Connect with us

Hi, what are you looking for?

टीवी

सरकार ने जानबूझ कर आजतक को नीचे ढकेलवा दिया है?

समरेंद्र सिंह-

आजतक लगातार पांचवे हफ्ते पिट गया है। तीसरे नंबर पर है। इसके संपादक सुप्रिय प्रसाद ने जो चंडूखाने की टीम तैयार की है उसमें ये दूसरे और तीसरे नंबर पर आ-जा रहा है और पहले पायदान की संभावनाएं बरकरार हैं, तो ये बड़ी बात है। इसके लिए दर्शकों के मजबूत कलेजे को धन्यवाद देना चाहिए।

आजतक के बचाव में एक अनोखी दलील सुनने को मिली। वो ये कि सरकार ने जानबूझ कर आजतक को नीचे ढकेलवा दिया है। पहले तय रणनीति के मुताबिक रिपब्लिक भारत को नंबर वन बनाना था। मगर बार्क टीआरपी विवाद के चलते रिपब्लिक भारत की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में थी। लिहाजा उसकी जगह टीवी9 भारतवर्ष को ऊपर किया गया है। रिपब्लिक भारत दूसरे नंबर पर है। ये फालतू की दलीलें हैं। बार्क की विश्वसनीयता ठीक और रिपब्लिक भारत की संदेह के घेरे में, ये बात अटपटी है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सच ये है कि आजतक की विश्वसनीयता घट गई है। उसका कंटेंट पहले से कहीं अधिक खराब हो गया है। खबरों पर रिएक्शन टाइम भयानक तरीके से बढ़ा है यानी रिस्पांस ढीला है। ऐसा इसलिए कि निकम्मों की फौज जमा हो गई है। मेरा दावा है कि आजतक की मौजूदा टीम में ज्यादातर को खबरों की समझ भी नहीं होगी।

यही नहीं आइडियाज के स्तर पर भी दिवालियापन साफ दिखाई देता है। ऐसा नहीं है कि टीवी 9 और रिपब्लिक भारत कोई ऐतिहासिक कंटेंट बना रहे हैं। परोस तो वो भी कूड़ा ही रहे हैं। मगर उनकी चमक थोड़ी तेज है। रिस्पांस टाइम तेज है। फॉरवर्ड प्लानिंग भी बेहतर है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

आज तक के मौजूदा नेतृत्व की क्षमता और उसकी टीम की दक्षता को देखते हुए कहा जा सकता है कि नंबर तीन का स्थान बहुत ऊंचा स्थान है। कायदे से इसे छठे और सातवें पायदान पर होना चाहिए। आज तक की व्यवस्था सड़ चुकी है और लीडर में कोई विजन नहीं है। एंकर थके हुए और फुके हुए लगते हैं। खबरों की जगह भाषणबाजी होती है। अरुण पुरी को नये लीडर की तलाश तेज करनी चाहिए।


कल रात आजतक में काम कर रहे एक दोस्त ने फोन किया। आजतक को केंद्र में रख कर लिखी गई मेरी पिछली पोस्ट से वो आहत था। उसने कहा कि तुमने लिखा है कि सुप्रिय प्रसाद ने निकम्मों की फौज जमा कर रखी है, तो क्या तुमने मुझे भी निकम्मा कहा है? मेरा दोस्त मेरी ही तरह भावुक इंसान है। मेरी पोस्ट को उसने दिल पर ले लिया और भावुक हो गया। उसे समझाने में मुझे थोड़ा वक्त लगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

बातचीत के क्रम में मैंने उससे पूछा कि पिछले कुछ महीनों में तुमने चैनल को ऐसे कितने सुझाव दिए हैं, जो माने गए हैं? उसमें कहा एक भी नहीं। फिर मैंने पूछा कि तुमसे कितने अहम मसलों पर राय मांगी गई है? उसने कहा एक भी नहीं। मैंने कहा कि फिर तुम फड़फड़ा क्यों रहे हो? तुम्हारी बात ही नहीं हो रही है। तुम्हारा उस चैनल में कोई वजूद नहीं है। उतना भी वजूद नहीं है जितना डेढ़ दशक पहले एनडीटीवी में मेरा वजूद था। इसलिए मस्त रहो। तुम्हारी बात नहीं हो रही।

