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आज भी इलेक्टोरल बांड की खबर ज्यादातर अखबारों में लीड नहीं है!

इलेक्टोरल बांड पर इंडियन एक्सप्रेस और मेरे हिन्दी अखबारों की खबरों के अंतर को हिन्दी-अग्रेजी का अंतर मानिये या कुछ और … हिन्दी वाला होने पर शर्म जरूर कीजिये

आज की ‘बड़ी’ खबर पेट्रोल डीजल की कीमत कम करने की औपचारिकता पूरी करने की है जो चुनाव से पहले होती ही है; एक देश, एक चुनाव पैनल की रिपोर्ट भी आई है 

संजय कुमार सिंह

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आज हेडलाइन मैनेजमेंट की कई खबरें हैं। पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ने से लेकर सीएए का प्रचार तक लेकिन सबसे बड़ी खबर इलेक्टोरल बांड से संबंधित डाटा चुनाव आयोग द्वारा समय से पहले सार्वजनिक कर दिये जाने की है। ऐसे में चुनाव आयोग को डाटा सौंपे जाने के बाद डाटा से संबंधित खबरें अखबारों में नहीं आईं। आज भी ज्यादातर अखबारों में पहले पन्ने पर डाटा से संबंधित एक खबर भर है। इंडियन एक्सप्रेस अपवाद है। वहां पहले पन्ने पर विज्ञापन नहीं है और इलेक्टोरल बांड से संबंधित कई खबरें हैं। उसपर आने से पहले यह बताता चलूं कि हेडलाइन मैनेजमेंट की खबरें नहीं होतीं तो इलेक्टोरल बांड की खबर आज सबसे प्रमुखता से छपतीं। लेकिन, एक देश एक चुनाव पर बने सरकारी पैनल की रिपोर्ट जो भी हो, महत्वपूर्ण तो है ही। इसीलिये इसे हेडलाइन मैनेजमेंट की खबर कह रहा हूं। दूसरी खबर, देश के तीन में से दो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की खबर है और यह इतनी देर से हुई है कि चुनाव आयोग को आगामी लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले बहुत कम समय मिलेगा। भले ही आपको यह सामान्य खबर लगे लेकिन इसका समय, इसका आज आना और बहुत कुछ – इसे हेडलाइन मैनेजमेंट का भाग बनाता है। उम्मीद है आप समझ जायेंगे, बताने की जरूरत नहीं है।

ऐसे में आज यही देखना सबसे महत्वपूर्ण है कि इलेक्टोरल बांड से संबंधित सबसे लचर या ‘निष्पक्ष’ खबर किसकी है। इन दिनों पत्रकारिता में निष्पक्षता का उपयोग जब सरकार का पक्ष लेने या समर्थन करने के लिए किया जा रहा है तो यह निष्पक्षता महत्वपूर्ण है। जैसा मैंने पहले कहा, हेडलाइन मैनेजमेंट की खबरें नहीं होतीं तो आज इलेक्टोरल बांड से संबंधित खबरें ही लीड हैं और इंडियन एक्सप्रेस ने इसे ही लीड बनाया है। पहले पन्ने पर कोविन्द पैनल की रिपोर्ट और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की खबर भी है। यह इसलिए संभव हुआ है कि अखबार के पहले पन्ने पर एक भी, माफ कीजियेगा, एक ही विज्ञापन है। मास्टहेड के नीचे, मोदी सरकार की गारंटी। इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर मुख्य रूप से तीन ही खबरें हैं। बाकी इलेक्टोरल बांड से संबंधित खबरें, उनकी चर्चा से पहले आज के अखबारों की लीड जान लीजिये, दिलचस्प है।

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हिन्दुस्तान टाइम्स ने पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर इलेक्टोरल बांड की खबर को लीड बनाया है और शीर्षक है, “चुनाव आयोग ने इलेक्टोरल बांड से संबंधित डाटा अपलोड किया इसमें लॉटरी फंड फर्म सबसे बड़ी दानदाता है”। इसके साथ जो अंश हाइलाइट किया गया है वह है, 12156 करोड़ के बांड खरीदे गये और 12769 करोड़ के रीडीम कराये गये। इसके साथ लिखा है कि उपलब्ध डाटा शुरू से नहीं है। पता नहीं इसे इतनी प्रमुखता देने का क्या कारण है। जो भी हो, मेरे ख्याल से जो चीजें स्पष्ट हैं वो बतानी चाहिये वरना इसके साथ मनमानी की कहानी यह भी थी (नियमों में जो है उसके अलावा) कि रीडीम कराने की अवधि निकलने के बाद नियमों में ढील देकर बांड रीडीम कराये गये हैं। और यह पहले ही पता चला गया था (मैं लिख भी चुका हूं)। उदाहरण के लिए, 01.04.2019 से 11.04.2019 तक 3346 बांड खरीदे गये थे पर 1609 ही भुनाये गये। 1737 रह गये थे। इसी तरह 12.04.2019 से 15.04.2024 तक 18871 बांड खरीदे गये 20421 भुनाये गये। साफ है, 1550 ज्यादा भुनाये गये जो पहले के हैं। इस तरह कुल 22217 बांड खरीदे गये और 22030 बांड भुनाये गये हैं और इस हिसाब से 187 बांड नहीं भुनाए गये हैं।

