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आज अखबारों में हेडलाइन मैनेजमेंट तो है पर हेडलाइन यानी मुद्दा नहीं है 

संजय कुमार सिंह-

आज के मेरे सातों अखबारों की लीड तो छोड़िये, सेंकेंड लीड भी अलग है। एक अखबार की लीड दूसरे में पहले पन्ने पर ही नहीं है। शुरुआत हिन्दुस्तान टाइम्स से करता हूं। यहां लीड का शीर्षक है, 400 सीटों के लिए जोर लगाते हुए मोदी ने उत्तर प्रदेश की सभी 80 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा। यहां सेकेंड लीड है, किसानों ने 29 फरवरी तक मार्च टाला, कार्रवाई की मांग। टाइम्स ऑफ इंडिया की लीड है, राज्यों को ईडी की जांच में इसके साथ काम करना चाहिये। सेकेंड लीड है, मोदी पर एआई के जवाब को लेकर सरकार गूगल को नोटिस भेजेगी। पहले पन्ने की खबर में यह नहीं बताया गया है कि मोदी के बारे में किस सवाल के किस जवाब से सरकार नाराज है। यह जरूर बताया है कि किसी के सवाल पर एआई के जवाब को किसी एक्स उपयोगकर्ता ने रेखांकित किया है। 

द हिन्दू की लीड का शीर्षक है, जयशंकर (विदेश मंत्री) ने कहा, पश्चिम रूस को चीन की तरफ दबा रहा है। खबर के अनुसार मंत्री ने कहा है कि दुनिया को चाहिये कि मास्को को और विकल्प दे न कि उसके मुंह पर दरवाजा बंद कर दे। उन्होंने चीन पर ऐसे माइंड गेम्स के लिए हमला किया जो देशों को अन्य साझेदारों के साथ काम करने से रोकते हैं। द हिन्दू की सेकेंड लीड का मामला वही है जो टाइम्स ऑफ इंडिया में लीड है। पर यहां शीर्षक और स्पष्ट है। सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट में ईडी के खनन मामले के खिलाफ तमिलनाडु सरकार के हस्तक्षेप पर सवाल उठाया। खबर के साथ न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी का एक कोट हाइलाइट किया गया है जो सवाल के रूप में है। खबर में इसका जवाब है तो संबंधित वकील ने दिया है। लेकिन सवाल अपनी जगह महत्वपूर्ण है। 

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इंडियन एक्सप्रेस की आज की लीड भी अकेली है। इसके अनुसार असम में यूसीसी लागू, मुस्लिम विवाह कानून रद्द। यहां जो खबर सेकेंड लीड है वह अमर उजाला में लीड है। इंडियन एक्सप्रेस का शीर्षक हिन्दी में कुछ इस तरह होगा, वाराणसी में प्रधानमंत्री ने राहुल पर हमला बोला: उन्होंने काशी, उत्तर प्रदेश के युवाओं को नशेड़ी कहा। प्रधानमंत्री ने कहा है तो उसे प्रमुखता देने का इंडियन एक्सप्रेस का प्रयास भी आज प्रशंसनीय है। विज्ञापनों से भरे पहले पन्ने में यह खबर कैसे एडजस्ट की गई है वह पहले पन्ने के स्क्रीन शॉट में देखिये। 

सब पर भारी भाषा 

अमर उजाला में इस खबर का शीर्षक है, अपमान कोई नहीं भूलेगा, जिनके अपने होश ठिकाने नहीं …. वे युवाओं को बता रहे नशेड़ी। यह देश के प्रधानमंत्री की भाषा है और हिन्दी के एक स्तरीय अखबार में शामिल अमर उजाला की लीड का शीर्षक। इसलिए इसपर बात होनी चाहिये। कोई नहीं करता है इसलिए मैं करता हूं। उसपर आने से पहले बता दूं कि इंडियन एक्सप्रेस में आज राम माधव का एक लेख छपा है। यह चीन के बारे में है और इसका शीर्षक है, बिग अंकल शी (जिनपिंग)। हाईलाइट किया हुआ इसका इंट्रो हिन्दी में कुछ इस प्रकार होगा, पार्टी या सरकार में कोई भी उनसे अलग राय रखने वाला नहीं है इसलिए शी की आत्म-लीनता चीन में आर्थिक पतन का कारण बन सकती है। आज मैंने इस लेख को साझा करते हुए लिखा है कि वे बिल्कुल सही कह रहे हैं और आप नाम व देश बदलकर पढ़ें तो राम माथव की और तारीफ करेंगे। 

