मनीष दुबे-
18 अप्रैल 1948 को उत्तर प्रदेश के आगरा से शुरू हुआ अख़बार अमर उजाला. मोटामोटी 74 साल हो गए. बलिया से अखबार का पत्रकार नकल मामले में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. अखबार की नींद उचटी जब मसला भड़ास4मीडिया में छपा. खबर छपने के बाद जब भड़ास को चारों तरफ से समर्थन मिला तब जाकर अखबार को होश आया और अपने पत्रकार के समर्थन में खबरें प्रकाशित कीं.
लेकिन तवज्जो अब भी दबकर ही दी जा रही है. पहले पन्ने पर सरकार की स्तुति है. एमएलसी चुनाव की 36 में 35 सीटें जीतने की खबर है.
लाला रामदेव के रुचि सोया का विज्ञापन है. वही रुचि सोया जो रामदेव ने फर्जीवाड़ा कर झटका है. फिर एक कोने में बलिया पत्रकार का मामला है. ‘बलिया पेपर लीक : पत्रकारों की गिरफ्तारी पर लोकसभा में हंगामा’ ये टाइटल है.
अभी कल ही इस अखबार ने मनीष गुप्ता हत्याकांड के आरोपी इंस्पेक्टर के चिनहट स्थित आवास को गिराने की बात छापी थी. मनीष गुप्ता की पत्नी का बयान भी छापा गया था. हत्या के बाद मकान पर बुलडोजर चलने की बात पर मनीष गुप्ता की पत्नी ने सरकार का आभार प्रकट किया था।
यही तो छापना भी था अमर उजाला को. क्योंकि अगर सरकार की लेड़ी तर न करनी होती तो मनीष गुप्ता की पत्नी को यह भी बताना चाहिए था कि आरोपित का मकान अवैध था, जिसपर लखनऊ विकास प्राधिकरण की तरफ से बुलडोजर भेजा गया था.
खैर रामदेव से लेकर माहेश्वरी तक सब बनिया का व्यापार है. फल फूल रहा है. लोग तो हैं ही फूल. जैसा खिलाओ खिल जाते हैं.
लेकिन इस दरम्यान bhadas जैसी वेबसाइटें जरूर एक भरोसा बनाती हैं. उन तमाम पत्रकारों के बीच जिनकी रीढ़ आज भी सीधी है. जो चिकनी चुपड़ी बातों की बजाय सपाट कहते करते हैं. उन्हें भरोसा है उनकी लड़ाई भड़ास और Yashwant Singh जरूर लड़ेंगे. जैसे बलिया के पत्रकारों के लिए लड़ी, आवाज उठाई.
इससे पहले भी भड़ास ने खूब बड़ी बड़ी लड़ाइयां लड़ी हैं. इन सब मामलों में एक समय ‘मीडिया का लादेन’ की संज्ञा पाए यशवंत की जीवटता वाकई काबिले तारीफ है.
जै जै.