संजय कुमार सिंह-
इंडिया समूह में सीटों के बंटवारे पर समझौते की खबरें दूसरे अखबारों में अलग-अलग छोटी सी
आज के मेरे अखबारों में सबसे दिलचस्प लीड अमर उजाला की है। लीड का शीर्षक है, राम मंदिर निर्माण के बाद भी खत्म नहीं हो रही नकारात्मक लोगों की नफरत : मोदी। कहने की जरूरत नहीं है कि राम मंदिर निर्माण कोई मानक पैमाना या रामबाण औषधि नहीं है कि उससे नकारात्मक लोगों की नफरत दूर हो जाये। खुद से नफरत करने वालों को कोई नकारात्मक कहे यह उसका अधिकार या विवेक हो सकता है पर यह नफरत खत्म करने का तरीका नहीं सकता है। वैसे भी, जो नकारात्मक है उसका नफरत खत्म करने की कोशिश या चाहत ही क्यों होनी चाहिये। जाहिर है, चुनाव जीतने की हार्दिक अभिलाषा। नरेन्द्र मोदी तीसरी बार चुनाव जीत कर प्रधानमंत्री बनना चाहें इसमें कुछ अनुचित नहीं भी हो तो उनकी इस चाहत का समर्थन करने के लिए पर्याप्त आधार जरूरी है। आम लोग इसके बिना समर्थन करें या वोट दें, यह तो समझ में आता है लेकिन कोई अखबार सांस्थानिक रूप से या कोई पत्रकार निजी रूप से समर्थन करे तो उससे सवाल किये जाने चाहिये। खास कर तब जब सवाल करने की परंपरा खत्म करने की कोशिश चल रही है और विरोध को हर संभव तरीके से कुचला जा रहा है और इसका भी विरोध नहीं है। उसका भी समर्थन हो रहा है।
नरेन्द्र मोदी ने झुंझलाहट में कहा हो या अपना ईनाम बताने के लिए, खबर जरूर है और मेरा मानना है कि संपादकीय विवेक इसे लीड के योग्य माने तो बनाया जा सकता है। पहले पन्ने पर पांच कॉलम में छापा जा सकता है। लेकिन इसके साथ ही खबर हो कि सरकार ने किसानों का समर्थन करने वाले ज्यादातर ट्वीटर हैंडल को ब्लॉक करने के लिए कहा है तो उसे भी छापा जाना चाहिये। ऐसा नहीं है कि सरकार को अधिकार है कि वह ऐसा करे और ऐसा किया गया है तो खबर नहीं है। कायदे से सरकार को अगर किसी ट्वीटर हैंडल से दिक्कत है तो उसके खिलाफ उस दिक्कत के कारण कार्रवाई की जानी चाहिये। जैसे फलां ट्वीट गलत है, झूठ है, अपमानजनक है, सांप्रदायिकता फैलाने वाला है आदि। पर सरकार ऐसा नहीं करती है और सरकार के समर्थक ऐसा करें तो उनके खिलाफ कार्रवाई करने वाली एजेंसियों को भी लकवा मार जाता है। मीडिया तो उनकी चर्चा भी नहीं करता है। दूसरी ओर सरकार चाहती है कि विरोध करने वालों को ट्वीटर ही रोक थे। यह उसपर अनावश्यक दबाव डालना है और उसे सामान्य ढंग से काम नहीं करने देने की तरह है।
अमर उजाला ने इस खबर को नहीं छाप कर जनहित की उपेक्षा की है। दूसरी ओर, प्रधानमंत्री की चाहत का अपरोक्ष प्रचार किया है कि मंदिर निर्माण के बाद भी नकारात्मक लोगों की नफरत खत्म नहीं हो रही है। उन्हें खुश होना चाहिये, सरकार का प्रचार करना चाहिये आदि, आदि। यह स्थिति तब है जब प्रधानमंत्री अभी भी कांग्रेस को कोस हे हैं। उनके पास अपना किया बताने के लिए कुछ है नहीं है। अगर मंदिर को विकास मानते हों तो क्या कहा जाये और कर्ज लेकर सड़क बनाना विकास हो तो वह भी ठीक नहीं है और तथ्य यह भी है कि इन सड़कों पर भारी टोल वसूला जा रहा है। मुंबई के नये बने अटल सेतु पर तो यह खर्च प्रति किलोमीटर टैक्सी से चलने के मुकाबले ज्यादा है। टैक्सी से ही चलना हो तो आम सड़क के मुकाबले दूने से ज्यादा खर्च होगा। साफ है कि उन्हें कांग्रेस का विकास पसंद नहीं है तो बहुतों को उनका विकास पसंद नहीं है और अंतर यह है कि कोई कांग्रेसी उनकी तरह ऐसा कहकर प्रचार नहीं पाता है। अखबारों को बताना चाहिये था पर ज्यादातर राजा का बाजा बजाने में व्यस्त हैं। जहां तक सरकार के काम की समीक्षा की बात है, सरकार अपने ही बनाये राज्यपाल पर छापा डलवा रही है।