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आज अमर उजाला का यह शीर्षक भी ऐसा ही है। इसमें नाम बदलकर पढ़िये कुछ नामों के साथ यह ज्यादा सही लगेगा। पर वह अलग मुद्दा है। अमर उजाला ने फ्लैग शीर्षक में नाम बताया है और शीर्षक है, पीएम मोदी ने वाराणसी में राहुल गांधी पर साधा तीखा निशाना, कहा …..। इस खबर के साथ बुलेट प्वाइंट हैं 1) मोदी को गाली देते-देते जनता जनार्दन पर ही भड़ास निकाल रहे कांग्रेसी 2) विपक्षी गठबंधन का माल वही, पैकिंग नई, इस बार जमानत भी नहीं बचेगी। कहने की जरूरत नहीं है कि यह खबर नवोदय टाइम्स में दो पहले पन्नों पर नहीं है। और दोनों की लीड अमर उजाला में पहले पन्ने पर नहीं है। आज के अखबारों की इस प्रस्तुति से लगता है कि हेडलाइन मैनजमेंट तो है पर हेडलाइन नहीं है। इस समय आकर्षक हेडलाइन नहीं होने का मतलब है चुनाव के लिए मुद्दा नहीं होना। 

बड़े-बड़े दावे करने वाली पार्टी का यह हाल चिन्तित करने वाला है कि वह चुनाव जीतने के लिए अभी और क्या-क्या करेगी? फिलहाल वास्तविकता यह है कि अपनी न्याय यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने बनारस में कहा था कि बेरोजगार युवक मोबाइल के नशे में रहते हैं। युवकों से उन्होंने सार्वजनिक रूप से पूछा था, मोबाइल में कितना समय लगाते हो। एक ने आठ घंटे कहा था। इसपर राहुल गांधी ने युवकों को मोबाइल के नशे में होने का आरोप लगाया था। इस आरोप और यात्रा से परेशान मोदी तुरंत बनारस पहुंच गये और राहुल गांधी के मोबाइल के नशे के आरोप के आधार पर उत्तर प्रदेश और ‘मेरे काशी के बच्चों’ को ‘नशेड़ी’ करार दिया जैसे आरोप लगाये और मोबाइल के नशे में होने के आरोप को नशेडी़ होना कह दिया। यू ट्यूब पर आपको सभी बयान मिल जायेंगे, खुद जांच कर सकते हैं। ऐसे में अमर उजाला ने प्रधानमंत्री के जिस बयान को लीड बनाया है वह दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर भी नहीं है तो इसीलिए।   

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‘चंदा दो, बेल और बिजनेस लो’

एक वोटर के रूप में आपको यह सब जानने समझने और खुद तथ्यों  तलाशने की जरूरत है। आप सिर्फ प्रधानमंत्री का जवाब मत सुनिये उनके आरोपों की पुष्टि भी कीजिये। बहुत कुछ समझ में आयेगा और आज अखबार यही कह रहे हैं। जहां तक जवाब देने की बात है, राहुल गांधी ने एक ट्वीट किया है पर इसका कोई जवाब नहीं दिखा। ट्वीट इस प्रकार है, “क्या आपको प्रधानमंत्री की ‘चंदा दो, बेल और बिजनेस लो’ योजना के बारे में पता है? देश में प्रधानमंत्री ‘वसूली भाई’ की तरह ईडी, आईटी और सीबीआई का दुरुपयोग कर ‘चंदे का धंधा’ कर रहे हैं। रिपोर्ट्स में सामने आया है कि वसूली एजेंट बन चुकी एजेंसियों की जांच में फंसी 30 कंपनियों ने भाजपा को जांच के दौरान 335 करोड़ का चंदा दिया। चंदे का धंधा इतनी बेशर्मी से चल रहा है कि मध्य प्रदेश की एक डिस्टिलरी के मालिकों ने बेल मिलते ही भाजपा को चंदा दिया। मित्र की कंपनी को बेईमानी से फायदा और बाकियों के लिए अलग कायदा? मोदी राज में भाजपा को दिया ‘अवैध चंदा’ और ‘इलेक्टोरल बांड’ ही ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ की गारंटी है।” ये और ऐसी कई खबरें अखबारों में नहीं छपती हैं। पहले पन्ने पर तो बिल्कुल नहीं। यह आरोप न्यूज लौन्ड्री में भी है। लेकिन इसपर सरकारी मीडिया में जोरदार सन्नाटा है। 

