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उत्तर प्रदेश

शायद वो अखिलेश था

खास मित्र से क्षमायाचना सहित। …….शायद वो सन 1990 था। मैं होली पर जयपुर से भरतपुर गया था। वहां पहुंचने पर पत्रकार मित्रों से पता चला कि मुलायम सिंह यादव का पुत्र धौलपुर के मिलिट्री स्कूल में पढ़ता है और उसने वहां कोई कांड कर दिया है। इस खबर की डिटेल कहीं नहीं छपी थी पर इसने मेरे मन में क्लिक किया, हर कीमत पर की जाने वाली स्टोरी की तरह।

<p>खास मित्र से क्षमायाचना सहित। .......शायद वो सन 1990 था। मैं होली पर जयपुर से भरतपुर गया था। वहां पहुंचने पर पत्रकार मित्रों से पता चला कि मुलायम सिंह यादव का पुत्र धौलपुर के मिलिट्री स्कूल में पढ़ता है और उसने वहां कोई कांड कर दिया है। इस खबर की डिटेल कहीं नहीं छपी थी पर इसने मेरे मन में क्लिक किया, हर कीमत पर की जाने वाली स्टोरी की तरह।</p>

खास मित्र से क्षमायाचना सहित। …….शायद वो सन 1990 था। मैं होली पर जयपुर से भरतपुर गया था। वहां पहुंचने पर पत्रकार मित्रों से पता चला कि मुलायम सिंह यादव का पुत्र धौलपुर के मिलिट्री स्कूल में पढ़ता है और उसने वहां कोई कांड कर दिया है। इस खबर की डिटेल कहीं नहीं छपी थी पर इसने मेरे मन में क्लिक किया, हर कीमत पर की जाने वाली स्टोरी की तरह।

धौलपुर मेरा परिचित इलाका नहीं था। मैंने मास्टर हरभान सिंह को अपने साथ धौलपुर चलने के लिए मनाया। उनका खर्चा उठाने की जिम्मेदारी भी ली। वे सीपीआई के कर्मठ कार्यकर्ता थे और पार्टी के अखबार के संवाददाता भी। वो साथ चलने के लिए तैयार हो गए।

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हम दोनों धौलपुर पहुंचे। अपनी परंपरागत प्रैक्टिस के तहत वहां के स्थानीय अखबारों के ऑफिस में जाकर जानकारी चाही। ये अद्भुत अनुभव था। अखबारों के संपादकों की जुबानें बंद थीं। वे कुछ भी बोलने को तैयार नहीं थे। प्रदुम्नसिंह और बनवारी के बारे में पूछने पर तो जुबान, क्या शरीर भी साथ देने से मना कर देते थे। इतने डरे हुए पत्रकार मैंने जिंदगी में नहीं देखे, पर जिस काम को करने गया था, उसकी यथासंभव जानकारी जुटाई।

पता चला कि मुलायम सिंह के पुत्र ने स्कूल की कैंटीन में किसी बात पर नाराज होकर हंगामा किया है। बाद में स्कूल से बाहर निकल कर शहर में भी कुछ हंगामा किया। मिलिट्री स्कूल ने उसे तुरंत निकाल दिया है और जानकारी मिलने पर मुलायमसिंह यादव उसे वापस ले गए। ये खबर जब मैंने अपने तत्कालीन प्रिय अखबार को दी तो तमाम प्रशंसा के बाद संपादकजी ने छापने से इंकार कर दिया था।

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कारण था सिर्फ, यूपी से विज्ञापन आने की उम्मीद पर धौलपुर मुझे आज भी याद है तो सिर्फ डरे हुए पत्रकारों और छोले वाले उबले अंडों के कारण। बाद में यह स्टोरी मैंने कल्पित के आग्रह पर ‘खबरनवीस’ के पुनर्प्रवेशांक को सौंप दी थी। यह उस अंक की कवर स्टोरी बनी, जिसका पारिश्रमिक मिला सिर्फ 50 रूपए, यानि कि खर्च का हिस्साभर भी नहीं। उसका चैक भी मैंने कभी बैंक में जमा ही नहीं कराया।

धीरज कुलश्रेष्ठ के एफबी वॉल से

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