सत्येंद्र कुमार-
गोरखपुर जनपद के डी एम साहब इस वक्त पूरे फॉर्म में हैं । भ्रष्टाचारियों का स्टिंग कराकर उन्हें तड़ातड़ जेल भेज रहे हैं । इस नेक काम मे डी एम साहब के सहयोगी लोग भी माहौल की गर्मी भाँप कर इसी बहाने बहती गंगा में अपना हाथ भी धोने को व्याकुल हो चले हैं।
एक ऐसा मामला सामने आया है जिसे देखकर ऐसा लगता है कि गोरखपुर में विभागीय अधिकारियों के बीच एक जबरदस्त रस्साकसी चल रही है ।एक अस्पताल संचालक ने मुख्यमंत्री मंडलायुक्त और जिलाधिकारी गोरखपुर को पत्र भेजकर यह बताया है कि किसी की शिकायत पर डी एम साहब के निर्देशानुसार हाकिम लोगो की मंडली आज से लगभग 15 दिन पहले उसके अस्पताल पर छापेमारी करने पहुँची।
जाँच की औपचारिकता पूरी करने के बाद जब कुछ विशेष कमियाँ नही मिली तो अस्पताल संचालक को बैठाकर पूछा जाने लगा कि अस्पताल के लाइसेंस लेने के लिए सी एम ओ और दो अन्य डिप्टी सी एम ओ को तुमने कितना माल दिया । इस भौचक सवाल को सुनकर अस्पताल संचालक का माथा चकरा गया कि आखिर प्रशासन ही प्रशासन को क्यों रेलने पर तुला है ? अस्पताल संचालक का कहना है कि लगभग दो घंटे तक हाकिम लोग उसके अस्पताल पर जांच के नाम पर उसे सिर्फ सी एम ओ ऑफिस के खिलाफ बयान देने के लिए दबाव देते रहे।
दबाव देने के दौरान डराने के उद्देश्य से उसके अस्पताल का आपरेशन थिएटर भी सील कर दिया गया उसे जेल भेजने की बात कही गयी । इस पर भी जब संचालक टस से मस नही हुआ तो हाकिम लोग अस्पताल का लाइसेंस उठा ले गए । अस्पताल संचालक का कहना है कि पिछले महीने 28 अप्रैल को हुई छापेमारी के बाद वह 13 मई तक हकीमो के आफिस के चक्कर काटता रहा और 13 मई को उससे जबरन चार कागजों पर हस्ताक्षर करा लिए गए।
28 अप्रैल के छापेमारी की रिपोर्ट को हाकिमों ने लगभग 14 दिन तक लटकाये रखा और 13 मई को अस्पताल संचालक से जबरन हस्ताक्षर करवाते हुए उसे डी एम साहब के सामने पेश कर दिया गया । चर्चाओं का बाजार गर्म है कि सी एम ओ आफिस के एक अधिकारी को नापने के उद्देश्य से अस्पताल संचालक से जबरन कागज पर दस्तखत कराये गए और इस साजिश की खबर डी एम साहब को कानो कान नही होने दी गयी।
मामले को देखकर ऐसा लगता है कि अस्पताल की जाँच तो एक बहाना था …असल काम तो किसी और को निपटाना था । इस प्रकरण से विभागीय अधिकारियों के बीच चल रही आपसी खींचतान खुलकर सामने आ गयी है लेकिन फिलहाल इस खींचतान में अस्पताल संचालक बलि का बकरा बन चुका है ।