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अमित शाह ने दंगाइयों को सबक सिखाने और हिम्मत नहीं होने का दावा किया – दिल्ली, हरियाणा भूल गये?

संजय कुमार सिंह  

आज भी अलग-अलग अखबारों में अलग लीड है। हालांकि छह में से तीन अखबारों में लीड एक ही है और वह प्रचार है। इसलिए उनपर आने से पहले मैं खबर की बात करूंगा जो सिर्फ इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर है। यह खबर इंडियन एक्सप्रेस में भी लीड नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस की लीड और महत्वपूर्ण है उसकी चर्चा फिर कभी या कोई और करेगा। आज सबसे पहले चर्चा उस खबर की जो इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर है। खबर का शीर्षक है, अमित शाह ने प्रधानमंत्री को 2002 के दंगाइयों को सबक सिखाने, कोविड के टीके और राम मंदिर का श्रेय दिया। यह खबर अहमदाबाद डेटलाइन से एक्सप्रेस न्यूज सर्विस की है यानी सामान्य खबर है और पढ़ने से पता चलता है कि अमित शाह ने यह बात सानंद ग्राम पंचायत में कही और गुजराती में कही है। अखबार ने उसका गुजराती से अंग्रेजी अनुवाद छपा है और मैं अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद करके पढ़ और समझ रहा हूं। इसलिए ठीक-ठीक जो कहा गया है वह कुछ और या थोड़ा बहुत अलग हो सकता है लेकिन अमित शाह ने कहा है और एक्सप्रेस ने छापा है तो इसीलिए कि महत्वपूर्ण है और इसीलिए मैं भी उसकी चर्चा कर रहा हूं।

कृपया इस खबर के शब्दों पर न जायें और इसके भाव व तथ्यों को समझें। इसे मैं इसलिए रेखांकित कर रहा हूं कि यह दूसरे अखबारों में नहीं है जबकि देश के गृहमंत्री और प्रधानमंत्री के करीबियों में सबसे करीब दिखने वाले अमित शाह ने श्रेय दिया है तो इसका महत्व है। खबर के अनुसार सानंद में अमित शाह ने भारत को 2047 तक विकसित देश बनाने और गुलामी की मानसिकता को जड़ से खत्म करने का प्रण लिया। खबर के अनुसार उन्होंने कहा, पहले हमलोग देखते थे, रोज बम विस्फोट होता था  …. इतने कि पत्रकार छापना भूल जाते थे। पर एक बार सर्जिकल हमले से हमने पाकिस्तान को सबक सिखाया …. नरेन्द्र भाई ने देश को सुरक्षित बनाया है। कहने की जरूरत नहीं है कि ऐन चुनाव से पहले पुलवामा हो गया और संसद पर हमले की बरसी के दिन संसद की सुरक्षा फिर भेद दी गई और दो युवक धुंआ फैलाने वाले कैन लेकर लोकसभा में कूद गये। कश्मीर में पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा किये और बताये जाने वाले हमलों की तो गिनती भी याद नहीं है।

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यह व्यवस्था है। संसद भवन नई बनी है। राजनीति के तहत सेंगोल लगाया गया है। उसके बाद की। देश की सुरक्षा के लिए गृहमंत्री जिम्मेदार हैं। संसद में इसपर बयान नहीं दिया है और गुजरात में यह भाषण। गुजरात की खबर दिल्ली में पहले पन्ने पर नहीं होना बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात यह है कि इस खबर और केंद्रीय गृहमंत्री के इस दावे के बावजूद आज के अखबारों – हिन्दुस्तान टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया और द हिन्दू में लीड का शीर्षक है, लोकसभा अध्यक्ष ने कहा, सांसदों का निलंबन सुरक्षा में सेंध से संबंधित नहीं है। उन्होंने यह भी कहा है कि दोनों को जोड़ना दुर्भाग्यपूर्ण है। द हिन्दू के उपशीर्षक के अनुसार सजा की कार्रवाई सदन में हंगामा करने के लिए है और यह बात उन्होंने संसद सुरक्षा की समीक्षा के लिए बनी उच्चाधिकार प्राप्त समिति के सदस्यों को लिखी चिट्ठी में कही है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने इस मुख्य खबर के साथ खास बातों के बॉक्स का शीर्षक लगाया है, राजनीतिक विवाद गहरा हुआ। इसके तहत कहा गया है, विपक्ष अपनी मांग पर अड़ा हुआ है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह 13 दिसंबर की घटना पर संसद में बयान दें।

