नोएडा : सुब्रत राय सहारा ने अपने मीडिया हाउस को एक बार फिर एक कमेटी बनाकर संचालित करने का प्रयास किया है. ऐसा शायद इसलिये कि सहारा में जो भी मीडिया हेड बनता है, वह सबसे पहले अपने रिश्तेदारों व बिरादरी के लोगों को ही नौकरी देकर समायोजित करने लगता है. इसके पहले उपेन्द्र राय ने भी मीडिया हेड बनते ही सेवा विस्तार पाकर कार्य कर रहे लगभग 90 लोगों को बर्खास्त करके कांट्रैक्ट पर अपने लोगों को नौकरी बांट दी थी. यही नहीं, अपनी बिरादरी को लगभग दो दर्जन रिपोर्टरों, सब एडीटरों व अधिकारियों की मनमानी सेलरी भी बढ़ा दी थी. हालांकि बाद में सुब्रत राय के आदेश पर सभी को हटाया गया और सेलरी बढ़ोत्तरी के आदेश पर भी रोक लगा दी गयी.
अब नयी व्यवस्था में राष्ट्रीय सहारा के समूह संपादक विजय राय सहारा समय चैनल के भी आल इंडिया एडिटोरियल हेड बनाये गये है, जबकि गौतम सरकार अब सहारा मीडिया के मैनेजमेंट पार्ट के आल इंडिया हेड होंगे. यह दोनों अधिकारी अब सीधे मीडिया हेड अभिजीत सरकार को रिपोर्ट करेंगे. यह आदेश 26 जुलाई को श्री सुब्रत राय सहारा के हस्ताक्षर से जारी हो गया है. इस आदेश की प्रतिलिपि सहारा के सभी यूनिटों में नोटिस बोर्ड पर चस्पा भी कर दी गयी है.
दूसरी तरफ मीडिया के बेहतर संचालन के लिये सुब्रत राय ने एक पांच सदस्यीय मीडिया क्वर्डिनेशन कमेटी गठित कर दी है. इस कमेटी में सभी प्रदेशों के सहारा समय चैनलों के हेड को सदस्य बनाया गया हैं. मसलन इस कमेटी में सीबी सिंह, राव वीरेन्द्र सिंह, मनोज मनु, प्रबुद्ध राज सिंह और रमेश अवस्थी सदस्य बनाये गये है. यह कमेटी अब मीडिया के सभी तरह के मामलों में अपनी राय देगी. यह कमेटी सीधे ग्रुप एडीटर विजय राय और गौतम सरकार को रिपोर्ट करेगी.
इसी तरह लखनऊ में राष्ट्रीय सहारा के स्थानीय संपादक दयाशंकर राय को हटवाकर स्थानीय संपादक बने मनोज तोमर की मुसीबत अब बढ़ गयी है. प्रबंधन ने अब दयाशंकर राय को लखनऊ में ही कंटेन्ट एडीटर बनाकर मनोज तोमर के सामने वाले खाली पड़े चैम्बर में ही बैठा दिया है. बताया जा रहा है कि श्री राय अब खबरों के चयन में भी दखल दे सकेंगे. हालांकि श्री तोमर ने अपनी अनुपस्थिति में अपने सारे अधिकार खबरों के चयन से लेकर पूरे एडिटोरियल के सभी सदस्यों की छुट्टियां स्वीकृत करने व अखबार के सभी पेज निर्धारित समय पर छुड़वाने की जिम्मेदारी डिप्टी न्यूज एडीटर अभयानन्द शुक्ला को सौंप दी है. श्री शुक्ला सभी जिलों के खबरों के संयोजन का भी कार्य देखने के लिये निर्देशित किये गये हैं.
Insaf
July 27, 2016 at 4:27 pm
सहाराश्री जी की पहल अच्छी है. अब वरिष्ठजनों को कनिष्ठ के प्रति उदारता दिखानी चाहिए. याद वही किये जाते है जो देता है . सर, मौका मिला है अब तो योग्य कर्ताव्ययोगी के लिए कुछ कीजिये. सहारा में बहुत दिन तक एक सामान दिन नहीं रहते है.
