-सत्येंद्र पीएस-
अमेरिका का बाउंस बैक गज्जब है। 33% वृद्धि! महाशक्ति देश ऐसे ही होते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के स्थायी सदस्यों में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, चीन में केवल रूस और चीन की हालत थोड़ी खराब है।
वरना जो यूरोपियन पूंजीवाद के आलोचक होते हैं वह भी मौका पाने पर वहीं बस जाना चाहते हैं।
मुझे इन चर्चित देशों से इतर बेल्जियम, डेनमार्क, नीदरलैंड वगैरा अच्छे दिखते हैं, लेकिन समस्या यह है कि वह अपने यहां किसी असभ्य देश के नागरिक को बसने देना तो दूर की बात, घूमने आने की इजाजत भी बहुत छानबीन के बाद देते हैं। शरणार्थी टाइप को घुसने की बात ही जाने दें। शायद इसीलिए वे अपराध, धार्मिक कट्टरता, बेकारी आदि से पूरी तरह मुक्त बने हुए हैं।
अमेरिका की एक खासियत देखें। वहां की मीडिया जनरली कमजोर का साथ देती है। पिछले राष्ट्रपति चुनाव में भी ट्रम्प के खिलाफ लिखा जाता था, इस बार भी लिखा जाता है। भारत का ट्रेंड यह है कि अगर एक ही राज्य में एक ही मुद्दे (जैसे बिहार चुनाव) पर नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी का भाषण हो रहा हो तो नरेंद्र मोदी 5 कॉलम खबर बनेंगे और राहुल गांधी सिंगल कॉलम। अमेरिका में इसका उल्टा है।
चीन बहुत तेज बढ़ रहा है। उम्मीद है कि वह भी जल्द विकसित देश में आ सकता है। और सबसे दिलचस्प यह है कि बांग्लादेश बहुत शानदार प्रदर्शन कर रहा है और करीब हर ह्यूमन इंडेक्स पर दक्षिण एशिया के सभी देशों से आगे है। हाल फिलहाल में वहां धार्मिक कट्टरता हाशिये पर चली गई है और भारत के कपड़ा एक्सपोर्ट के बाजार पर बांग्लादेश छा गया है।
अमेरिका की सबसे बड़ी ताकत है डॉलर। किसी को कहीं दूसरे देश से तेल साबुन भी खरीदना हो तो वह डॉलर पर निर्भर है। और किसी देश की मुद्रा की कोई औकात ही नहीं है। डॉलर का विकल्प तलाशने की अब तक की सभी कवायदें व्यर्थ साबित हुई हैं।
मेरी बस यही कामना है कि भारत की भी इकोनॉमी बाउंस बैक करे। निर्मला सीतारमण और संजीव सान्याल तो बोल रहे हैं कि अगले वित्त वर्ष में मामला टनाटन हो जाएगा। आगे देखते हैं