इस तरह आप देख सकते हैं कि वास्तविकता क्या है और अखबार की खबरें क्या हैं। जो नहीं समझे उनके लिए मैं अपनी बात स्पष्ट कर दूं। नए बने संसद भवन की सुरक्षा भेदकर दो बेरोजगार छात्र (जो पेशेवर अपराधी या आतंकी नहीं हैं) दर्शक दीर्घा से लोकसभा में कूद गये। संसद में प्रवेश की उनकी सिफारिश भाजपा सांसद ने की थी। सबके सब हिन्दू हैं जिस धर्म की रक्षा का दावा और प्रचार यह सरकार और उसके समर्थक करते हैं। सरकार या भाजपा की तरफ से इस घटना पर अधिकृत बयान नहीं है। विपक्षी सांसदों ने विरोध किया तो 14 लोगों को निलंबित कर दिया गया। एक और को निलंबित किये जाने की खबर है जो उस दिन संसद में थे ही नहीं। मुझे लगता है कि यह सरकार की कार्यशैली और कार्य के प्रति कार्य करने वालों की गंभीरता बताती है पर अभी यह मुद्दा नहीं है। इसके सिवा कि नए बने संसद भवन में बहुत ही प्रचार और अनुष्ठान के साथ सेंगोल स्थापित किया गया है। तमिलनाडु के तंजावुर में स्थित तमिल विश्वविद्यालय में पुरातत्त्व के प्रोफेसर एस राजावेलु के अनुसार तमिल में सेंगोल का अर्थ ‘न्याय’ है।

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इसके बावजूद संसद में कूदने वालों और उनके साथियों पर यूएपीए लगाया गया है। केंद्रीय गृहमंत्री संसद और देश के प्रति अपनी जवाबदेही निभाने की बजाय प्रधानमंत्री की प्रशंसा कर रहे हैं और उन्हें ऐसी चीजों का श्रेय दे रहे हैं जिसकी जरूरत नहीं है। जो उपलब्धि या श्रेय लेने लायक नहीं है। कायदे से मीडिया यह सब बताता रहता तो ऐसा दावा ही नहीं किया जाता और दावा किया गया है तो संबंधित तथ्यों और संदर्भों के साथ छापा जाना चाहिये था ताकि अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता। पर गृहमंत्री 2047 में विकसित भारत बना रहे हैं जब वे खुद 85 साल के होंगे। नरेन्द्र मोदी अगर तब तक स्वस्थ रहे तो 97 के होंगे। और 50 दिन में सपनों का भारत बनाने के अपने वादे को 50 साल बाद सच होते देख पायेंगे। यह अमित शाह और नरेन्द्र मोदी की राजनीति है और शायद इसीलिए नरेन्द्र मोदी ने देश के 140 करोड़ लोगों को छोड़कर एक पूर्व तड़ी पार को गृहमंत्री बनाया है। पर वह भी अलग मुद्दा है।

आइए, उन बातों की चर्चा कर लें जिसका श्रेय वे नरेन्द्र मोदी को दे रहे हैं। जैसा मैंने पहले कहा, अखबारों में यह सब चर्चा हो रही होती तो मतदाताओं को पता रहता और सरकार भी ऐसे काम करती जिससे उसकी आलोचना नहीं हो। लेकिन इस सरकार को वह चिन्ता ही नहीं है। गृहमंत्री ने अपने समर्थकों के बीच कह दिया। बात कानों-कान फैल जायेगी, चुनाव में उसका असर भी होगा पर मीडिया उसकी आलोचना नहीं करेगा। जनता को सच नहीं बतायगा। अगर गृहमंत्री के सभी दावों की बात करूं तो अखबारों की खबरों पर यह टिप्पणी बहुत लंबी हो जायेगी इसलिए सिर्फ एक मुद्दे की बात करूंगा वह है, दंगाइयों को सबक सिखाने की। अभी तक तो खबर छपती रही है कि दंगाई बरी हो गये। बिलकिस बानो के बलात्कारी छूट गये, दिल्ली से गुजरात गई सुरक्षा बलों की टीम को हवाई अड्डे पर इंतजार करवाया गया और यह सब लोगों को गुस्सा निकलने देने के लिए था और ऐसा दावा करने वाला जेल में है आदि आदि।

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ऐसे में दंगाइयों को सबक सिखाने का दावा गलत नहीं है तो मामला दंगा करने वाले हिन्दू आरोपियों को संरक्षण देने का हो सकता है।  जहां तक सबक सिखाने के बाद फिर से दंगा नहीं करने की हिम्मत की बात है, हमलोगों ने हाल में हरियाणा की खबरें पढ़ी हैं और वह तो बुलडोजर न्याय के बाद की बात है और दंगा गुजरात से गुड़गांव माफ कीजियेगा गुरुग्राम तक पहुंच गया है। दिल्ली में दंगे हुए ही थे। यह अलग बात है धर्म विशेष के लोगों को झूठे मामले में फंसाने के कई मामले सामने आये हैं। गुजरात भारत का विशेष राज्य हो सकता है उससे सत्ता की सीढ़ियां चढ़ना आसान हो सकता है पर गुड़गांव में दंगा होगा, नवरात्र में मांस नहीं मिलेगा तो उनका क्या होगा जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम करते हैं और भारत में रहना चुना है। सच्चाई यही है कि दंगा गुजरात से गुरुग्राम तक पहुंच चुका है, पुलवामा का कुछ पता नहीं चला ना पहले ना बाद में पर दावा किया जा रहा है। इसी तरह टीके की सफलता पर जो भी कहा जाये अचानक हुई बंदी से परेशानी, मजदूरों को घर पहुंचाने के लिए बसें देने की पेशकश पर प्रतिक्रिया और बाकी तमाम बातें लोगों को याद हैं भले अखबार में नहीं छपतीं।  

