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सियासत

क्या पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ब्लैकमेल किए गए थे?

Sanjaya Kumar Singh : रंजन गोगोई पर यौन छेड़छाड़ का आरोप लगा। जो, जैसी, जितनी जांच हुई उसमें आरोप सही नहीं पाया गया। आरोप लगाने वाली महिला को नौकरी से निकाल दिया गया। गोगोई साब को राज्य सभा का सदस्य मनोनीत किया गया है। ईनाम मिला। उधर उनपर आरोप लगाने वाली महिला को काम पर वापस रखा जा चुका है।

सुप्रीम कोर्ट के जज पर पहले कभी ऐसा आरोप लगा था? लगा तो क्या जांच ठीक से नहीं हुई होगी? अगर सब ठीक था तो महिला कर्मचारी को काम पर क्यों रख लिया गया? नहीं ठीक था तो निकाला क्यों गया था? अगर शिकायत सही थी, जज साब को बचाया गया था तो ईनाम देने की क्या जरूरत थी?

पर ऐसा है तो सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज को यह मामूली सा ईनाम लेने की क्या जरूरत थी? मुझे लगता है यह क्रोनोलॉजी और थेथरोलॉजी को सार्वजनिक करने का सबसे आसान और वीभत्स तरीका है। फंसा क्या न करता। लाइन पर आओ नहीं तो लोया हो जाओ। नामुमकिन मुमकिन है। खेल समझ में आया?

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किसी भी अधिकारी के मातहत काम करने वाली महिला से उसपर (सही या गलत) आरोप लगवाए जा सकते हैं। जांच के नाम पर पूरी नौटंकी के बाद शिकायत को गलत और अधिकारी को क्लीन चिट दी जा सकती है। बदले में अधिकारी से मन मुताबिक काम कराया जा सकता है। अधिकारी रिटायर हो जाए तो शिकायतकर्ता को बिना कारण बताए बहाल कर दिया जाए। ईनाम में उसे पिछले वेतन भत्ते मिलेंगे ही। तरक्की भी दी जा सकती है।

रिटायर अधिकारी के काम का ईनाम उसे किसी भी रूप में दिया जा सकता है। आपको इसमें कुछ गलत लगता है तो लगता रहे। करने वाले के पास बहुमत है। आईटी सेल के ट्रोल हैं। अनपढ़, कुपढ़ और मूर्ख भक्तों की फौज भी। पर ऐसे अधिकारियों को ब्लैकमेल करने वाला जब खुद ब्लैकमेल होगा तो अधिकारी जेल में होंगे, नौकरी से बर्खास्त होंगे। भक्तों की फौज इसे भी ठीक बताएगी। यह क्रम चलता रहेगा।

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फिर एक दिन भक्तों का नंबर आएगा …. तब तक बेचारे समझदार हो जाएंगे। हम उस दिन का इंतजार करेंगे। और तब हम ताली बजाएंगे। लगे रहो भक्तों।

वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की एफबी वॉल से.

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