मेरी दिलचस्पी यह जानने में है कि जो बांड नहीं भुनाये गये वे किस-किस मूल्य वर्ग के हैं और किसने खरीदे थे। पर हिन्दुस्तान टाइम्स जैसा अखबार, जो बता रहा है वह लगभग पुरानी और बेमतलब की बात है क्योंकि जब सरकारी स्तर पर देश के उद्योग-धंधों व्यापारियों को लूटा जा रहा था तो कुछ इधर-कुछ उधर गिराना ही था। खबर यह होती कि किसका गिरा, कहां गिरा, कब गिरा और कितना गिरा। मुझे नहीं लगता कि यह सब बताने की जरूरत है। मैं पाठकों को बताना चाहता हूं कि पत्रकारिता क्या होनी चाहिये और क्या हो गई है। हिन्दुस्तान टाइम्स की आज की लीड का शीर्षक है, “कोविन्द के नेतृत्व वाले पैनल ने ‘एक देश, एक चुनाव’ का समर्थन किया”।         

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टाइम्स ऑफ इंडिया में इलेक्टोरल बांड की खबर लीड है और चार कॉलम की लीड का शीर्षक है, इलेक्टोरल बांड की बंपर जानकारी : लाटरी किंग सैनटियागो नंबर 1 बांड खरीदार। अखबार ने इसके साथ शिखर के 22 खरीदारों की सूची छापी है और बताया है कि इन सबों ने अप्रैल 19 से जनवरी 24 तक 12000 करोड़ के बांड खरीदे। खरीदने वालों के संक्षिप्त परिचय के साथ किसे कितना मिला, भी बताया गया है। जाहिर है यह डाटा पूरा नहीं है और इसके अनुसार भाजपा को कांग्रेस और तृणमूल के मुकाबले चार गुना ज्यादा मिला है। दूसरे नंबर पर तृणमूल है और इस आशय की एक खबर भी है।

द हिन्दू में भी यही खबर लीड है। शीर्षक है, “चुनावी बांड : 22 फर्मों ने 100 करोड़ रुपये से ज्यादा दान दिये, भाजपा को सबसे ज्यादा मिला”। कोविन्द पैनल की रिपोर्ट से संबंधित खबर यहां लीड के बराबर में है। इसका शीर्षक है, पैनल ने एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की। यहां एक और खबर प्रमुखता से छपी है। चार कॉलम की इस खबर का शीर्षक है, सीएए के तहत बिना सबूत आवेदन करने के लिए हम रास्ता तलाशेंगे : शाह। एक और खबर का शीर्षक है, “इस चुनाव में हम भाजपा को बाहर करेंगे : किसान महापंचायत”। द हिन्दू ने इस खबर को पांच कॉलम में छापा है।

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द टेलीग्राफ में आधा पन्ना विज्ञापन है और लीड मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के घायल होने की खबर है। हालांकि, प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल गई है और उनके घर जाने के बाद राज्यपाल अस्पताल पहुंचे थे। यहां चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की खबर कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी के एतराज के साथ सिंगल कॉलम में छपी है और यही हाल एक देश एक चुनाव से संबंधित रिपोर्ट सौंपे जाने की खबर का है। लेकिन तीनों खबरें पहले पन्ने पर हैं। एक और खबर, पेट्रोल-डीजल की कीमत में कमी भी पहले पन्ने पर है और जो खबरें नहीं हैं वो आप ऊपर द हिन्दू की खबरों से समझ सकते हैं। इलेक्टोरल बांड खरीदने वालों की सूची में लॉटरी फर्म सबसे ऊपर शीर्षक से खबर आज द टेलीग्राफ के पहले पन्ने पर लीड से अलग एक ही खबर है जो दो कॉलम में है।