संसद की सुरक्षा में सेंध का मामला आतंकवादी हरकत नहीं है। भले ही एयर स्ट्राइक से सबक सिखा दी गई हो। पर बेरोजगारी और तानाशाही का विरोध तो है ही। उसपर गृहमंत्री ने कुछ नहीं कहा पर चर्चा उसकी नहीं है, विरोध करने वाले सदस्यों को निलंबित करने की मनमानी है पर उसे संसद में हंगामा कहा जा रहा है जो पहले के प्रधानमंत्रियों के समय में ज्यादा होता था और निलंबन कम। राहुल गांधी ने कहा भी है कि इसका संबंध बेरोजगारी और महंगाई से है। इसे इंडियन एक्सप्रेस (द संडे एक्सप्रेस), द टेलीग्राफ और नवोदय टाइम्स ने पहले पन्ने पर छापा है। दूसरी ओर, संसद की सुरक्षा भेदने के आरोपी ललित झा के पिता, देवानंद झा ने कहा है, मेरे बेटे का विरोध करने का तरीका गलत हो सकता है लेकिन बेरोजगारी की आवाज उठाना गलत नहीं। जिस उम्र मे बच्चे खेलते कूदते मस्ती करते है उस उम्र में मेरा बच्चा जो सवाल उठा रहा है वो भी सोचिये। उसने कोई चोरी नहीं की, कभी कोई अपराध नहीं किया, जीवन में किसी पर हाथ नहीं उठाया, आज उसे आतंकवादी बताया जा रहा है? आज के दौर में जिस बच्चे के  कमरे में आजाद, भगत सिंह और सभी महापुरूषों की तस्वीरें सजी हो उसको देश विरोधी बताया जा रहा है? मेरा बेटा बेकसूर है, अदालतों को न्याय देने के लिये आगे आना चाहिये! (@DeepakSEditor  के ट्वीट से)। लाख टके का सवाल है, क्या यह संभव है?

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यहां याद करने वाली बात है कि बिलकिस बानो के मामले में जब अपराधियों को बरी कर दिया गया तो मामला सुप्रीम कोर्ट में आया और तब जज ने कहा था कि पूरी कोशिश है कि मामला मेरे सामने नहीं आये और संभवतः वही हुआ। द हिन्दू की एक खबर के अनुसार, यह मामला न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) केएम जोसेफ की अगुआई वाली पिछली पीठ के समक्ष बार-बार आया था। हालाँकि, रिहा किए गए लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले विभिन्न वकीलों द्वारा उठाए गए प्रक्रियात्मक आपत्तियों के चक्रव्यूह के कारण लगातार सुनवाई स्थगित होती रही। यह मामला न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) केएम जोसेफ की अगुवाई वाली पिछली पीठ के समक्ष बार-बार आया था। हालाँकि, रिहा किए गए लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले विभिन्न वकीलों द्वारा उठाए गए प्रक्रियात्मक आपत्तियों के चक्रव्यूह के कारण लगातार सुनवाई स्थगित होती रही। इस संबंध में न्यायमूर्ति जोसेफ ने (19 मई 2023 को) मौखिक टिप्पणी की थी, “मुझे लगता है कि यह आपके लिए स्पष्ट होना चाहिए कि क्या हो रहा है… मेरे लिए समस्या यह है कि मैं 16 जून को सेवानिवृत्त हो रहा हूं, लेकिन मेरा अंतिम कार्य दिवस 19 मई है। यह स्पष्ट है कि वे नहीं चाहते कि हम मामले को सुनें।” यह अदालत की स्थिति है। हाल में आपने जज की इच्छा  मृत्यु की मांग वाले खबर पढ़ी होगी।

मीडिया की हालत आप जानते हैं कि थोड़ा बहुत विरोध कर सकने वाले एनडीटीवी पर पहले छापा पड़ा फिर अदाणी समूह ने खरीद लिया। फिर सरकार के खिलाफ काम करने वाले बेरोजगार होते गये। कैसे खरीदा वह भी कहानी है पर अब तो समाचार एजेंसी आईएएनएस को भी खरीदने की कहानी है। यह भी खबर आज द टेलीग्राफ में ही पहले पन्ने पर है। आज की खबरों की प्राथमिकता भी देखने-समझने लायक है। कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसा अक्सर होता है। पर यह आम आदमी के समझने लायक नहीं है।    

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