अमर उजाला में आज उनकी भी खबर है और चूंकि वे नरेन्द्र मोदी के विरोधी हैं इसलिए खबर पहले पन्ने पर है वरना प्रधानमंत्री से पूछा जाना चाहिये कि आपने ऐसे व्यक्ति को राज्यपाल क्यों बनाया था? पहले से ऐसे थे तो आपको पता क्यों नहीं था और पता था तो बनाया क्यों और वाकई बाद में भ्रष्ट हुए तो किस मजबूरी या आजादी में? आप क्या कर रहे थे? उसके लिए आप कैसे जिम्मेदार नहीं हैं? और उन्होंने जो कहा है उसे अमर उजाला ने तो छापा ही नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस ने छापे की खबर को लीड बनाया है और उसके साथ सत्यपाल मलिक का पक्ष भी रखा है। उन्होंने कहा है, इस घोटाले में मैं व्हिसिल ब्लोअर था। छापा आलोचकों को चुप कराने के लिए है। आपको याद होगा कि सत्ता में आने से पहले नरेन्द्र मोदी ने पहले की कांग्रेस सरकार को भ्रष्ट कहा था, बताया था कि विदेश में काला धन रखा है (उसे ले आयेंगे) आदि आदि। पर सत्ता में आने के बाद कांग्रेस के भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई, उल्टे अदालत में मामला साबित नहीं हुआ। 10 साल में किसी कांग्रेसी के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला साबित नहीं हुआ, दल बदलने वालों के खिलाफ तो कार्रवाई-जांच भी नहीं हुई।
पी चिदंबरम के खिलाफ जो मामला था वह जेल से छूटने या जमानत के बाद चर्चा में भी नहीं है, आगे की कार्रवाई कौन पूछे। लालू यादव का मामला पहले से चल रहा था। पुराने कोई मामले नये सिरे से शुरू ही नहीं हुए। भाजपा जिनपर पहले भ्रष्टाचारी होने का आरोप लगाती थी, उनमें से कई आज भाजपा के साथ है। मनीष सिसोदिया, हेमंत सोरेन, अरविन्द केजरीवाल आदि के खिलाफ मामले बाद के हैं और अगर हुए हैं तो उनके शासन काल में हुआ हैं, ना खाऊंगा ना खाने दूंगा के आश्वासन के बाद हुए हैं। जब खाये हुए धन का ही पता नहीं है तो मिलना नहीं ही है। खाया गया कि नहीं वह तो मुद्दा ही नहीं है। कुल मिलाकर विरोधियों को परेशान करने, तमाम भ्रष्टाचारियों को सरकार में रखने और सबसे खराब प्रशासन देने का रिकार्ड बनाने तथा बिना छुट्टी लिये 18 घंटे काम करने के दावों के बावजूद चुनाव प्रचार से लेकर मंदिर बनवाने और पूजा अर्चना जेसे निजी काम सार्वजनिक रूप से करते हुए देखे गये हैं। अब तो साफ है कि मंदिर के बदले वोट मिलने की उम्मीद नहीं है तो झुंझलाहट हो रही है। वह भी तब जब फैसला देने वाले जजों की खंडपीठ में कइयों को ईनाम दिया जा चुका है और रत्न लुटाकर दिल जीते गये हैं। काम करके नहीं।
आज के अखबारों की खबरों के आधार पर कहा जा सकता है कि सरकार के पास चुनाव में कहने के लिए कोई काम नहीं है, विपक्ष हमलावर है, बचाव में सरकार को कुछ सूझ नहीं रहा है और हताशा में प्रधानमंत्री ने यहां तक कह दिया कि लोग राम मंदिर बनने से भी संतुष्ट नहीं हैं। यह अलग बात है कि उनकी उम्मीद ही गलत या अनुचित थी। अभी भी जो कर रहे हैं या करवा रहे हैं उससे वोट मिलने की उम्मीद भले हो छवि काम करने वाले नेता या पार्टी की नहीं बनी है। ऐसे में राहुल गांधी ने एक्स पर कहा है कि …. पू्र्व राज्यपाल सच बोलें तो उनके घर सीबीआई भेज दीजिये। इससे उनकी आक्रामकता और सरकार की लाचारी का पता चलता है। कांग्रेस ने यह भी कहा है कि भाजपा ने वित्तीय आतंकवाद छेड़ रखा है और सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भारत में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड लचर हैं। ये सब सरकार के काम पर टिप्पणी है तो सरकार के काम को किसानों से निपटने के तरीके के रूप में देखा जा सकता है। इसके बावजूद प्रधानमंत्री ने कहा है कि वे वे किसानों का जीवन बेहतर करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। संदेशखली में हिन्सा आगजनी के बाद प्रतिबंध और बढ़ाये गये हैं। ईडी के छापे हीरानंदानी पर भी चल रहे हैं और केंद्रीय मंत्री का कहना कि, 10 साल में कृषि ऋण वितरण करीब तीन गुना बढ़ा।
