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सुख-दुख

चालीस पार वालों के लिए एक नेक सलाह!

सिद्धार्थ ताबिश-

अगर आप चालीस या पैंतालीस के हो चुके हैं तो जान लीजिये कि अब ये समय आपके लिए नयी यात्रा शुरू करने वाला है. पुरानी सारी यात्राएं, सारे पुराने ढर्रे, पुराने रीति रिवाज और पुराने सब कुछ सीखे हुवे को पीछे छोड़कर आपको बिल्कुल नए तरीके से अब आगे बढ़ना है. वो आपको इसलिए करना है ताकि मरते समय आप वो हो सकें जिसके लिए आप यहाँ जीने आये हैं. यानि “स्वयं” हो सकें.

उसके लिए सबसे पहला काम ये करना है कि अगर आप बड़े हैं तो आपको लोगों यानि इंसानों को “कण्ट्रोल” यानि “नियंत्रित” करना बंद करना होगा. पूरी तरह से. वो चाहे आपका बेटा हो, पत्नी हो, भाई हो या बहन हो, आपको हर किसी पर से अपना “नियंत्रण” हटाना होगा. इसे धीरे धीरे शुरू करना होगा. ये स्वीकार करना होगा कि कोई कुछ भी कर रहा है उस से आप “प्रभावित” नहीं होंगे. किसी अन्य द्वारा किया गया कोई भी कार्य जो उसने अपने लिए किया है वो आपको “प्रभावित” नहीं करेगा.

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उदाहरण के लिए आपका बेटा स्कूल में फ़ेल हो गया तो वो आपको प्रभावित नहीं करेगा, दुखी नहीं करेगा, और आपको पागल नहीं बनाएगा.. और आपको उसके लिए अपना जी जान अब नहीं लगाना है. आप सिर्फ़ लोगों को रास्ता दिखा देंगे, उनको समझा देंगे और अगर वो मार्गदर्शन मांगते हैं तो उन्हें देंगे. वरना नहीं. बिना मांगे किसी को कोई मार्गदर्शन आपको नहीं देना है, चाहे वो आपका अपना बेटा ही क्यूँ न हो. आपको लगता है कि आप ये सब कुछ नहीं संभालेंगे तो बर्बाद हो जाएगा. नहीं. ऐसा कहीं नहीं होता है. इस मानसिकता से बाहर आ जाईये. अपना नियंत्रण पूरी तरह से खोना शुरू कर दीजिये.

बड़ी उम्र के लोगों की सबसे बड़ी समस्या यही होती है. वो अपने हिसाब से अपना घर, खानपान, रहन सहन, पढाई लिखाई, सब का जीना और मरना नियंत्रित करने में लगे रहते हैं. भारत में हर घर में आपको यही हाल मिलता है.. और ये नियंत्रित करने वाले व्यस्क और बूढ़े कभी ये समझ ही नहीं पाते हैं कि जिन्हें वो नियंत्रित करने में फंसे हैं, वो दरअसल भीतर से उनके मरने का इंतज़ार कर रहे हैं. जैसे ही वो मरेंगे, पूरा घर अपने हिसाब से जीना शुरू कर देगा. आप लोगों को अपने हिसाब से जीने ही नहीं दे रहे हो. और आप अपने “नियंत्रण के पागलपन” को अपना धर्म, संस्कृति, परंपरा और जाने क्या क्या बोलकर जस्टिफाई किया करते हो.

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जिस दिन आपने लोगों पर नियंत्रण छोड़ दिया. आप आज़ाद हो जाते हैं. और आप जैसे ही दूसरों को आज़ाद करते हैं, आप अपने आप ही आज़ाद हो जाते हैं. जो ये कहता है कि उसे जीने की आज़ादी नहीं मिल रही है वो दरअसल दूसरों को नियंत्रित करने में फंसा रहता है.

इसलिए अपनी आज़ादी चाहते हो और स्वयं का साक्षात्कार करना चाहते हो तो नियंत्रण करना छोडो. लोगों से दूरी बना कर उन्हें ऐसे देखना शुरू करो जैसे तुम मर चुके हो. और ये जो भी कर रहे हैं सब तुम्हारे मरने के बाद कर रहे हैं. उन्हें जीने दो अपने हिसाब से. फिर वो भी तुम्हें जीने देंगे तुम्हारे हिसाब से.

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