कुमार कल्पित
July 27, 2016 at 6:03 pm
एक कहावत है ” खाली बनिया का करय इ कोठली का धान उ कोठली करय” 25 साल के सहारा मीडिया के इतिहास में 15-20 साल से सहारा सुप्रीमो यही कर रहे हैं। कभी कार्टूनिस्ट गोविंद दीक्षित को सीधे संपादक फिर समूह संपादक बना देते हैं तो कभी जूनियर रिपोर्टर स्वतंत्र मिश्र को मैनेजर और ब्यूरो के अदना से रिपोर्टर रणविजय सिंह को समूह संपादक। इसी तरह पैरा बैंकिंग के सुधीर कुमार के मीडिया हेड बना दिया जाता है। अभी हाल के कुछ वर्षो में कभी संवादसूत्र रहे उपेन्द्र राय को मीडिया का सर्वेसर्वा बना दिया। उपेन्द्र ने अपने भाई विजय राय को समूह संपादक बना दिया। इसके पहले विजय राय संपादक तक नहीं थे। अब विजय राय क्यों पीछे रहते उन्होंने फोटोग्राफर रहे जीतेंद्र नेगी को देहरादून संस्करण का संपादक बना दिया ।
सच में ये एक और अखबार नहीं रचनात्मक आंदोलन है।
मीडिया रिपोर्टर
July 27, 2016 at 6:37 pm
एक मदारी हुआ करता था और एक जमूरा। मदारी डमरू बजाता था और चूतड मटकाता था। यही हाल सहारा मीडिया और उसके संपादकों का है। सहारा सुप्रीमो डमरू बजाते हैं और सहारा के कथित संपादक ठुमके लगाते हैं। शायद ही ऐसा कोई मीडिया हाउस हो जहां इतनी टांगखिंचाई हो। क्या कभी सुना है कि अमर उजाला, दैनिक जागरण,हिन्दुस्तान, भाष्कर, राजस्थान पत्रिका और अन्य किसी मीडिया संस्थान में कुछ-कुछ अंतराल पर वही वही व्यक्ति घूमफिर आ जाता हो। अपवाद को छोड़ दें क्योंकि अपवाद उदाहरण नहीं होता। सुधीर कुमार आये गए, गोविन्द दीक्षित आये गए। हो सकता है कि प्रतीक्षा में हों कि न जाने कब हमारे दिन फिरें। स्वतंत्र मिश्र आये गए । हैं सहारा से बाहर लेकिन कभी भी आ सकते हैं रणविजय सिंह फर्श से अर्श पर पहुँचे । अब मीडिया से पैरा बैंकिंग में धकिया दिये गए। वो भी इंतजार में होंगे कि न जाने कब दिन बहुर जाएं। उपेन्द्र राय रंक से राजा बन गए हालांकि अब दूसरी बार वनवास काट रहे हैं। सहारा में ऐसे लोगों की भी चांदी रहती है जो निकाल दिये जाते हैं। कुछ साल पहले विजय राय निकाल दिये गए। आरोप के साथ फोटो भी छपा। इन दिनों सीधे समूह संपादक बना दिये गए। और और ऐग्जिट प्लान के तहत बाहर जाने में अपनी भलाई समझने वाले पटवारी से पत्रकार बने मनोज तोमर अपना गुट हाँवी होते ही संस्था के वफादार हो गए और संपादक की कुर्सी पर विराजमान हो गए । अब यह अलग बात है कि जब उनका गुट डाउन होगा तो उनकी भी काटी जाएगी। सहारा की उथल-पुथल देखकर देहरादून संस्करण के नए नए संपादक बने जितेन्द्र नेगी भी अपने कैमरे को धार देने में जुटे हुए होंगे कौन जाने पुराने पेशे में वापस आना पडे। सच में यह एक और अखबार नहीं है।
अरुण श्रीवास्तव
July 27, 2016 at 7:03 pm
जागरण छोडने के बाद कमलेश्वर जी ने कहा, जागरण में रहते हुए मैंने साम्प्रदायिकता की नाली साफ की। अच्छा हुआ आज वे नहीं हैं नहीं तो सहारा की हालत देखकर वे क्या कहते ? इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। वैसे आज शायद ही कोई ऐसा अखबार हो जिसे कमलेश्वर चाहिए। किसी समय में हिंदी दैनिक ” आज ” के संपादक रहे बाबू राव विष्णु राव पराडकर (हो सकता है कि सही न हो ) ने कहा था कि आने वाले दिनों में अखबार बहुत अच्छे होंगे , सुंदर छपाई होगी, लेटेस्ट कवरेज होगी लेकिन किसी संपादक की इतनी हिम्मत नहीं होगी कि वे मालिक से आंख मिलाकर बात कर सके। शायद यह परम्परा कमलेश्वर जी के साथ ही चली गई।