इन और ऐसी खबरों के बीच कल अमर उजाला में खबर थी, सरकारें जिम्मेदारी निभाने के बजाय कर रहीं अदालत का इस्तेमाल – शीर्षक से चार कॉलम में छपी है। यह खबर किसान आंदोलन से संबंधित मामले में सरकार के प्रयास पर अदालत की टिप्पणी है। यह न सिर्फ किसान आंदोलन के मामले में सही है बल्कि सरकार की प्रवृत्ति भी बताती है और इसलिए चुनाव के माहौल में खास महत्व की है पर किसी और अखबार में नहीं छपी है। खबर के अनुसार हाईकोर्ट ने किसान आंदोलन में जेसीबी व मॉडिफाई ट्रैक्टर के उपयोग को लेकर हरियाणा और केंद्र सरकार की ओर से दायर अर्जी पर तुरंत सुनवाई से इन्कार कर दिया। प्रदर्शनकारियों के सीमा पर जमा होने के लिए पंजाब को फटकारा और पूछा, अब तक क्या कर रही थी सरकार। मणिपुर की एक दूसरी महत्वपूर्ण खबर कल हिन्दू में थी जो आज अमर उजाला में है। इस खबर का फ्लैग और मुख्य शीर्षक इस प्रकार है, हाईकोर्ट ने हिंसा का कारण बने विवादित अंश को हटाया। मुख्यशीर्षक है, मणिपुर में मैतेयी समुदाय को नहीं मिलेगा अनुसूचित जानजाति का दर्जा।
आप जानते हैं कि मणिपुर में इस फैसले के बाद से हिंसा जारी है। सरकार ने उसे रोकने के लिए चाहे जो किया हो, एक अपील तक जारी नहीं हुई है। प्रधानमंत्री अभी तक मणिपुर गये भी नहीं हैं। अखबार ने आज अपनी इस खबर के साथ एक और खबर छापी है, “शीर्ष कोर्ट ने कहा था, गलत आदेश”। इस खबर के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने 17 मई 2023 को हाईकोर्ट के आदेश को अप्रिय बताया था। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था, हाईकोर्ट का आदेश गलत था। मुझे लगता है कि हमें हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगानी होगी। रोक अब लगी है या गलत आदेश अब सुधारा गया है। इस बीच मणिपुर में जो हुआ उसे अखबारों ने नहीं के बराबर बताया है।
आज की दूसरी बड़ी खबर है, अखबारों की पूरी कोशिश और तमाम कुप्रचार के बावजूद इंडिया समूह में कांग्रेस का समाजवादी पार्टी के साथ उत्तर प्रदेश में और आम आदमी पार्टी के साथ दिल्ली में सीटों को लेकर तालमेल हो गया है। पर यह खबर भिन्न अखबारों में अलग-अलग छपी है। तालमेल नहीं हो रहा था तब जितनी बड़ी चिन्ता थी उतनी राहत आज इन खबरों से मिली नहीं लग रही है। किसानों के आंदोलन और उसपर सरकार के रूख के बारे में आप जानते हैं। उसे कुचलने के सरकारी प्रयासों को देख ही रहे हैं। ट्वीटर पर समर्थकों के हैंडल ब्लॉक करने की खबर आज ही छपी है। इस बीच हिन्दुस्तान टाइम्स में प्रधानमंत्री का एक दावा सिंगल कॉलम में छपा है। शीर्षक है, मजबूत ग्रामीण अर्थव्यवस्था विकसित भारत की कुंजी है। फिर भी किसानों की मांगें पूरी करने में इतनी समस्या है और उन्हें अपनी मांग रखने भी नहीं दिया जा रहा है उनके खिलाफ व्हाट्सऐप्प में जो अभियान चल रहा है सो अलग। इसके बावजूद टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के अनुसार प्रधानमंत्री ने गुजरात में दावा किया है कि वे किसानों का जीवन बेहतर करने के लिए प्रतिबद्ध है।