Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

Quid Pro Quo : काश! माई लॉर्ड्स, इतनी सी बात समझ पाते!

Prabhakar Mishra : ‘क्विड प्रो को’ (Quid Pro Quo)… आज से करीब पंद्रह साल पहले की बात है। सुप्रीम कोर्ट कैंपस से बाहर निकलते हुए एक व्यक्ति पर निगाह पड़ी। वह आदमी भगवान दास रोड पर पैदल जा रहा था। सुप्रीम कोर्ट के गेट के पास अचानक रुका और कोर्ट की तरफ दोनों हाथ जोड़कर ठीक वैसे झुका जैसे मंदिर के सामने से गुजरता आदमी।

उन्हीं दिनों, एक और दृश्य देखा था कोर्ट रूम के भीतर का। मुख्य न्यायाधीश की कोर्ट में, खबर के लिहाज से किसी महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई के लिए इंजतार कर रहा था। एक दक्षिण भारतीय महिला जिनके किसी मामले की सुनवाई होनी थी, कोर्टरूम में अपने मामले की सुनवाई का इंतज़ार कर रही थी। आंखे बंद थी, हाथ जोड़कर कुछ बुदबुदा रही थीं, मानों मंदिर में अपने भगवान से कुछ कह रही हों।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इन दोंनो दृश्यों को देखकर मुझे अपने देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं और न्यायपालिका पर गर्व हुआ था और उस दिन समझ में आया था कि देश का आम आदमी अपनी न्यायपालिका पर कितना भरोसा करता है। सुप्रीम कोर्ट को ‘न्याय का मंदिर’ इसीलिए तो कहा जाता है। उन्हीं दिनों मैंने सुप्रीम कोर्ट की रिपोर्टिंग करनी शुरू की थी।

वो दोनों तस्वीरें मेरे आंखों के सामने नाचने लगीं जब मुझे पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा का सदस्य मनोनीत होने की ख़बर पता चली। कुछ लोग कह रहे हैं कि इसमें गलत क्या है! इसके पहले भी तो होता आया है! एक बार फिर, तथाकथित बुद्धिजीवी दो भाग में बंट गए हैं। लेकिन मुझे तो उन ‘दो’ लोगों की चिंता सता रही है कि अगर उन्हें पता चला कि ये ‘क्विड प्रो को’ क्या होता है?

Advertisement. Scroll to continue reading.

मैंने कहीं पढ़ा था कि ‘क्विड प्रो को’ (Quid Pro Quo) एक लैटिन फ्रेज है जिसका मतलब होता है ‘किसी काम के बदले कुछ पाना।’

लेकिन ऐसा कहीं मंदिर का कोई देवता भला कर सकता है! मैं उन्हें समझाने की कोशिश करूंगा! क्योंकि जानता हूँ इस मंदिर और इसके देवता पर से आम आदमी का भरोसा उठने नहीं देना चाहिए। सरकारें आती जाती हैं, जज आते जाते हैं। लेकिन अगर देश की इन संस्थाओं से भरोसा उठ गया तो इस लोकतंत्र को भीड़तंत्र में बदलते देर नहीं लगेगी!

Advertisement. Scroll to continue reading.

काश! माई लॉर्ड्स, इतनी सी बात समझ पाते।

टीवी पत्रकार प्रभाकर मिश्रा की एफबी वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.

Pushya Mitra : आप लोया नहीं बनना चाहते? आपके पास गोगोई बनने का ऑप्शन हमेशा से है।

भाजपा कोई कोरोना थोड़े ही है, डरना नहीं है, बस सतर्क रहना है। काक चेष्टा, वको ध्यानम टाइप। मौका मिलते ही बाड़े को कूद कर उस पार चले जाना है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

वैसे भी आज के जमाने में शिवराज सिंह और प्रभात झा बनने से अच्छा है, ज्योतिरादित्य और गोगोई बनना। आलोचना करते रहिये, माहौल देखते रहिये। मौका मिले तो टप्प से लाइन पार कीजिये और इनाम लेने वाली लाइन में सबसे आगे खड़े हो जाइए।

बस, चमड़ी थोड़ी मोटी होनी चाहिये, भूल जाइए कि इतिहास आपको किस रूप में याद रखेगा। मान कर चलिये, जब तक मैं हूँ तभी तक जीवन है। फिर आनंद ही आनंद रहेगा। बाकी कुछ तो असफल लोग कहेंगे, असफल लोगों का काम ही है कहना।

Advertisement. Scroll to continue reading.

प्रिंट पत्रकार पुष्य मित्र की एफबी वॉल से.

इन्हें भी पढ़ें-

Advertisement. Scroll to continue reading.

भारतीय न्यायपालिका में रंजन गोगोई जैसा यौन विकृत, बेशर्म और लज्जास्पद जज मैंने नहीं देखा- जस्टिस काटजू

क्या पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ब्लैकमेल किए गए थे?

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement