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उत्तर प्रदेश

सीएम अखिलेश ने दुखी मन से दीपक सिंघल के नाम पर मोहर लगाया था!

अजय कुमार, लखनऊ

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिये सत्ता समीकरण साधना कभी आसन नही रहा। इसके बाद भी वह ठीक-ठाक तरीके से सरकार चलाने में सफल रहे तो यह उनकी अपनी काबलियत ही है। सबसे दुखद यह है कि सीएम अखिलेश की बाहर से नहीं, पार्टी के भीतर से ही निगहबानी की जाती है। एक तरफ उनसे उम्मीद की जाती है कि वह स्वच्छ छवि और पारदर्शिता के साथ शासन चलाये, कानून व्यवस्था दुरूस्त रखें। प्रदेश में विकास की गंगा बहाएं, वहीं दूसरी तरफ पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की हठ के कारण उन्हें(अखिलेश को) काम करने का पूरा मौका नहीं दिया जा रहा है। उन्हें काम करने पूरी छूट आज तक नहीं मिल पाई है।

<p><strong><span style="font-size: 8pt;">अजय कुमार, लखनऊ</span></strong></p> <p>उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिये सत्ता समीकरण साधना कभी आसन नही रहा। इसके बाद भी वह ठीक-ठाक तरीके से सरकार चलाने में सफल रहे तो यह उनकी अपनी काबलियत ही है। सबसे दुखद यह है कि सीएम अखिलेश की बाहर से नहीं, पार्टी के भीतर से ही निगहबानी की जाती है। एक तरफ उनसे उम्मीद की जाती है कि वह स्वच्छ छवि और पारदर्शिता के साथ शासन चलाये, कानून व्यवस्था दुरूस्त रखें। प्रदेश में विकास की गंगा बहाएं, वहीं दूसरी तरफ पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की हठ के कारण उन्हें(अखिलेश को) काम करने का पूरा मौका नहीं दिया जा रहा है। उन्हें काम करने पूरी छूट आज तक नहीं मिल पाई है।</p>

अजय कुमार, लखनऊ

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिये सत्ता समीकरण साधना कभी आसन नही रहा। इसके बाद भी वह ठीक-ठाक तरीके से सरकार चलाने में सफल रहे तो यह उनकी अपनी काबलियत ही है। सबसे दुखद यह है कि सीएम अखिलेश की बाहर से नहीं, पार्टी के भीतर से ही निगहबानी की जाती है। एक तरफ उनसे उम्मीद की जाती है कि वह स्वच्छ छवि और पारदर्शिता के साथ शासन चलाये, कानून व्यवस्था दुरूस्त रखें। प्रदेश में विकास की गंगा बहाएं, वहीं दूसरी तरफ पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की हठ के कारण उन्हें(अखिलेश को) काम करने का पूरा मौका नहीं दिया जा रहा है। उन्हें काम करने पूरी छूट आज तक नहीं मिल पाई है।

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उनके हर फैसले पर ‘किन्तु-परंतु’ की दीवार खड़ी कर दी जाती है। इसी लिये कभी उन्हें अपने ही फैसलों के खिलाफ ‘यूटर्न’ लेना पड़ता हैं तो कभी ‘बड़ो’ की जिद्द के आगे कड़वा घूंट पीना पड़ता हैं। यह और बात है हमेशा ऐसा नहीं होता है। कुछ एक मौकों पर अखिलेश वज्र से कठोर भी हो जाते है। चाहें बाहुबली डीपी यादव को पार्टी में शामिल करने के विरोध का मामला हो या फिर बाहुबली मुख्तार अंसारी की ‘कौमी एकता दल’ से विधान सभा चुनाव के लिये गठबंधन की मुखालफत, अखिलेश जरा भी टस से मस नहीं हुए, लेकिन हाल ही में मुख्य सचिव आलोक रंजन के रिटायर्डमेंट के बाद वह अपनी पंसद का मुख्य सचिव नहीं नियुक्त कर पाये, शायद चुनावी साल में इस बात का मलाल अखिलेश को हमेशा सताता रहेगा।

दरअसल, मुख्य सचिव आलोक रंजन के रिटायर होने के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव 1982 बैच के वरिष्ठ आईएएस आफीसर प्रवीर कुमार को नया मुख्य सचिव बनाने का मन बनाये हुए थे। इसी लिये डेपुटेशन पर केन्द्र मे काम कर रहे प्रवीर कुमार को अखिलेश ने पहले से ही यूपी में वापस बुला लिया था। उन्हें फौरी तौर पर कृषि उत्पादन आयुक्त की जिम्मेदारी सौंपते हुए मुख्य सचिव आलोक रंजन के रिटायर्ड होने तक इंतजार करने को कहा गया। आलोक रंजन के रिटायर्ड होने के तुरंत बाद प्रवीर कुमार को कार्यवाहक मुख्य सचिव बना दिया गया। यह सब सीएम की गैर-मौजूदगी में लेकिन उनकी सहमति से हुआ था, जब प्रवीर कुमार को कार्यवाहक मुख्य सचिव नियुक्त किया गया उस समय सीएम विदेश दौरे पर थे। कहा यह गया कि सीएम के स्वदेश लौटते ही प्रवीर कुमार को मुख्य सचिव नियुक्त करने की औपचारिका पूरी कर ली जायेगी।

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यहां तक तो सब कुछ ठीकठाक रहा, लेकिन अचानक 1982 बैच के ही आईएएस अधिकारी दीपक सिंघल का नाम (जो पहले से ही मुख्य सचिव बनने के लिये लॉबिंग कर रहे थे) मुख्य सचिव के लिये रेस में सबसे आगे आ गया। इतना ही नहीं उनके नाम पर आनन-फानन में मोहर भी लग गई। दीपक सिंघल का मुख्य सचिव बनना अप्रत्याशित था। सिवाय इसके की वह (दीपक सिंघल) स्वयं जरूर लगातार यह दावा कर रहे थे कि प्रमुख सचिव तो वह ही बनेंगे। दीपक सिंघल की ताजपोशी होते ही सत्ता के गलियारों मे चर्चा छिड़ गई कि आईएएस सिंघल को मुख्य सचिव बनाने में शिवपाल यादव की भूमिका अहम रही। वह उनकी पसंद के अधिकारी थे। चर्चा यह भी है कि वैसे, भले ही शिवपाल यादव सिंघल को मुख्य सचिव नहीं बनवा पाते, मगर अमर सिंह की समाजवादी पार्टी में इंट्री के साथ सिंघल की दावेदारी को पंख लग गये थे। शिवपाल और अमर सिंह मिलकर एक और एक ग्यारह हो गये। यहां नही भूलना चाहिए कि अमर सिंह जब सपा से बाहर हुए थे, तब तक आईएएस सिंघल उनकी ‘गुडलिस्ट’ में ही थे। शायद यही वजह थी, सिघल अपने मुख्य सचिव बनने के बड़े-बड़े दावा कर रहे थे।

बात यही तक सीमित नहीं थी। प्रवीर कुमार की दावेदारी कमजोर होने की एक और वजह भी थी, वह वजह थे सपा नेता और नगर विकास मंत्री आजम खान से आईएएस प्रवीर कुमार के खराब संबंध। यह संबंध करीब तीन वर्ष पूर्व खराब हुए थे। उस समय प्रवीर कुमार बतौर प्रमुख सचिव नगर विकास विभाग के रूप में आजम खान के अधीन कार्य कर रहे थे। आजम का कहना था कि प्रवीर कुमार मुस्लिम विरोधी है। आजम की बातों से दुखी होकर ही प्रवीर कुमार केन्द्र में चले गये थे। जानकार बताते हैं कि प्रवीर कुमार को मुख्य सचिव बनाये जाने की चर्चा छिड़ी तो आजम ने दो टूक कह दिया था कि अगर ऐसा हुआ तो उनके लिये मंत्री बने रहना मुश्किल होगा। यानी आजम बगावत की मुद्रा में थे। प्रवीर कुमार की मुख्य सचिव के पद पर ताजपोशी नहीं हो पाने को इसी नाराजगी से जोड़ कर देखा गया। कहा यह गया कि पार्टी के तीन बड़े नेताओं की मुखालफत को नजरअंदाज करके प्रवीर कुमार को मुख्य सचिव बनाना शायद मुख्यमंत्री के लिये आसन नहीं रहा होगा, इसी लिये उन्होंने प्रवीर के मामले में अपने कदम पीछे खींच लिये होंगे।

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वरिष्ठ आईएएस अधिकारी प्रवीर कुमार के मुख्य सचिव नहीं बन पाने के संबंध में ऊपर जो थ्योरी दी गई है। उस पर अखिलेश खेमा बिल्कुल भी विश्वास नहीं करता है। अखिलेश के करीबी चोरी-छिपे बताते हैं कि असल में शिवपाल यादव तो स्वयं ही दीपक सिंघल को मुख्य सचिव बनाये जाने के पक्षधर नहीं थे, लेकिन खबर ऐसी उड़ाई गई कि वह (शिवपाल)  कुछ बोल ही नहीं पाये। सच्चाई से पर्दा उठा तो सत्ता के गलियारों  से पता चला कि असल में प्रवीर कुमार की मुख्य सचिव के पद पर ताजपोशी नहीं हो पाई तो इसके लिये उनकी छवि कसूरवार थी। आईएएस प्रवीर कुमार की स्वच्छ छवि और कर्मठता जैसी खूबियां ही उनकी खामियां बन गई।

असल में कुछ वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों को लगता था कि प्रवीर कुमार के मुख्य सचिव बनने पर उनकी ‘दाल’ नहीं गल पायेगी। इसमें प्रमुख रूप से काफी सशक्त समझी जाने वाली एक वरिष्ठ महिआ आईएएस अधिकारी भी शामिल थीं, जिनकी इस समय शासन में तूती बोलती है। प्रवीर कुमार के मुख्य सचिव बनता देख सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव की नजदीकी यह महिला आईएएस अधिकारी तुरंत एक्शन में आ गई। नेताजी को दीपक सिंघल के नाम पर राजी करने में इस महिला आईएएस को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी। सीएम अखिलेश ने दुखी मन से दीपक सिंघल के नाम पर मोहर लगा दी। यह सब तब हुआ जबकि सपा प्रमुख लगातार तमाम मंचों से यह दावा करते रहते हैं कि वह अखिलेश सरकार में किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं करते हैं।

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बहरहाल, सू़त्र यह भी बताते हैं कि सीएम अखिलेश ने पूरे घटनाक्रम के बाद प्रवीर कुमार को मिलने को बुलाया और गोलमोल शब्दों में उन्हें (प्रवीर कुमार) मुख्य सचिव नहीं बनाने पर खेद भी जताया था। इसके साथ ही अखिलेश ने उन्हें आश्वस्त भी किया था कि उनके साथ नाइंसाफी नहीं होगी। इसी के बाद आईएएस प्रवीर कुमार को नोएडा / ग्रेटर नोयडा और ताज एक्सप्रेस-वे का अध्यक्ष (चेयरमैन) बनाने का अहम फैसला लिया गया। इस पद पर रहते प्रवीर कुमार को मुख्य सचिव के अधीन काम नहीं करना पड़ेगा। यह पद कई मायनों में मुख्य सचिव के बराबर का माना जाता है।

लेखक अजय कुमार यूपी के वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.

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