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टीवी

कई महीने से मैंने कोई टीवी न्यूज चैनल नहीं देखा!

Ramji Tiwari : टीवी समाचार चैनलों के प्रति मेरे मन मे भी धीरे-धीरे उदासीनता आती गयी है। इसलिए नहीं कि मैं सर्वज्ञ हूँ। और इसलिए भी नही कि मैं दुनिया से निर्लिप्त हो गया हूँ। वरन इसलिए क्योंकि अपवादों को छोड़ दिया जाए तो समाचार चैनलों की अधिकांश जगह अब ठहरने लायक नही रह गयी है। हम वहां देश-दुनिया की जानकारी लेने के लिए पहुंचते हैं, मगर लेकर लौटते हैं ‘घृणा और नफरत’ का बोझ। लगता है कि यही हमारी दुनिया है। या कि हमारी दुनिया को इसी तरह से घृणा और नफरत से भरा होना चाहिए।

नहीं। मैं नहीं मानता कि हमारी दुनिया मे इतनी घृणा और नफरत है जितनी कि इन समाचार चैनलों पर दिखाई देती हैं। याकि हमारी दुनिया को इसी तरह से होना चाहिए। और यदि हमारी दुनिया मे थोड़ी घृणा और नफरत है भी तो हमारी जिम्मेदारी उसे कम करने की है। उसे बढ़ाने की नहीं, जैसा कि इन चैनलों पर जाकर महसूस होता है।

ऐसे में एक सामान्य आदमी देश दुनिया का हाल जानने के लिए क्या करे। जो टेलीवीजन उसके घर मे सबसे कीमती जगह बना चुका है, उससे वह कैसे विरत रहे। कैसे उसके सामने बैठना छोड़ दे। कहना आसान है, मगर करना बहुत मुश्किल है। कुछ दिनों पहले तक मुझे भी यही लगता था। मगर अब नही। पिछले लगभग कई महीने से मैने टेलीवीजन समाचार चैनल नहीं देखा। कोई चैनल नहीं। इधर बीच तो टी वी रिचार्ज भी नहीं कराया।

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https://www.facebook.com/bhadasmedia/videos/vl.2202130806720692/535206396967370/?type=1

इस सबके बावजूद मैं ठीक से हूँ। देश दुनिया के सभी महत्वपूर्ण समाचार मेरे पास भी पहुँच जाते हैं। या कहूँ तो मैं भी देश दुनिया के उन समाचारों तक पहुंच जाता हूँ जिन्हें एक सामान्य आदमी को जानना चाहिए। जिनसे एक साधारण नागरिक को परिचित होना चाहिए। मेरे पास इन तक पहुंचने के फ़िलवक्त में तीन तरीकें हैं। एक स्थानीय भाषा ( हिंदुस्तान ) का अखबार, जिससे कि पिछले दिन की महत्वपूर्ण खबरें मिल जाती हैं। कुछ स्थानीय खबरें भी।

एक अंग्रेजी का अखबार इंडियन एक्सप्रेस मंगाता हूं। गांव में रहने के कारण ये मुझे एक दिन देर से मिलता है, मगर जिसके जरिये मुझे मुख्य खबरों का विश्लेषण भी मिल जाता है। किसी मुद्दे पर विभिन्न तरह की राय भी और दुनिया की ख़बरों की झलक भी।

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सोशल मीडिया के दो चैनल फेसबुक और ट्वीटर से मुझे तुरत किसी महत्वपूर्ण खबर की सूचना हो जाती है। चार-छः घंटे के अंतराल पर जिसे एक बार देख लेता हूँ। इस एहतियात के साथ कि यहां पर कुल मिलाकर एक डेढ़ घंटे से अधिक का वक्त न गुजरे। व्हाट्सएप लगभग ना के बराबर देखता हूं। व्हाट्सएप ग्रुप तो बिल्कुल भी नही रखता।

ऐसा करने से सभी जरूरी खबरें तो मेरे पास पहुंचती रहती है। मगर उनके साथ परोसा गया उन्माद नहीं पहुंचता। और यह इस दौर की सबसे बड़ी जरूरत है। कहें तो प्रत्येक दौर की भी।

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बलिया के रहने वाले कवि और लेखक रामजी तिवारी की एफबी वॉल से.

https://www.facebook.com/bhadasmedia/videos/1988903951206472/
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