हिन्दी अखबार, अमर उजाला में आज दो पहले पन्ने हैं। पहले पर लीड का शीर्षक है, “पेट्रोल-डीजल दो रुपये सस्ता”। इलेक्टोरल बांड की खबर यहां लीड के बराबर, ढाई कॉलम में है। शीर्षक है, सिर्फ तीन कंपनियों ने 2744 करोड़ चंदा दिया पार्टियों को, उपशीर्षक है, निर्वाचन आयोग ने सार्वजनिक किया चुनावी बॉान्ड का डाटा। अखबार ने 10 चुनावी दानकर्ता की सूची छापी है और एक खबर है, अन्जान कंपनी फ्यूचर गेमिंग सबसे अधिक, 1368 करोड़ के बांड खरीदे। इलेक्टोरल बांड की खबर का अखबार ने जो किया है वह तो सामने है पेट्रोल की कीमत कम होने की खबर के साथ यह भी बताया है कि दूसरे देशों के मुकाबले भारत में दाम कम है (सरकार के तर्क) लिखा है। कोविन्द पैनल की रिपोर्ट और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति वाली खबरें दूसरे पहले पन्ने पर हैं।

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नवोदय टाइम्स में इलेक्टोरल बांड की खबर पहले पन्ने पर नहीं है। यहां दूसरा पहला पन्ना नहीं है। यकीन नहीं हुआ कि ऐसा हो सकता है। मैंने तय किया कि अखबार में यह खबर कहां कितनी और किस शीर्षक से छपी है यह जान ही लेना चाहिये तो पता चला कि पूरे पन्ने पर विज्ञापन वाले पहले पन्ने पर मास्टहेड के बगल की खाली जगह में यह भरती की खबर बना दी गई है। यहां बताया गया है कि खबर पेज 9 पर है। यहां इस छोटी सी खबर का शीर्षक है, चुनावी बांड का आंकड़ा जारी। अंदर भी यही शीर्षक है, चुनावी बांड का आंकड़ा जारी उपशीर्षक है, खरीदारों में अरबपति कारोबारियों से लेकर कम चर्चित संस्थाएं भी। मुझे लगता है कि अच्छी भली खबर के दांत-नाखून निकाल कर अंदर के पन्ने पर छपी इस खबर की चर्चा करने से कहीं देश के खिलाफ काम करने का ‘पाप’ न लग जाये इसलिये इसे रहने देता हूं। 

इलेक्टोरल बांड से संबंधित जानकारी सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद ही चुनाव से पहले जारी हुई है वरना इसे गोपनीय रखने की पूरी कोशिश अंत तक होती रही। इसमें सैकड़ों-हजारों खबरें होने की उम्मीद है और यह सब पहले से छपता रहा है। डाटा किस रूप में रखा गया और किस रूप में जारी किया गया से लेकर एक्सेल में क्यों नहीं है और पीडीएफ क्यों जारी किया गया तक तमाम मुद्ददों पर चर्चा चल रही है तब अखबारों की आज की खबरों से लगता है कि खुद कुछ मेहनत करने, नया ढूंढ़ने की कोशिश करने की बजाय अखबारों ने एजेंसी की किसी एक खबर को आधार मानकर औपचारिकता पूरी की है। पहले पन्ने पर जगह नहीं थी तो अंदर जगह दी जा सकती थी पर यह सब नहीं करके खबर देने की औपचारिकता निभाई गई है। इंडियन एक्सप्रेस निश्चत रूप से अपवाद है। उसकी खबरें और शीर्षक के बहाने इलेक्टोरल बांड की खास बातें इस प्रकार हैं –

