गृह मंत्री अमित शाह द्वारा राज्यसभा में पेश संकल्प पत्र के अनुसार संविधान के अनुच्छेद 370 का खंड 1 बना रहेगा और खंड 2 और 3 ख़त्म होंगे। लेकिन खंड 3 के प्रावधान को देखा जाय तो जबतक इस पर उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक मोहर न लग जाय तब तक यही कहा जा सकता है बहुत कठिन है डगर पनघट की। क्योंकि खंड 3 में लिखा हुआ है कि राष्ट्रपति इसे पूरी तरह निष्क्रिय या कुछ संशोधनों या अपवादों के साथ सक्रिय रहने की घोषणा कर सकता है, लेकिन उसके लिए उसे जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की सहमति आवश्यक होगी। राष्ट्रपति ने प्रशासनिक आदेश से संविधान सभा का अर्थ बदलकर विधानसभा कर दिया है, जिससे इसकी संवैधानिक वैधता का बहुत बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है।
गौरतलब है कि अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की व्यवस्था अनुच्छेद 370 में ही है। उसके खंड 3 में लिखा हुआ है कि राष्ट्रपति इसे पूरी तरह निष्क्रिय या कुछ संशोधनों या अपवादों के साथ सक्रिय रहने की घोषणा कर सकता है लेकिन उसके लिए उसे जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की सहमति आवश्यक होगी। लेकिन संविधान सभा तो अब है नहीं जो राष्ट्रपति को अपनी सहमति या असहमति दे। वह तो 1957 में राज्य का संविधान बनाकर भंग कर दी गई थी।
ऐसे में अनुच्छेद 370 कैसे निष्प्रभावी होगा, यह लाख टके का सवाल है। जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय भी 2015 में ऐसा ही फ़ैसला दे चुका है और उच्चतम न्यायालय भी एक अन्य मामले में 2018 में इसी तरह की टिप्पणी कर चुका है। अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान का ही एक अंग है और भारतीय संसद को उसे संशोधित करने का अधिकार है, लेकिन इसे संविधान संशोधन विधेयक के द्वारा हटाया जा सकता है या राष्ट्रपति के प्रशासनिक निर्णय से, यह संवैधानिक सवाल उठ खड़ा हुआ है।
दरअसल मोदी सरकार ने राजनीतिक तिकड़मबाजी से राष्ट्रपति द्वारा आज जारी एक नए आदेश के द्वारा अनुच्छेद 370 के खंड 3 में लिखे संविधान सभा शब्द का अर्थ बदल दिया है। अनुच्छेद 370 के खंड 1 के तहत राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह राज्य सरकार की सहमति से ऐसा आदेश जारी कर सकता है। अब चूँकि राज्य में कोई चुनी हुई सरकार तो है नहीं। इसलिए राज्यपाल की सहमति ही काफ़ी है। इस आधार पर राज्यपाल की सहमति को ही राज्य की सहमति मानते हुए राष्ट्रपति ने आज की तारीख़ में यह आदेश जारी किया कि अनुच्छेद 370 के खंड 3 में लिखित संविधान सभा को‘राज्य विधानसभा कर दिया जाए। अब यह भी क़ानूनी सवाल बन गया है कि क्या राष्ट्रपति को प्रशासनिक आदेश से संविधान सभा का अर्थ बदलकर राज्य विधानसभा करने का संवैधानिक अधिकार है?
गृह मंत्री शाह ने राज्यसभा में दावा किया कि राष्ट्रपति को अनुच्छेद 370 के उपबंध (3) के तहत अनुच्छेद 370 को खत्म करने का अधिकार है। उन्होंने सदन में धारा 370 के खंड 3 का उल्लेख किया और कहा कि देश के राष्ट्रपति को धारा 370(3) के अंतर्गत पब्लिक नोटिफिकेशन से धारा 370 को सीज करने का अधिकार है। आज सुबह राष्ट्रपति ने एक नोटिफिकेशन निकाला है, कॉन्स्टिट्यूशन ऑर्डर निकाला है, जिसके अंदर उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा का मतलब जम्मू और कश्मीर की विधानसभा है। चूंकि संविधान सभा तो अब है ही नहीं, वह समाप्त हो चुकी है। इसलिए, संविधान सभा के अधिकार जम्मू-कश्मीर विधानसभा में निहित होते हैं। चूंकि वहां राज्यपाल शासन है, इसलिए जम्मू-कश्मीर विधानसभा के सारे अधिकार संसद के दोनों सदन के अंदर निहित है। राष्ट्रपति के इस आदेश को साधारण बहुमत से पारित कर सकते हैं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ। इसके पहले कांग्रेस पार्टी 1952 में और 1962 में धारा 370 में इसी तरीके से संशोधन कर चुकी है। उसी व्यवस्था से यह हुआ है।
अब यह मामला उच्चतम न्यायालय में यदि जायेगा तो इस मुद्दे के साथ इस मुद्दे को भी तय करना होगा की यदि कांग्रेस ने 1952 और 1962 में अनुच्छेद 370 में इसी तरीके से संशोधन किया था तो क्या वह वैध था या अवैध? उच्चतम न्यायालय पहले भी कई बार कह चुका है कि यदि पूर्व कोई गैरकानूनी आदेश असंवैधानिक है तो वह नज़ीर नहीं बन सकता।
राजनितिक शब्दावली में कहा जाय तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने बहुत बड़ा राजनितिक जुआं खेला है जिसकी पहली बाजी तो उन्होंने जीत ली है, लेकिन जब इसकी संवैधानिक वैधता परखी जाएगी तब इसका अंतिम परिणाम सामने आएगा।
India rejuvenation initiative
August 7, 2019 at 9:22 am
बहुत अच्छा विश्लेषण किया है विश्लेषण बहुत अच्छा लगा R N Tiwari Mathura India rejuvenation initiative-9045958851
India rejuvenation initiative
August 7, 2019 at 9:26 am
बहुत अच्छा विश्लेषण किया गया है R N Tiwari Mathura India rejuvenation initiative