सौमित्र रॉय-
आधार कार्ड के करोड़ों डेटा लीक होने के बाद अब मोदी राज के निकम्मे बाबू कह रहे हैं कि आधार की फ़ोटो कॉपी किसी को मत दो।
मांगता कौन है? कोई भी सरकारी या उसकी एजेंसियां हों, आधार कार्ड बिना पत्ता नहीं हिलता… और अब आधार के डेटा से फ्रॉड हो रहे हैं।
आशीष अभिनव-
ये सरकार सीधा सीधा लोगों को उल्लू समझती है। हमारा आधार नंबर किसी के पास होना ठीक नहीं है। ये बात सरकार अब कह रही है। सोचिये। कोई भी कागजी काम कितने सालों से बिना आधार कार्ड के हुआ है? सरकार ये बात तब कह रही है, जब लोगों के आधार नंबर राशन दुकान से लेकर गली गली में सिमकार्ड कार्ड बेचने वालों तक के पास हैं।
गुरदीप सिंह सप्पल-
आप लोगों में से कितनों ने कहीं न कहीं अपना आधार कार्ड या नम्बर दिया है। शायद सभी ने, क्योंकि सरकार ने आपको आश्वस्त किया था कि ये ज़रूरी है और ये सुरक्षित भी है।
लेकिन अब सरकार बाक़ायदा प्रेस रिलीज़ जारी कर रही है कि ये असुरक्षित है और आप अपना आधार कार्ड या नम्बर कहीं न दें। सरकार कह रही है कि इसलिए लिए मास्क आधार नम्बर डाउनलोड करें और उसे इस्तेमाल करें।
लेकिन इतने सालों में जो आप सब के आधार नम्बर दूसरों के पास पहुँच चुके हैं और उनका दुरुपयोग हो सकता है, उसका क्या हल है?
सरकार जानती है कि आधार नम्बर का दुरुपयोग बैंक अकाउंट हैक करने, ग़लत गतिविधियों के लिए दूसरे के नाम से फ़ोन सिम लेने, ज़मीन घोटाले, दूसरे के नाम से लोन लेने, बीमा क्लेम में बाधा होने जैसे कामों में हो सकता है। यदि आप ही सोचते हैं कि आप कुछ ग़लत नहीं करते और इसलिए आपको निजता की फ़िक्र नहीं है, तो आप ग़लत हैं। आधार नम्बर ग़लत हाथों में जाने से आपके साथ कितने ही तरह के फ़्रॉड हो सकते हैं।
सवाल ये है कि जानकार लोग इन निजता के हनन से होने वाले इन ख़तरों के बारे में सालों से कह रहे हैं। फिर सरकार को ये बात समझ क्यों नहीं आयी? क्यों सबको आधार नम्बर देने के लिए प्रेरित या मजबूर किया गया था?
अब जिस मास्क आधार नम्बर की बात हो रही है, वो प्रावधान तो अक्तूबर 2018 में ही आया था, जब आधार अथॉरिटी ने सुप्रीम कोर्ट में हो रही निजता के जाँच से बचने के लिए किया था। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी, तक़रीबन सब लोग अपना आधार नम्बर कहीं न कहीं दे ही चुके थे।
अब समाधान क्या है? अब केवल एक ही हल है, कि सरकार एक नयी सिरीज़ शुरू करे और सबको एक नया आधार नम्बर दे। लेकिन मोदी सरकार क्या ऐसा करेगी? शायद नहीं। क्योंकि वो निजता को गम्भीरता से लेती ही नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने निजता को जब मौलिक आधार घोषित किया था, तो सरकार से data privacy law बनाने के लिए भी कहा था। Data Privacy Bill 2019 से लम्बित है, मोदी सरकार को जैसे कोई जल्दी ही नहीं है।
इस क़ानून के न बनने से आपका डेटा चुराने वालों पर सरकार का कोई ख़ास कंट्रोल नहीं है।
और आख़िरी बात। अक्सर सुनाई देता है कि अगर किसी ने कुछ ग़लत नहीं किया है तो फिर निजता न होने से डरना क्यों है! लेकिन बात सिर्फ़ निजी जीवन में पारदर्शिता की नहीं है। निजता के हनन से आपके बैंक अकाउंट, ज़मीन के रिकार्ड, आपके नाम से फ़र्ज़ी फ़ोन कनेक्शन और उनका अपराध में इस्तेमाल वग़ैरा भी हो सकता है। इसलिए निजता ज़रूरी है।
मोदी सरकार को इतने साल तक यदि ये समझ नहीं आ रहा था तो या तो इसे निपट मूर्खता कहेंगे या शातिराना षड्यन्त्र।
वैसे Pegasus के इस्तेमाल करने वाले निजता के बारे में असल में क्या रुख़ रखते हैं, इसे आप भी समझ सकते हैं। फ़िलहाल आप आगे से मास्क आधार का प्रयोग करें और हो सके तो जो गरीब लोगों के लिए साइबर कैफ़े के तौर तरीक़े इस प्रेस रिलीज़ में सरकार ने समझाए हैं, उन्हें उन गरीबों को भी समझाएँ!!