  • पार्टियों को किसने पैसे दिये
  • चुनाव आयोग ने बांड खरीदने और भुनाने वालों की सूची सार्वजनिक की
  • याचिकाकर्ता, अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहां वे मिलान के लिए कहेंगे
  • ज्यादातर फर्में ऐसी हैं जिन्हें केंद्र, राज्य से लाइसेंस, मंजूरी चाहिये
  • दान देने वालों की सूची में संरचना, निर्माण, खनन, फार्मा कंपनियों का प्रभुत्व 
  • गोपनीयता का पहला पर्दा हटा,
  • शिखर के 20 दानदाताओं ने कुल 12156 करोड़ में से आधे के बांड खरीदे
  • सबसे ज्यादा दान देने वाले पांच में से तीन फ्यूचर गेमिंग, मेघा इंजीनियरिंग, वेदांता
  • बांड तब खरीदे जब ईडी उनके दरवाजे पर था
  • ईडी ने फ्यूचर गेमिंग के 409 करोड़ जब्त किये, पांच दिन बाद 100 करोड़ के बांड खरीदे
  • चुनाव जीतने के दो महीने बाद टीएमसी को 107 करोड़ मिले
  • 1609 करोड़ के साथ दूसरे नंबर पर है
  • कांग्रेस तीसरे नंबर पर है, 3146 बांड से 1421.8 करोड़ भुनाए 
  • विधानसभा चुनाव जीतने के बाद बांड भुनाना बढ़ा
  • सैनटियागो मार्टिन जो मजदूर से लाटरी किंग बना   
  • सबसे ज्यादा बांड खरीदने वाले ने सबको दान दिया
  • जीएसटी का असर – फार्मा कंपनियों ने एक ही दिन बांड खरीदे
  • 2019 से पहले भाजपा ने 1700 करोड़ पाये
  • इस साल के चुनाव से पहले 202 करोड़
  • 14400 करोड़ की ठाणे-बोरिवोली दोहरी टनल परियोजना का काम पाने से पहले मेघा इंजीनियरिंग ने 140 करोड़ के बांड खरीदे 
  • शिखर के 100 दानदाताओं में कई अनजान इकाइयां हैं
  • गुजरात की फर्मों में 185 करोड़ के बांड खरीदने वाला टोरेंट ग्रुप सबसे ऊपर है

स्पष्ट है कि नोटबंदी अगर लीगलाइज्ड लूट एंड ऑर्गनाइज्ड प्लांडर थी तो इलेक्टोरल बांड अधिकृत वसूली है। और मैं ऐसा यूं ही नहीं कह रहा हूं। इन खबरों से साफ है कि किसने किसलिये किससे पैसे लिये-दिये। इसके बावजूद दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार ने उत्पाद शुल्क में आम नीति में परिवर्तन किया और इस नीति से सरकारी खजाने को 144.36 करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान है। पता नहीं यह 2जी घोटाले से हुए नुकसान जैसा है या उससे अलग फिर भी आप जानते हैं कि उस घोटाले का क्या हुआ, किसने आरोप लगाया, किसने माफी मांगी आदि। जेल हुई, नुकसान हुआ कोई भरपाई नहीं आदि आदि। इस मामले में जांच की सिफारिश के बाद 30 जुलाई 2022 को दिल्ली सरकार ने नई आबकारी नीति को वापस लेते हुए पुरानी व्यवस्था बहाल कर दी थी। फिर भी मनीष सिसोदिया जेल में हैं, जमानत नहीं हो रही है और जमानत तो उमर खालिद की भी नहीं हो रही है। अंतर सिर्फ यह है कि मनीष सिसोदिया निर्वाचित प्रतिनिधि हैं और उनका काम या अपराध वैसा ही माना जाना चाहिये जैसा इलेक्टोरल बांड है और इसे लाने वाले लोग हैं। जिसे असंवैधानिक कहकर सुप्रीम कोर्ट ने रोका है, सरकार उसे सही ठहराती रही। डाटा सार्वजनिक करने से रोकने की कोशिश करती रही। फिर भी कार्रवाई का तो अभी विचार भी नहीं आया है। 

अब आप कल्पना कीजिये कि अगर सभी अखबार इस तरह हमेशा से खबरें छाप रहे होते तो क्या सरकार यह सब कर पाती? पर अखबारों का जो हाल है वह आज भी दिख रहा है। दूसरी ओर, लोग उम्मीद कर रहे हैं कि यू ट्यूबर्स हैं ना, कुछ ना कुछ होगा ही। सच्चाई यह है कि सरकार सबको बंद कराने के उपाय कर रही है। 2014 से पहले भाजपा ने अपने लिए आईटी सेल, ट्रोल सेना बनाई थी अब सत्ता में होने का बेजा लाभ उठाकर सोशल मीडिया को नियंत्रित करने के प्रयास कर रही है। अखबार अपना काम नहीं कर रहे हैं और जो जितना नालायक है  उसे उतना ज्यादा सरकारी विज्ञापन दिया जा रहा है। मीडिया का उपभोक्ता हर कोई है लेकिन इसके क्षरण पर कोई चिन्ता या कार्रवाई नहीं है। मीडिया सरकार के काम पर नजर रखने वाला वाच डॉग है पर अब सरकारी टुकड़े पर पल रहा है। सबसे पहले उसे ठीक करने की जरूरत है।

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