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राहुल गांधी ने जो कहा था और फिर कहा 

आजतक डॉट इन की एक खबर के अनुसार, उन्होंने कहा था, ‘मैं वाराणसी गया था। मैंने वहां देखा सड़क पर हजारों युवा शराब पीकर सड़क पर लेटे हुए हैं और बाजा चल रहा है। शराब पी पीकर युवा बनारस की सड़क पर नाच रहे हैं। अगले दिन युवा मुझसे मिलते हैं और कहते हैं कि हमारी जिंदगी बर्बाद हो गई, पेपर लीक हो गया। एक के बाद एक पेपर लीक हो रहा है। जो भी पेपर होता है वो लीक हो जाता है। एक युवा हमारे पास आकर कहता है कि, पांच लाख रुपया कोचिंग में दिए और परीक्षा के दिन पेपर लीक हो जाता है। राहुल गांधी ने यही बात अमेठी में भी कही थी। अमर उजाला के आम पाठक को लगेगा कि राहुल गांधी ने जो कहा प्रधानमंत्री ने उसका जवाब दिया। जब यह प्रचारित किया गया है कि प्रधानमंत्री की आलोचना हो ही नहीं सकती है तब लोगों को यह बुरा भी नहीं लगेगा और प्रधानमंत्री की भाषा से किसी को कोई दिक्कत तो रही भी नहीं। जिसे रही उसे पूछता कौन है। ऐसे में देश का मीडिया जो कर रहा है वह और चाहे जो हो, देश हित और पत्रकारिता तो बिल्कुल नहीं है। उसमें भी राहुल गांधी का पक्ष नहीं रहता है जबकि वह ट्वीटर पर अक्सर आसानी से उपलब्ध होता है।   

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नरेन्द्र मोदी ने राहुल गांधी को युवराज और उनके परिवार को शाही परिवार कहकर अपनी कुंठा भी निकाली और वंशवाद के नाम पर निकालते ही रहते हैं। लेकिन सच यही है कि राहुल गांधी ने ही नरेन्द्र मोदी से लोहा लेने की हिम्मत की है। और टिके हुए हैं। कांग्रेस का यही परिवार वजूद बचाये हुए है बाकी तो शरद पवार और ठाकरे की आधी पार्टी उनके साथ है तो ममता बनर्जी की पूरी पार्टी उनकी पार्टी के साथ रह चुकी है और गांधी परिवार का भी आधा तो उनके साथ है ही। सच यह है कि कि आधा ही गांधी परिवार संघ और भाजपा के कई परिवार और वंश से मुकाबले में डटा हुआ है पर प्रचारक कुछ और तस्वीर बना रहे हैं। राहुल गांधी ने मोदी के इस आरोप का भी जवाब दे ही दिया है जो इस प्रकार है, लखनऊ से लेकर प्रयागराज तक पुलिस भर्ती पेपर लीक को लेकर युवा सड़कों पर हैं। और वहां से मात्र 100 किमी दूर वाराणसी में प्रधानमंत्री युवाओं के नाम पर युवाओं को ही बरगला रहे हैं। ठेठ बनारसी अंदाज में कहें तो मोदी जी ‘नानी को ननिहाल का हाल सुना रहे हैं’। 

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