दरअसल, कोई भी चैनल उसके लीडर और उस लीडर की कोर टीम से चलता है। बाकी लोगों की हैसियत आम कर्मचारी से अधिक नहीं होती। इसलिए आजतक के पतन के पीछे उन लोगों का कोई हाथ नहीं जो सुप्रिय प्रसाद की कोर टीम का हिस्सा नहीं हैं। ऐसे सभी लोगों से गुजारिश है कि वो जज्बाती नहीं हुआ करें। दाल रोटी का बंदोबस्त कर रहे हैं, चुपचाप उसी जुगत में लगे रहें। अहंकार और बेतुका सम्मान बीच में घसीट कर खुद को परेशान नहीं करें।

Advertisement. Scroll to continue reading.

आजतक पिछले पांच हफ्तों से ही नहीं पिट रहा है। शर्मा जी और उनका चैनल बेवजह फुदक रहा है। झूठे दावे कर रहा है। आजतक दो साल से पिट रहा है। करीब दो साल पहले सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बाद अर्णब गोस्वामी की आंधी में ये चैनल और शर्मा जी का चैनल तिनके की तरह उड़ गया था। एक दो हफ्ते नहीं कई हफ्ते तक लगातार पिटता रहा। अर्णब से बस एक ही गलती हो गई, सोनिया गांधी और उद्धव ठाकरे – दोनों पर सीधा हमला बोल दिया। मुंबई में रहते हुए ठाकरे परिवार से पंगा ले लिया। जवाबी कार्रवाई में उद्धव ठाकरे ने अर्णब गोस्वामी को सबक सिखाने के लिए टीआरपी विवाद खड़ा किया। उसकी वजह से आजतक की इज्जत और सुप्रिय की नौकरी – दोनों बच गई।

अब फिर से टीआरपी आने लगी है तो पिटाई का वही सिलसिला जारी हो गया है। यहां सवाल उठता है कि आजतक की पिटाई में सबसे खास बात क्या है? सबसे खास बात ये है कि आजतक की धुलाई खबरों के मौसम में हो रही है। उत्तर प्रदेश चुनाव, रूस-यूक्रेन युद्ध, बढ़ती हुई महंगाई, उफान मारता राष्ट्रवाद – ये मौसम बड़ी खबरों का मौसम था और है। एक से बढ़ कर एक खबरें बाजार में थीं और हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

ये आजतक की अपनी फिल्ड थी। इसमें पिटने का सीधा मतलब है कि आजतक की तेजी खत्म हो गई है। अब उसके लीडर और मुख्य खिलाड़ियों के रिटायर होने का समय नजदीक आ गया है। उन्हें या तो खुद को मथ कर इस खेल के लिए तैयार करना होगा या फिर बाजार से बाहर होना होगा।

बाजार के इस खेल में बीच की जगह नहीं होती है। खासकर उन लोगों के लिए तो कतई नहीं, जिन्होंने खुद को टीआरपी मशीन के तौर पर प्रस्तुत किया है। सुप्रिय प्रसाद ने खुद को टीआरपी किंग के तौर पर बेचा है। ये शेर की सवारी है। नहीं संभले तो यही टीआरपी उनकी और उनके टीम की विदाई का कारण बनेगी।

Advertisement. Scroll to continue reading.
2 Comments

2 Comments

  1. Prashant

    April 16, 2022 at 11:12 am

    Bahut samay baad Bhadas par ek umda, satya (true) or tarkik lekh mila. Aisa laga ki wakaye analysis & Study karke likha gaya hai.

  2. Jai Prakash Sharma

    April 17, 2022 at 12:05 am

    बिल्कुल सटीक

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement