Connect with us

Hi, what are you looking for?

टीवी

अजीत अंजुम ने गुलामों की भर्ती के लिए इश्तेहार निकाला

चुनाव गुजर जाने के बाद व्यूअरशिप के अकाल से गुजर रहे अजीत अंजुम ने अपने प्लेटफ़ॉर्म के विस्तार के लिए एक वैकेंसी निकाली है। कुछ लोग इसे इंडिपेंडेट मीडिया के अच्छे दिन की तरह देख रहे हैं। लेकिन ठहरकर सोचें तो बेगूसराय के एक भूमिहार सामंत ने घोषित तौर पर ग़ुलामी का इश्तेहार निकाला है। उनकी सबसे हाहाकारी शर्त है, “काम के घंटे जोड़ना जिनकी फ़ितरत नहीं है। देर तक सोने की आदत न हो।” यह एक बर्बर सामंती मानसिकता है।

गौर कीजिए, पूरे इश्तेहार में उन्होंने कहीं नहीं लिखा है कि काम के घंटे अतिरिक्त होंगे तो भुगतान कितना अतिरिक्त होगा। अजीत अंजुम जैसे सामंत की डिक्शनरी में न तो काम के घंटे होते हैं और न ही अतिरिक्त काम का अतिरिक्त भुगतान। ये वही लोग हैं जिन्होंने टेलीविजन को पत्रकारों के बूचड़खाने में तब्दील कर दिया।

जिन लोगों ने टीवी में मुहावरा चलाया कि आने का समय होता है जाने का नहीं। निजी जिंदगी कुछ नहीं होती। प्रेम और सामाजिक संवाद कुछ नहीं होता। दफ्तर दफ्तर और दफ्तर। कामगार को मानसिक बीमार बना देने वाले ऐसे ही सामंतों ने सैकड़ों पत्रकारों को अवसाद में धकेल दिया। ये उन पत्रकारों के बच्चों की हंसी छीन लेने के अपराधी हैं। अजीत अंजुम अपने फ़्रेम में ढेर सारी किताबें रखते हैं। कभी कभार उन्हें पढ़ना भी चाहिए। और केवल पढ़ने से भी नहीं होगा, उन्हें समझने की संवेदना भी चाहिए। काम के घंटे तय करने को लेकर दुनिया में लंबा संघर्ष चला है। क्रांति हुई है। आज भी हो रहे हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

ज़्यादा दिन पुरानी बात नहीं है जब काम के घंटे बढ़ाने पर फ़्रांस के लोगों ने देश ठप कर दिया था। अजीत अंजुम नहीं जानते होंगे कि यूएनडीपी जैसी संस्थाएँ जो लोकतंत्र सूचकांक बनाती हैं, जो हैप्पीनेस इंडेक्स बनता है उसमें एक ज़रूरी फ़ैक्टर है काम के घंटे। दरअसल ऐसे ही अनपढ़ों और शातिरों ने टीवी चैनलों को मानसिक गुलामों के अड्डे में तब्दील कर दिया। क्योंकि पढ़ने-लिखने के लिए समय चाहिए होता है और काम के घंटे व छुट्टियाँ तय होते हैं तो इससे मदद मिलती है।

अजीत अंजुम जब टीवी चैनलों में थे और जब कोई डेस्क छोड़कर जाने के लिए खड़ा होता था तो कहते थे घर जाकर क्या करोगे। उनका बूता चलता तो दफ़्तर में ही लंगर खुलवा देते और चौबीसों घंटे काम लेते।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अजीत अंजुम को बताना चाहिए कि पत्रकार सेमिनार में कब जाएगा, लाइब्रेरी में कब बैठेगा, अपनी या अपने दोस्तों को समय कब देगा, फ़िल्म कब देगा, नाटक कब देखेगा, बच्चों के साथ खेलेगा कब।

न्यूज़ २४ में एक बड़े ज़हीन पत्रकार हुआ करते थे। इन दिनों वो आजतक में हैं। तब अजीत अंजुम न्यूज़ २४ के सुपर सामंत हुआ करते थे। जबतक वो पत्रकार न्यूज़ २४ में रहे उनका वजन लगातार गिरता गया, भारी अवसाद में चले गए। न्यूज़ २४ छोड़ देने के बाद भी उन्हें उस अवसाद से निकलने में बरसों लगे। अजीत अंजुम ने न्यूज़ २४ में कभी ऐप्रेजल और इंक्रीमेंट की पारदर्शी व्यवस्था ही नहीं बनने दी। वो शुद्ध सामंत की तरह चोर दरवाज़े से दरबारियों का जितना वेतन चाहे बढ़ाया करते थे। उन्होंने एक संस्थान को बनने से पहले ही बर्बाद कर दिया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अजीत अंजुम को अपने इश्तेहार के ऊपर मोटे-मोटे अक्षरों में लिखना चाहिए – बेगूसराय के एक बुर्जुआ सामंत को कुछ बँधुआ मज़दूरों की ज़रूरत है। सारी शर्तें मेरी होंगी। और मैं आपका खून पियूँगा। अजीत अंजुम यही करते रहे हैं। लेकिन अब उन्हें ये आदत छोड़ देनी चाहिए। लेकिन आदतें बदलती हैं, आदमी का स्वभाव नहीं। अजीत अंजुम स्वभाव से सामंत हैं। एक शुद्ध भूमिहार सामंत। उनकी बर्बरता के पीड़ितों को कलमबंद किया जाने लगे तो उन्हें चेहरा छिपाने की जगह नहीं मिलेगी। अजीत अंजुम का विज्ञान अनैतिक ही नहीं, आपराधिक और बेहया बर्बरता है।

पत्रकारिता के इतिहास में इसे दर्ज किया जाएगा कि इक्कीसवीं सदी में किसी ने भारत में खुलेआम, डंके की चोट पर गुलामों की भर्ती के लिए इश्तेहार निकाला था। पत्रकारिता के रंगरूटों – कुछ दिन ख़राब खाना खा लेना, सस्ते घर में रह लेना लेकिन ज़ालिमों के हाथ में अपनी नींद गिरवी मत रखना। आँख में आँख डालकर पूछ लेना – पार्टनर काम के घंटे क्या होंगे? क्योंकि ये वो बहेलिये हैं जो उड़ान का सपना दिखाकर सबसे पहले परिंदों के पंख काट दिया करते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.

कुछ अन्य प्रतिक्रियाएँ-

Advertisement. Scroll to continue reading.
2 Comments

2 Comments

  1. Amrapali Sharma

    March 28, 2022 at 6:01 am

    Good reaction on slaves recruitment ad .News media is a medium of exploitation due to such feudal bosses .This mentality is such an insult to journalism.

  2. Journalist R. K. Rana

    March 28, 2022 at 9:19 pm

    वाह क्या खूब लिखा है अच्छे से भड़ास निकाल दी भड़ास मीडिया आभार भड़ास मीडिया का आज के यूथ पत्रकार को समझाने के लिए ☺️

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement