दिलीप मंडल-
विनोद राय कांग्रेस का पालतू था। नेताओं के नाम मैं ले नहीं रहा हूँ। जानने वाले जानते हैं। 2G पर इसकी रिपोर्ट के आधार पर UPA सरकार ने अपने सबसे बड़े सहयोगी DMK के मंत्री ए. राजा को जेल में डाला।
जबकि हर हाथ में मोबाइल पहुँचाने की क्रांति ए. राजा के नेतृत्व में हुई। मोबाईल डाटा उनके दौर में ही सस्ता हुआ। कॉलिंग फ़्री हुई। कंपीटिशन आया।
2G केस ख़ारिज हो गया। राजा नीलगिरी सुरक्षित सीट से फिर से सांसद बन गए। डीएमके ने उन पर भरोसा बनाए रखा। कांग्रेस ने ए. राजा से अब तक माफ़ी नहीं मांगी।
राय ने 2G में जितने का घाटा बताया, उससे कम कमाई 5G नीलामी में हुई। जबकि अब ग्राहक कई गुना बढ़ चुके हैं।



सत्येंद्र पीएस-
आपने थोक फल मंडी में केले की घवद नीलाम होते देखा है? व्यापारी केले की घवद का बेस प्राइस 40 रुपये रख देता है। उसके बाद छोटे कारोबारी यानी ठेले वाले उसकी बोली लगाते हैं और जो सबसे ऊंची बोली लगाता है, उसे केले की घवद दे दी जाती है। यह बोली औसतन 150 से 200 रुपये तक जाती है, जो घवद के आकार और व्यापारियों के उत्साह/मांग पर निर्भर होता है।
भारत में 5जी स्पेक्ट्रम की नीलामी हुई है। सरकार ने 4.3 लाख करोड़ रुपये स्पेक्ट्रम की बेस प्राइस रखी थी। नीलामी से उसको महज 1.5 लाख करोड़ रुपये मिले हैं।
2010 में जब स्पेक्ट्रम बेचा गया था तो कैग विनोद राय ने अनुमान लगाया कि अंतरराष्ट्रीय कीमत के हिसाब से 1.73 लाख करोड़ रुपये मिलने चाहिए थे। न्यायालय में मामला गया। तत्कालीन संचार मंत्री ए राजा को घोटाले के आरोप में जेल भेज दिया गया।
कोर्ट से लेकर कैग तक बारह तेरह साल पहले उसे नीलामी करके 1.73 लाख करोड़ रुपये में बेच रहे थे। अब 5जी की नीलामी हुई है। सरकार ने अनुमान लगाया कि कम से कम 4.3 लाख करोड़ रुपये मिलेंगे। अगर केले की नीलामी या किसी अन्य नीलामी से तुलना करें तो सरकार को कम से कम 10-11 लाख करोड़ रुपये मिलने चाहिए थे। वास्तव में मिलने जा रहे हैं 1.5 लाख करोड़ रुपये।
क्या किसी अखबार, जांच एजेंसी, कैग, सुप्रीम कोर्ट में यह क्षमता है कि वह सरकार को बताए कि 5जी स्पेक्ट्रम की अंतरराष्ट्रीय कीमत के हिसाब से कितना मूल्य था और बोली लगाने वाली 3 कम्पनियों से कार्टलाइजेशन कराकर उसे सरकार ने औने पौने भाव बेचकर कितने लाख करोड़ रुपये की कमाई की है?
बहुत आसान तरीका है। अमेरिका यूरोप में 5जी जितने में बिका, उसका दाम निकालिए। उसमें महंगाई दर जोड़कर वर्तमान मूल्य निकालिए और भारत मे जितने में स्पेक्ट्रम बिका है उससे अंतर देख लीजिए। विशेषज्ञों से बात करके बता दीजिए कि 5जी की नीलामी में करीब 9.5 लाख करोड़ रुपये का घोटाला हुआ है और कमीशन अश्विनी वैष्णव ने खाए हैं और उनको जेल में डाल दीजिए जैसे ए राजा को डाला गया था।

गिरीश मालवीय-
बहुत से लोग कहते हैं कि मोदी सरकार में भ्रष्टाचार नही हुआ, उन लोगो से एक बात पूछना चाहता हूं क्या आपने पिछ्ले 7-8 सालो में मोदी सरकार के कामकाज के बारे में कैग की रिपोर्ट की कोई भी ख़बर पढ़ी ?
