Kumar Sauvir : जय हिन्द आईजी साहब! कैसे हो मेरे माई-बाप हजूर सरकार? पहले तो आपको बधाई कि आपने आगरा के पत्रकारों को लंगड़ाकर चलना सिखा दिया। पत्रकारों के बदन पर वो लाठियां भांजी है आपने, कि पूछिए मत। देखने वाले दंग थे कि…. छोड़िये यह सब।
अब अरज यह है कि दो-चार दिन विश्राम करने के बाद आप बाकी यूपी के निरीक्षण पर भी निकलियेगा जरूर। अपनी लाठियों पर तेल पिला दीजियेगा। कहीं ऐसा न हो जाए कि आपकी लाठी नाचे और आपको मज़ा भी न आये। मज़ा तो तब ही है कि पत्रकार आपकी लाठी के हर प्रहार पर आर्तनाद करें और कई महीनों तक अस्पताल पर लेटे ही रहें।
सरकार! मैं आपका प्रशंसक हूँ हुजूर। कहाँ आप आईजी साहब जैसा आला हाकिम और कहाँ निरीह-भुक्खड़ पत्रकारों। बहुत लिखते हैं यह ससुरे पत्रकार। बाल की खाल निकालते हैं। हर बात अकारण और नकारात्मक।
और कहाँ आप हुजूर। कितनी मेहनत करनी पड़ती है आपको, मुझे पता है। हर थाने से नियमित हफ्ता-हिस्सा बटोरना क्या कम मेहनत का काम होता है? सिपाही से लेकर सीओ तक की अनुशासनिक जांच में जो पैकेट हर पेशी पर आपकी ड्योढ़ी पर बतौर नज़राना मिलते है, उसे गिनना किसी पहाड़ से कम नहीं होता है। मुझे पता है माई बाप।
रात को दारु पीकर जो गभीर कृत्यों को आप सम्पन्न करते है वो आपकी कार्य कुशलता का प्रतीक होता है। आप देखिये न कि अरविन्द जैन जब आईजी थे तो उन्होंने मायावती सरकार की आन-बान-शान के अपने पुनीत दायित्व को पूरा करने के लिए यूपी कांग्रेस की अध्यक्ष रीता बहुगुणा का घर ही फुंकवा दिया था। हुआ कुछ? ऐसे एक नहीं, अनेक आईजी भरे पड़े हैं यूपी में। यूपी है ही टेंशनाइजेशनल। उप्पर से ऐसे टुटपुंजिया पत्रकारों का वक्त बेवक्त बवाल करना वाकई बेहूदा ही होता है। हे ईश्वर। मैं तो कहता हूँ माई-बाप, कि आपके तो इन नमुरादों की खोपड़ी ही तोड़नी चाहिए।
न न। पत्रकार नेताओं की चिंता मत कीजिये। वह मामला तो हमारे बड़े पत्रकार नेता खुद ही सुलझा लेंगे। उन्हें ऐसे सम्भालने निपटाने का ख़ासा तजुर्बा है। सांप भी मर जाएगा और लाठी भी सुरक्षित रहेगी। हाँ, खर्चा जरूर ज्यादा हो जाएगा। लेकिन आपके पास पैसों-रुपयों की तो कोई दिक्कत होती नहीं है। कौन आपके टेंट से जानी है रकम। दारोगा-एसपी ही अदायगी करेंगे। बदस्तूर। सो डोंट वरी सरकार।
मैं तो कहता हूँ हज़ूर, कि इन पत्रकारों की पिटाई का मासिक कार्यक्रम शुरू कर दीजिये सरकार। किसी सरकारी जलसे-समारोह की तरह। हर जलसे में दस-बीस पत्रकार भी अगर बिस्तर-नशीन हो गए तो सरकार का एक नया कल्याणकारी कार्यक्रम भी शुरू हो जाएगा। नया विभाग शुरू खुल सकता है। नाम हो सकता है कि:- विकलांग पत्रकार कल्याण एवं पुनर्वास विभाग।
लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार कुमार सौवीर के फेसबुक वॉल से.
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