Hareprakash Upadhyay : जनसंदेश टाइम्स की ओर से मेरा बकाया वेतन 15 सितंबर से पहले देने का भरोसा दिलाया गया था, पर वह दिन भी गुजर गया। अब वहाँ के महाप्रबंधक विनित मौर्या ने फोन बंद कर लिया है या जो मेरे पास नंबर है, उसे बदल लिया है। एचआर का काम देखने वाला लड़का मेरा फोन नहीं उठा रहा। दफ्तर के बेसिक नंबर पर बात करने की कोशिश की, तो बहुत देर फोन होल्ड कराने के बाद कह दिया गया कि जीएम सीट पर नहीं हैं। एक अखबार चलाने वाली कंपनी इतनी नीचता पर उतर आएगी, आप कल्पना भी नहीं कर सकते। बताया जा रहा है कि यह सब कुछ संपादक सुभाष राय के इशारे पर हो रहा है। जिस दिन मैंने अखबार छोड़ा था, उस दिन विनित मौर्या ने कहा भी था कि संपादक के कहने के बाद आपका चेक बना दिया जाएगा। मुझे अब क्या करना चाहिये….
जनसंदेश टाइम्स, लखनऊ में फीचर एडिटर पद पर कार्यरत रहे पत्रकार और साहित्यकार हरे प्रकाश उपाध्याय के फेसबुक वॉल से. उपरोक्त स्टेटस पर आए कमेंट्स में से कुछ इस प्रकार हैं….
निर्मल गुप्त हरेप्रकाश जी ने पहले लिखा -बताया जा रहा है कि यह सब कुछ संपादक सुभाष राय के इशारे पर हो रहा है। उन्होंने फिर लिखा -जबकि लंबे समय तक वेतन मिलने और जरूरी काम के लिए अवकाश न मिलने के कारण उनको बताकर सहमित से ही मैंने नौकरी छोड़ी | क्या सुभाष राय जी अखबार के मालिक हैं ? वह वेतन क्यों नहीं मिलने दे रहे ? क्या उनको अपना वेतन निरंतर मिल रहा है ?
Hareprakash Upadhyay निर्मल गुप्त जी, प्रंबधन की नजर में अपना नंबर बढ़वाने के लिए सुभाष राय जी अपने सहयोगियों के साथ प्रबंधन की ज्यादती को शह दे रहे हैं।
Ganga Pd Sharma पत्रकार जब बाहर की दुनिया से लड़ सकता है तो उसे भीतर की लड़ाई लड़ने से नहीं डरना चाहिए .हरे प्रकाश जी! आप यह लड़ाई लड़ते रहिए.मैं मानता हूँ कि व्यक्ति से व्यस्था का तंत्र ताकतवर होता है लेकिन जब उसमें बेईमानी समा जाती है तो जंग भी लगती है.जंग लगी व्यवस्था से लड़ना आसान हो जाता है.अभी आपको तकलीफ़ होगी बाद में इसमें सहज अनुभव करेंगे.अधिक से अधिक नुकसान क्या होगा?इसका अनुमान तो आपको होगा ही .आप उस नुकसान को लड़ाई का खर्च मानकर लड़ते रहें.अंततः जीत आपकी ही होनी है.ऐसे ही संघर्षों से आपका रचनाकार और पुष्ट होगा.कोई बखेड़ा खड़ा होता है, होने दीजिए,ज़्यादा से ज़्यादा क्या होगा?यही न कि एक और ‘बखेड़ापुर’आ जाएगा. अन्याय को दलालों के माध्यम से कभी दूर नहीं किया जा सकता है.इसके लिए ताल ठोंक कर खड़े होने की ज़रूरत होती है.जब मीडिया नहीं सुनेगा तो बात कहीं न कहीं तो रखनी पड़ेगी .सोसल मीडिया भी तो एक प्रकार का मीडिया ही है.बड़े-बड़े राजनीतिक दल और संस्थान इसको सलाम ठोंकते हैं तो एक व्यक्ति चाहे वह संपादक हो या मालिक उसको भी इसकी शक्ति का अहसास कराना ही होगा. वरिष्ठ लोगों से अनुरोध है कि एक ईमानदार युवा लेखक को ग़लत राह न सुझाएँ. ईमानदारी,साहस और मूल्यों के प्रति निष्ठा ही लेखक की ताकत होते हैं.हरे प्रकाश जी सही हैं.उन्हें लड़ने दीजिए .हो सके तो समर्थन देकर नैतिक सहयोग कीजिए डराइए नहीं.
