दीपांकर पटेल-
आजतक के रोशन जयसवाल ने एक फर्जी पड़ताल की है.
दावे के आधार पर दावा कर दिया है कि यूपी से लाश बहकर बिहार पहुंच ही नहीं सकती.
गंगा की असल हालत ये है कि मुरादाबाद से लेकर कानपुर उन्नाव, इलाहाबाद काशी से पटना तक लाशें तैर रही हैं.
कहीं-कहीं प्रशासन दाह संस्कार करवाने की कोशिश कर रहा है, ज्यादातर जगहों पर गंगा को पूजने वाले मृत हो चले लोग गंगा मां के हवाले हैं. गंगा मां अपनी गोदी में बच्चे का शव ढो रही है, रो रही है.
पाप धोने वाली गंगा मृत शरीर ढोने वाली गंगा बन चुकी है लेकिन इससे सरकारों का पाप नहीं धुलेगा जिन्होंने इन अनगिनत लोगों को मौत के मुंह में धकेल दिया है.
क्या तैरती लाशें किसी को बदनाम करने की साज़िश हो सकती हैं?
वो लोग जो सरकारी नाकामी और साजिश की वजह से जान गंवा बैठे वो किसी को बदनाम करने की क्या साजिश रचेंगे?
आजतक के रोशन जयसवाल का दावा है कि बनारस में लकड़ी के दाम नहीं बढ़े, दुकानदार गरीबों का अंतिम संस्कार करा देते है.
लकड़ी के दाम बढ़े या नहीं लेकिन बनारस के घाटों से उठने वाला धुआं कितना बढ़ गया है ये हर बनारसी जानता है, मानव शव के जलने की ऐसी हवा इस शहर ने पहले कभी नहीं महसूस की है.
लकड़ी के दाम नहीं बढ़े इससे ये कैसे साबित हो गया कि हर मृतक की सम्मानजनक विदाई हो रही है? ये कैसे साबित हो गया कि यूपी से लाशें बहकर बिहार नहीं पहुंच रही? फिर बंगाल की खाड़ी नहीं पहुंच रही.
मृत शरीर वोट नहीं देते,
वो प्रदेश देखकर नहीं तैरते,
मृत शरीर,
राजनीति नहीं करते,
वो दुनिया के हर बोझ से हल्के हो जाते हैं,
नदी में बहते इन मृत शरीरों को देखकर बता नहीं सकते,
कि ये ऑक्सीजन की कमी हुई मौत है,
या सरकारी साजिश का शिकार हुई मौत,
या दोनों!!
मृत शरीर ऑक्सीजन नहीं मांगते,
वो हांफते भी नहीं,
वो बिना थके तैरते रहते हैं,
शून्य से अनन्त की ओर.
वो हजारों साल प्राचीन किसी शहर को बदनाम करने की साज़िश नहीं रचते.
मृत शरीर सबसे पवित्र होते हैं.