“भारत का नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (Comptroller & Auditor General of India-CAG) संभवतः भारत के संविधान का सबसे महत्त्वपूर्ण अधिकारी है। वह ऐसा व्यक्ति है जो देखता है कि संसद द्वारा अनुमन्य खर्चों की सीमा से अधिक धन खर्च न होने पाए या संसद द्वारा विनियोग अधिनियम में निर्धारित मदों पर ही धन खर्च किया जाए।” ये डॉ. भीम राव अम्बेडकर का कथन हैं।
CAG के माध्यम से ही संसद की अन्य सार्वजनिक प्राधिकरणों की, जो सार्वजनिक धन खर्च करते हैं उनकी जवाबदेही सुनिश्चित की जाती है और यह जानकारी प्रतिवर्ष जनता के सामने रखना जरूरी होता है।
2015 से पहले हर साल संसद में कैग की रिपोर्ट पर हंगामा होता था, घोटाला हुआ या नहीं हुआ बात दीगर है लेकिन 2जी नीलामी, कोयला ब्लॉक नीलामी, आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाला और 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स जैसे अनेक प्रकरण उस वक्त कैग रिपोर्ट के द्वारा ही हमारी जानकारी में आए थे।
आज कैग की क्या हालत है कभी आपने जानने की कोशिश की ? क्या मीडिया ने कभी आपको कैग की रिपोर्ट के लिए अवेयर किया ?
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मोदी सरकार में कैग का किस तरह से गला घोंटा गया है।
इंडियन एक्सप्रेस द्वारा दायर आरटीआई आवेदन के जवाब में दी गई जानकारी से पता चला कि केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों से संबंधित सीएजी रिपोर्ट 2015 में 55 से घटकर 2020 में केवल 14 रह गई।
यानि मोदी जी के रहते संसद में यूपीए सरकार से लगभग 75% कम रिपोर्ट CAG की पेश हुई है, और जो पेश हुई है उनमें भी लीपापोती करने की कोशिश साफ़ नजर आती है।
भ्रष्टाचार का ताजा उदाहरण आपके सामने है केंद्रीय कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी द्वारा कुछ ही दिन पहले 25 जुलाई को सदन में दिए गए एक लिखित उत्तर में बताया गया कि देश में कोयले की कोई कमी नहीं है भारत में कोयले का उत्पादन 31% बढ़ा है,………तो फिर आप ही बताइए कि एनटीपीसी पर और देश के विभिन्न राज्यो पर, विदेशो से बेहद महंगे कोयले के आयात का दबाव क्यों बनाया जा रहा है ?
देश की कोल इंडिया लिमिटेड मात्र तीन हजार रुपये प्रति टन की दर से कोयला राज्यों को दे रही है। जबकि अडाणी से कोयला खरीदने के लिये जो टेंडर डाले गए उसमे अडानी ने 30 से 40 हजार रुपये प्रति टन की दर से कोयला आयात के रेट दिए हैं।
और अभी खबरे आ रही है कि दस गुना रेट पर कोयला आयात करने के टेंडर पास भी हो गए हैं इस तरह से जबरन 10 गुना महंगा विदेशी कोयला खरीदेगे तो देश के करोड़ों उपभोक्ताओं को महंगी बिजली खरीदना पड़ेगी।
कल ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह किया कि वे बिजली मंत्रालय को राज्यों और उसकी बिजली उत्पादन कंपनियों को कोयले के आयात के लिए अपने “जबरदस्ती दिए गए निर्देश” को वापस लेने के लिए कहें, जिनकी उन्हें आवश्यकता नहीं है। फेडेरेशन ने कहा कि 25 जुलाई को संसद में कोयला मंत्रालय के जवाब को देखते हुए महंगा विदेशी कोयला आयात जरूरी ही नहीं है।
इतनी बड़ी लूट खुले आम चल रही है लेकिन न कोई कुछ समझने को तैयार हैं न कुछ करने को ? कैग जेसी संस्था को किनारे लगा दिया गया है तो भ्रष्टाचार की रिपोर्ट देगा ही कौन , लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जानें वाला मीडिया तो पहले ही बिक चुका है !