कोलकाता। अपने राज्यों में मजदूरों की कमी से उबरने के लिए पंजाब, तेलंगाना और दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्री बिहार फोन लगा कर मजदूरों को मनाने की अपील कर रहे हैं। अधिकतर राज्यों में कृषि और तमाम उद्योग धंधों में प्रवासी मजदूरों की कमी महसूस की जा रही है। लॉकडाउन के बाद मजदूर या तो अपने गांव लौट चुके हैं या कुछ अब तक अलग-अलग जगहों में फंसे हुए हैं।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार लॉकडाउन का हवाला देकर भले ही दूसरे राज्यों में फंसे बिहार के लोगों को वापस लाने में कोई रुचि नहीं ले रहे हैं। मगर उद्योग धंधों में अन्य राज्यों के मजदूरों की कमी महसूस की जा रही है। इस कारण कई मुख्यमंत्री मजदूरों की खुशामद कर अपने यहां बुला रहे हैं।
इससे पहले लॉकडाउन से घबराये प्रवासी मजदूरों की तकलीफ की सुनवाई नहीं हो रही थी। मदद की उम्मीद खो चुके मजदूर पैदल ही अपने गांवों की ओर चल पड़े। इन लोगों ने घर वापसी की जब-जब आवाज उठाने की कोशिश की तब पुलिस और प्रशासन ने धमकाकर और लाठियां बरसाकर इन पर काबू पा लिया। अब मंदी का असर दिखते ही सबको मजदूरों का ख्याल आया है। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने बिहार फोन लगाकर मुख्यमंत्री नीतिश कुमार से कहा है कि वो मजदूरों से अपील करें कि जो मजदूर जहां हैं वो वहीं रहे, वहां की सरकारें उनका ख्याल रखेंगी।
इधर तेलंगाना के मुख्य सचिव सोमेश कुमार ने उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी को फोन कर कहा कि वे मजदूरों को तेलंगाना की चावल मिलों में वापस काम पर लौटने को राजी करें। उन्होंने मजदूरों को वापस लाने के लिए तेलंगाना से बस भेजने की भी पेशकश की है। मुख्य सचिव ने भरोसा दिलाया कि तेलंगाना में मजदूरों की हर जरूरत का ख्याल रखा जायेगा।
अब भी देश के कई शहरों में बिहार के लोग फंसे पड़े हैं। कहीं से मजदूर तो कहीं से छात्र अपनी घर वापसी के लिए मुख्यमंत्री से गुहार लगा रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार पर इसका कोई असर नहीं हो रहा है। उन्हें इसमें कोई दिलचस्पी नहीं। राजस्थान के कोटा में फंसे छात्रों को निकालने के लिए यूपी की योगी सरकार ने दो सौ भेजी हैं, वहीं इस कदम को नाइंसाफी करार देते हुए नीतिश कुमार ने कहा कि यह लॉकडाउन के नियमों का उल्लंघन है। ऐसा किया जाना गलत है।
राज्य सरकार हो या फिर केंद्र सरकार सभी दावा कर रही हैं कि स्थिति नियंत्रण में है। हम दूसरे देशों के मुकाबले अच्छी स्थिति में हैं। मगर लॉकडाउन की वजह से मजदूरों और गरीबों का जीना मुश्किल हो गया है। नौकरी गंवा चुके मजदूर भूखमरी से लड़ रहे हैं। राहत का सामान भी हर किसी को नहीं मिल रहा।
दूरदर्शन पर पांच-पांच सौ रुपये पाकर धन्य हो रही कुछेक महिलाओं के वीडियो भी लगातार वाइरल हो रहे हैं। मगर उनमें से कोई भी गरीब और मोहताज नजर नहीं आ रही। ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि सरकार किन्हें राहत पहुंचा रही है, गरीब तो अब भी राहत का इंतजार कर रहे हैं। सरकार जल्दी न जागी तो जिन लोगों को आज वह मोहताज समझ रही है, कल प्रवासी मजदूरों और बेरोजगारों की यही फौज अपने हक के लिए उनकी नींद हराम करने से नहीं चूकेगी।
कोलकाता की वरिष्ठ पत्रकार श्वेता सिंह का विश्लेषण.