दयाशंकर शुक्ल सागर-
जितना पढ़ता हूं उतना अज्ञान के सागर में डूबता चला जाता हूं. सोचता हूं कितना जीवन व्यर्थ की चीजों में चला गया. सिर्फ रोजी रोटी कमाने में कितना वक्त गवां दिया. इन दिनों पश्चिम के दार्शनिकों के बारे में पढ़ रहा हूं.इसलिए कई दिनों से गायब था. इससे पहले भी कई बार उनका दर्शन समझने की कोशिश की फिर सब कुछ ऊपर से निकल गया तो छोड़ दिया. मुझे लगा मेरा बौद्धिक स्तर अभी वहां तक नहीं पहुंचा है. इसलिए छोड़ दिया.
इधर फिर शुरू किया. शुरूआत से शुरू किया. तो ज्ञान की खिड़की खुलती नजर आ रही है. मजे की बात मेरी प्रेरणा सुकरात बने. उनके बारे में मोटा मोटा यही पता था कि वह यूनान के एक बड़े दार्शनिक थे और उन्हें कैद कर लिया गया और एक जहर देकर मार डाला गया. सुकरात के जीवन की बहुत गहाई में मैं नहीं गया था. आज मुझे लगा उनके बारे में कुछ लिखूं. उनके लिए जिन्हें सुकरात के बारे में मेरी तरह ज्यादा नहीं पता.
सुकरात यूरोप के सबसे महान दार्शनिक माने गए हैं. लेकिन आपको जानकर हैरत होगी कि इस आदमी ने न कोई किताब लिखी और न ही कोई जीवन दर्शन दिया. लेकिन फिर भी कहा जाता है कि इस आदमी ने पश्चिम के दर्शन शास्त्र की नींव रखी. इस वाकई गजब का आदमी था वो.
ऐंथस में अभी अभी लोकतंत्र की शुरूआत हुई थी. और ये आदमी ईसा मसीह के जन्म से कोई 400 साल पहले ऐंथस के बाजारों में यूं ही घूमता फिरता था. और लोगों को पकड़ पकड़ कर उनसे सवाल पूछता था. वह लोगों से पूछता बुद्धिमत्ता, सही गलत, प्रेम ईश्वर, आत्मा का सही मतलब क्या है? वो लोगों से कहता-मुझे इन सबके बारे में कुछ भी नहीं पता. तुम क्या सोचते हो बताओ?
कभी वह किसी मोची के दुकान पर बैठ जाता कभी किसी बढ़ाई की दुकान पर. वो मोची को जूते बनाते हुए देखता. वो मोची और बढ़ई को भी सोचने के लिए कहता. उनसे सवाल पूछने के लिए कहता. हालांकि उसके पास भी कई सवालों के जवाब नहीं होते. पर वह खुद सोचता बहुत था. इसलिए उसके पास बहुत सवाल होते. वह उनके जवाब किताबों में भी खोजता. इसलिए वह विद्वान तो हो ही गया था. लेकिन फिर भी उसने घोषणा की कि ‘मैं केवल इतना जानता हूं कि मैं कुछ नहीं जानता.’ ये सुकरात का प्रसिद्ध वाक्य है.
बहुत पहले मैंने उसका ये वाक्य पढ़ा था तो लगा कि ये कोई दार्शनिक बात होगी. पर अब जब सुकरात पर लिखी किताब पढ़ रहा हूं तो पता चला कि ये एक सहज घोषणा थी. देखते देखते वह ऐंथस के युवाओं में लोकप्रिय हो गया. उसकी बातें मजेदार होती और सवाल भी बहुत जायज होते.
बहुत जल्द सुकरात की गिनती ऐंथस के विद्वानों में होने लगी बहुत से युवा उसके चेले हो गए. प्लेटो उनमें से एक था. बाद में उसने ही अपनी किताब में दुनिया को सुकरात के बारे में बताया. वर्ना आज शायद ही कोई सुकरात को जानता. शहर के बुद्धिजीवी मित्र उससे कहते बुद्धिमत्ता से भला एक धोबी, मोची, कारीगर का क्या लेना देना? आप उनसे क्यों बात करते हैं?
वे कहते-मुझे लगता है एक अच्छा जूता बनाना भी कम बुद्धिमत्ता पूर्ण काम नहीं है. ये भी एक कला है. जैसे आप कोई चित्र या पेंटिंग बनाते हैं. वह फर्नीचर की दुकान पर खड़ा होकर सोचता एक बढ़ई ने एक पलंग बनाया और एक मेज. दोनों के चार-चार पैर बनाए.जब दोनों के चार चार पैर हैं तो एक मेज एक पलंग क्यों है? वो क्या है जो एक बढ़ई को बढ़ई बनाता है? जरूर इसका विचारों से कुछ लेना देना है. फिर ये कम्बखत विचार क्या चीज है? क्या ये कोई चीज है जिसे हम स्पर्श कर सकते हैं? या सूंघ सकते हैं?
फिर एक और सवाल है. पलंग या मेज को बनाने से पहले इस बढ़ई ने अपने दिमाग में पलंग की परिकल्पना की होगी? फिर ये विचार उसके दिमाग में कहां से आया होगा? सुकरात का मानना था कि हम सब कुछ भी करने से पहले कुछ करने के लिए अपने दिमाग में उस चीज का खाका तैयार करते हैं. वो कहते-असल में चीजें वैसी नहीं होती जैसी वे दिखाई देती हैं?
हम बिना सोचे समझे बस स्वीकार कर लेते हैं. जैसे मेज या पलंग के चार पैरों का होना. हम ज्यादा सोचना नहीं चाहते. इसलिए हमारा जीवन हल्की चीजों के इर्दगिर्द भौतिकवाद में फंसा रह जाता है. क्या हम बस इसी लिए इस संसार में आए हैं? इसके लिए उन्हें एक यूनानी शब्द का अविष्कार किया- डायलेटिक. जिसका मतलब है गहन तार्किंक संवाद.
तो मेरा मतलब ये है कि हम भी क्यों नहीं किसी भी चीज पर गहनता से विचार नहीं करते. हम क्यों सिर्फ दुनियादारी में फंस कर रह गए हैं? हम क्यों नहीं वक्त निकाल कर कोई अच्छी किताब पढ़ सकते हैं? हम क्यों नहीं हम अमेरिकी या बिहार चुनाव, या एक्जिट पोल या इस तरह की किसी अन्य मनहूस चीजों से अलग कुछ क्यों नहीं सोचते?
Somas
November 9, 2022 at 2:49 am
Kyonke vichar viheen logon par raj karna aasaan hota hai