत्री को अस्थिर करने की कोशिशें भी हो सकती हैं। लेकिन इसपर चर्चा और विश्लेषण कौन करे?
इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी इस खबर के दूसरे पन्ने वाले हिस्से में लिखा है, …. मीडिया से बात करते हुए भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने कहा, झारखंड में न तो आदिवासी और ना दलित सुरक्षित हैं। यह बात झारखंड भाजपा के आदिवासी प्रदेश अध्यक्ष बाबू लाल मरांडी कहते तो आदिवासी हित की बात होती। आदिवासी मुख्यमंत्री को जब जबरन गिरफ्तार कर सत्ताच्युत किया जा चुका है तो दुबे जी का बोलना मायने रखता है। इसमें मुख्यमंत्री से उनकी अपील भी है और उसके मायने हैं तभी इंडियन एक्सप्रेस ने प्रकाशित किया है।
कहने की जरूरत नहीं है कि अखबारों का रुख अगर सरकार की खबर लेने वाला होता तो सरकार के पास जवाब ही नहीं है। और तो और विपक्ष पर आरोप भी नहीं है और ना ही जिन माममों में कार्रवाई हुई या कराई है उनका विवरण जारी करने की क्षमता। इसीलिए 10 साल शासन के बाद सरकार न तो अपने काम गिनाकर उसपर वोट मांगने की स्थिति में है और न कार्यकाल में जो हुआ उसपर श्वेत पत्र लाने की हिम्मत। उल्टे जनता को धोखा देने के लिए 10 साल पहले की सरकार के कार्यकाल पर श्वेत पत्र लाया गया। ऐसे में भाजपा 400 से ज्यादा सीटें कहां से लायेगी यह भी मीडिया के देखने-बताने लायक मुद्दा नहीं है। आग के समय में यह जानने-समझने की बात होगी और इसमें अखबारों का समर्थन तथा प्रचार तो दिलचस्प होगा ही भले ही। एक देश एक चुनाव का नारा लगाने वाली सरकार राज्यसभा के सदस्यों को लोकसभा चुनाव लड़ाये और राज्यसभा के मनोनीत सदस्यों के मामले में उनके हार जाने पर बाकी अवधि के लिए दोबारा मनोनीत करवा दे तो यह विचित्र राजनीति है पर खबर नहीं है। क्यों, वह आप जानते हैं।
जहां तक टिकट बंटवारे की बात है, सूची से साफ है कि 2019 में प्रज्ञा सिंह ठाकुर को जिता लेने का भरोसा था और आतंवाद की वारदात में आरोपी होने के बावजूद उन्हें टिकट दिया गया और जनता ने उन्हें चुना। फिर भी उनका नाम इस बार टिकट पाने वालों में नहीं है और मुख्यमंत्री पद से हटा दिये गये शिवराज सिंह चौहान की दिल्ली लाने की जरूरत महसूस की गई है। ऐसा तब है जब राज्य के केंद्रीय मंत्रियों को विधायक बना दिया गया है और कांग्रेस से भाजपा में शामिल, पिछले चुनाव में लोकसभा का चुनाव हार चुके, ईनाम में राज्य सभा सदस्य बन चुके ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी लोक सभा का चुनाव लड़ाया जा रहा है। पिछली बार भाजपा टिकट पर सिंधिया को हराने वाले को मंत्री नहीं बनाया गया था।
आपको याद दिला दूं कि केपी यादव कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे और उस समय कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया को बड़े अंतर से चुनाव हराया था। सिंधिया 2014 का चुनाव एक लाख 20 हजार 792 वोटों से जीते थे जबकि 2019 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में भाजपा उम्मीदवार डॉ. केपी यादव से एक लाख 25 हजार 549 वोटों से हार गये थे। दल बदल के बाद सिंधिया न सिर्फ केंद्र में मंत्री बने बल्कि राज्यसभा के सदस्य भी बनाये गये। ऐसे में कहा तो यह भी जाता है कि 2019 में भाजपा की जीत पुलवामा के कारण थी। इस बार पुलवामा जैसा कुछ अभी तक नहीं है जबकि पिछली बार 14 फरवरी को पुलवामा हो चुका था तो इस बार केपी यादव को उम्मीदवार नहीं बनाने का क्या हश्र होगा उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि उन्हें दूध की मक्खी की तरह अलग रखने का क्या मतलब लगाया जाये। पार्टी के दूसरे कार्यकर्ताओं नेताओं पर इसका क्या असर होगा?
टिकट बांटने की यह रणनीति या प्राथमिकता भाजपा के 400 पार के दावों की पोल खोलती है। दिल्ली में मामला और साफ है। भरोसा तो मनोज तिवारी की अपनी कलाकारी और लोकप्रियता पर ही दिखी बाकी को तो छोड़ ही दिया गया है। ऐसे में 400 पार होगा कैसे? बेशक इसके लिए पवन सिंह जैसे उम्मीदवार हैं। आसनसोल में उनका मुकाबला टीएमसी के शत्रुघ्न सिन्हा से हो सकता है। उस बारे में देखिये अखबार क्या बताते हैं। इंतजार रहेगा।
आज हिन्दुस्तान टाइम्स में एक खबर है जो गुजरात में 29 जगहों पर ईडी के छापों के बारे में है। ये छापे भारतीय नागरिकों को अवैध रूप से विदेश भेजे जाने के सिलसिले में हैं और ऐसा नहीं है कि यह काम कोई नया है या अभी ही शुरू हुआ है। हाल में ऐसे यात्रियों से भरा एक विमान अपने गंतव्य पर पहुंचने से पहले विदेश से वापस कर दिया गया था। तब अखबारों में इसपर सन्नाटा रहा और अब अगर कार्रवाई उसी कारण या सिलसिले में है तो सवाल है कि यह धंधा 10 साल कैसे चलता रहा या क्यों चलने दिया गया। आप जानते हैं कि केंद्र की भाजपा सरकार ईडी का उपयोग विपक्षी नेताओं को काबू करने के लिए करती रही है। अब अगर ईडी के छापे गुजरात में पड़ रहे हैं तो जाहिर है, यह ईमानदार दिखने-दिखाने का प्रयास है जो पहले नहीं किया गया या जिसकी जरूरत नहीं समझी गई। अब प्रचार ही है क्योंकि विदेशी चंदा या दान के मामले में तो कार्रवाई हुई है लेकिन लोगों को अवैध रूप से विदेश भेजने पर कार्रवाई की खबर अब छप रही है।