सच का आईना दिखाते रहेंगे… देश भर में मीडिया वालों (कैमरामैन और रिपोर्टर) पर हो रहे जानलेवा हमलों ने यह साबित कर दिया है कि माफिया (चाहे किसी भी रूप में हों) डरे हुए हैं। उन्हें यह लगता है कि अगर दुनिया में उन्हें कोई बेनक़ाब कर सकता है तो वह मीडिया है। शायद इसीलिए वह इसकी आवाज़ को दबाने पर तुले हुए हैं। चाहे प्रिंट हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, इन्हें हर किसी से डर लगने लगा है। इसीलिए कभी सरेराह तो कभी धोखे से मीडियकर्मियों की जान ली जा रही है।
डीडी न्यूज़ की टीम भी इसी तरह के धोखे की शिकार हुई है। इन्हें पहले तो छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सलियों ने स्टोरी कवर करने का खुला निमंत्रण दिया और फिर कायरों की तरह छुपकर उनपर गोलियां बरसाकर शहीद कर डाला। टीम दंतेवाड़ा के जिस गांव में जा रही थी वहां के निवासी दशकों बाद लोकतंत्र के महापर्व यानि चुनाव (विधान सभा) में वोट डालने वाले थे। उन्हें यकीन हो चला था कि नक्सली केवल उनका इस्तेमाल कर रहे हैं और डरा धमका कर उन्हें सरकार के खिलाफ बोलने पर मजबूर करते हैं।
लेकिन इस बार उन्होंने प्रण कर लिया था कि चाहे जो हो जाये, वोट देकर रहेंगे। नक्सलियों को भी शायद समझ में आ गया था कि अब इन गांव वालों को बन्दूक के दम पर ज़्यादा दिनों तक डरा कर नहीं रखा जा सकता है। शायद इसीलिए उनके मन में खौफ पैदा करने के लिए उन्होंने ये रास्ता चुना कि मीडिया वालों को निशाना बनाओ तो गांव वालों के मन में भी खौफ पैदा हो जायेगा और सरकार को भी हमारी ताकत का अंदाज़ा हो जायेगा। यानी एक तीर से दो शिकार। कुछ हद तक नक्सली अपने मकसद में कामयाब भी हो जायेंगे लेकिन उनकी यही रणनीति एक दिन उनके लिए काल बनेगी।
मीडिया वालों में डर पैदा करने की रणनीति केवल नक्सली ही नहीं कर रहे हैं बल्कि अलग अलग जगहों पर अलग अलग तरीके से आतंकवादी, खनन माफिया, भू-माफिया, धर्म की आड़ में गुंडागर्दी करने वाले और अण्डरवर्ल्ड के साथ साथ स्थानीय स्तर पर सक्रिय गुंडों की गैंग भी करती रही है। एक अनुमान के मुताबिक केवल इसी वर्ष देश भर में 200 से ज़्यादा मीडियाकर्मियों को किसी न किसी तरह से निशाना बनाया गया है। ये वह आंकड़े हैं जो उपलब्ध हो सके हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि सच छापने पर देश के दूर दराज और अति पिछड़े इलाकों में पत्रकारों और स्ट्रिंगरों के साथ क्या सुलूक होता है हमें पता भी नहीं चलता है। उत्तर भारत में भू और खनन माफियाओं के हाथों सैकड़ों क़लम के सिपाही शहीद हो चुके हैं। तो कश्मीर और पूर्वोत्तर जैसे संवेदनशील राज्यों में भी उग्रवादियों ने सबसे पहले पत्रकारों को ही निशाना बनाने का प्रयास किया है।
बहरहाल एक पत्रकार होने की हैसियत से मैं उन सभी आतंकवादियों, नक्सलियों, माफियाओं और देश के अंदर और बाहर के दुश्मनों को चैलेंज करता हूँ कि आप चाहे जितना ज़ोर लगा लो, हमारी आवाज़, हमारे कैमरे और हमारी क़लम को सच लिखने और सच बताने से रोक नहीं पाओगे। अगर तुम ये सोचते हो कि वह इलाका जहाँ तुमने बेक़सूर और बेबस नागरिकों को अपनी बंदूक का डर दिखा कर उनपर अपना ज़ोर चला लिया तो वह इलाका तुम्हारा हो गया, अब वहां क़दम रखने के लिए तुमसे इजाज़त लेनी होगी, तो तुम सपने में जी रहे हो। तुम भूल रहे हो कि वह तुम्हारा नहीं बल्कि देश का हिस्सा है, भारत का इलाका है और भारत के किसी भी इलाका में किसी भारतीय को जाने के लिए किसी से पूछने या इजाज़त लेने की ज़रूरत नहीं है। देश के चौथे स्तंभ यानी मीडिया के निष्पक्ष पत्रकारों को तो बिलकुल भी नहीं।
याद रखो! तुम्हें स्पष्ट चेतावनी और चैलेंज करते हुए मैं तुमसे कहता हूँ कि तुम एक क़लमकार की आवाज़ को खामोश करने की कोशिश करोगे तो हज़ारों क़लमकार और कैमरामैन तुम्हारी हकीकत और तुम्हारा गंदा चेहरा दुनिया को दिखाने के लिए खड़े हो जायेंगे। हम मीडिया वाले हैं अपनी अंतिम सांस तक सच का आईना दिखाते रहेंगे।
लेखक शम्स तमन्ना डीडी न्यूज़ में अस्सिटेंट प्रोड्यूसर के पद पर कार्यरत हैं। उनसे 09350461877 पर संपर्क किया जा सकता है।