DrDurga Sharan Mishra पाश्विक व्यक्तित्व/चरित्र के धनी लोगोँ का कोई जवाब नहीँ ! ई-मेल करेँ और फिर लिगल नोटिस भेजवाएँ!
Hareprakash Upadhyay ईमेल भेज चुका हूँ। वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों व वकील से मिलने आज जा रहा हूँ।
Amit Tyagi एक नोटिस दीजिये जिसमे सारी बातें स्पष्ट तौर पर लिखें की कब कब किस किस नंबर पर आपने फोन किया और आपको जवाब नहीं दिया गया। इसके द्वारा नियत तय होगी संस्थान की । इसके बाद कानूनी सलाह के आधार पर दावा प्रस्तुत कीजिये।
Hareprakash Upadhyay मैंने सारे मैसेज संभालकर रखे हैं। मानसिक प्रताड्ना और अधिकारों के हनन का भी दावा करने जा रहा हूँ। एक तो लगातार चार महीने तक वेतन नहीं दिया गया और इस तरह नौकरी छोड़ने को विवश किया गया, फिर बकाया भुगतान पाने के लिए बार-बार दौड़ाया जा रहा है।
Rishi Kumar अपने फोन कॉल और इ मेल की कॉपी सहित वकालतन नोटिस दीजिये। जो हो सके कानूनी कार्रवाई कीजिये। क़ानून लेखकों के साथ आएगा। अगर मित्रों की जरूरत पड़ी तो वह भी सही। खून-पसीने की कमाई है। मिथिलेश्वर वाला काम भी करना पड़े तो कीजिये। अभी निलय भैया ने जागरण वाले की खबर लेनी शुरू कर दी तो प्रशांत जी किस तरह से सब सुनने को तैयार हो गये।
Virendra Yadav मुझे लगता है कि जब संस्थान रुग्ण हो जाता है तो प्रभावी राहत विधिक प्रक्रिया द्वारा ही संभव है. लेकिन इसके पूर्व प्रबंधन से संपर्क और पत्राचार के सभी अवसरों का उपयोग कर लेना चाहिए क्योंकि उससे भी अपना पक्ष मज़बूत होता है.
राज बोहरे akhbar ki aarthik halat kaisi hai….kaho
Hareprakash Upadhyay अखबार छप रहा है, तो वेतन देने की स्थिति में तो है ही न….. वेतन नियमित भुगतान न होने के कारण पूर्व में भी संस्थान छोड़कर गये साथियों के साथ भी ऐसी ही बदसलूकी की गयी है, इसे इन लोगों ने नियमित अभ्यास में ढाल लिया है। संस्थान अपने कई कर्मियों के पीएफ काटने के बावजूद उसका कोई हिसाब नहीं दे रहा है। यहाँ पीएफ का काम भी बहुत अनियमित है।
Anita Srivastava Harai Je aap Kavi maan kai hai apas mai melkar baat kar leejeai..restai bhauat muskil sai bantai hai tutai jaldi.aap kai kismat hoga jarur meelaiga.maehnat ka paisa khe nhe jata.See Translation
Siddhant Mohan पहले तो सारे नंबर यहां साझा करिये
Hareprakash Upadhyay Anita जी, मैंने सुभाष राय से बार-बार आग्रह किया कि यह मामला शांतिपूर्वक सुलझा लीजिये, जबकि लंबे समय तक वेतन मिलने और जरूरी काम के लिए अवकाश न मिलने के कारण उनको बताकर सहमित से ही मैंने नौकरी छोड़ी
Hareprakash Upadhyay अखबार का नंबर है- 05222288868
Siddhant Mohan एचआर सम्पादक और बकिया सभी जिम्मेदार लोगों के…..और नंबर मिल जाने के बाद ऊपर कमेन्ट कर रहे लोगों से आग्रह है कि अपना थोड़ा समय लगाकर उन नंबरों पर पैसा न देने का कारण पूछें।
Anita Srivastava Koi misunderstanding ho ge hogi aap shan’t rhkar bhe baat kar saktai.post daikh rhai hai sb apna nagtive thought deeai. Aap ka sb kam ho jaiga. Acchai Kavi hai laikhk hai samman mel rhai bhumukhi pratibha hai.aap ko Jo accha lagai whe kareai.
Hareprakash Upadhyay उस नंबर पर संबंधित लोगों से बात हो सकती है, अगर वे बात करना चाहें। अगर बात नहीं होगी तो फिर मोबाइल नंबर भी जारी करूंगा…
उपरोक्त स्टेटस पर सुभाष राय ने क्या प्रतिक्रिया दी, पढ़ें…
हरेप्रकाशजी अब गाली-गलौज की भाषा पर उतर आये हैं : सुभाष राय
मूल पोस्ट….