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अंग्रेजी अखबारों के लिए यूएई में ‘हिन्दू मंदिर’ का उद्घाटन सबसे बड़ी खबर

उमर खालिद ने जमानत याचिका वापस ली, यह द टेलीग्राफ के लिये ही पहले पन्ने लायक बड़ी खबर है

संजय कुमार सिंह

इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ इंडिया और हिन्दुस्तान टाइम्स ने आज यूएई (संयुक्त अरब अमीरात) के अबूधाबी में ‘हिन्दू मंदिर’ के उद्घाटन की खबर को प्रमुखता से छापा है। द हिन्दू और टेलीग्राफ में ऐसा नहीं है। यहां किसानों की खबर को ज्यादा महत्व मिला है लेकिन किसानों के साथ-साथ उमर खालिद की खबर आज टाइम्स ऑफ इंडिया के पहले पन्ने पर नहीं है। हिन्दुस्तान टाइम्स में किसानों की खबर पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर है और उमर खालिद की खबर सिंगल कॉलम में आठ लाइनों की है। हिन्दी अखबारों में किसानों के आंदोलन को तो प्रमुखता मिली है पर उमर खालिद की खबर गायब है। हालांकि ‘हिन्दू मंदिर’ का उद्घाटन पहले पन्ने पर फोटो के साथ हिन्दी के दोनों अखबारों में भी है। किसानों ने सरकारी ड्रोन से आंसू गैस का मुकाबला करने के लिए पतंग उड़ाने का फैसला किया है। यह द टेलीग्राफ में पहले पन्ने पर है। किसान आसमान में पतंग के धागों का जाल बुनेंगे ताकि ड्रोन को दूर रखा जा सके। और केंद्र सरकार किसानों के प्रतिनिधियों से चंडीगढ़ में वार्ता करेगी।

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उमर खालिद की याचिका

उमर खालिद ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी जमानत याचिका वापस ली, यह बड़ी खबर है लेकिन आज द टेलीग्राफ में ही पहले पन्ने पर है। आज इंडियन एक्सप्रेस में भी यह खबर (पहले पन्ने पर) नहीं है। हालांकि, एक खबर है जो दूसरे अखबारों में नहीं है। इसके अनुसार चीन ने एलएसी के पास बने, खाली पड़े रक्षा गांवों में अपने नागरिकों को पहुंचा दिया है। चीन के ये गांव सेना के लिए चिन्ता की बात है। अभी यह पता नहीं चला है कि वहां रहने के लिये लाये गये लोग सेना के हैं या नहीं। किसान आंदोलन की खबर यहां दो कॉलम में है। आज की खबरों में उमर खालिद की खबर कई कारणों से महत्वपूर्ण है लेकिन ज्यादातर अखबारों ने इसे महत्व नहीं दिया है। जेएनयू के पूर्व छात्र नेता खालिद को सितंबर 2020 में गिरफ्तार किया गया था और उस पर आपराधिक साजिश, दंगा, गैरकानूनी रूप से एकत्र होने के साथ-साथ उसपर यूएपीए  के तहत कई अन्य आरोप लगाए गए थे। तब से वह जेल में है।

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पुलवामा के शहीद

इसके बावजूद नरेन्द्र मोदी ने यूएई में कहा और  कई अखबारों ने आज प्रमुखता से छापा है। अमर उजाला का शीर्षक है, समावेशी …. सबको साथ लेकर चलने वाली सरकारों की जरूरत। यह तब है जब किसान आंदोलन पर हैं। मुख्यमंत्री के घर हमला हो जा रहा है, एक विपक्षी (सहयोगी) राजनीतिक दल कहकर सत्तारूढ़ दल के उम्मीदवार का समर्थन कर रहा है, एक मुख्यमंत्री एक उपमुख्यमंत्री जेल जेल में है, तीसरे पर गिरफ्तारी की तलवार है क्योंकि किसी को राज्य का विकास चाहिये और किसी ने विकास करते हुए भ्रष्टाचार कर दिया है। इसमें अन्नाता भुला दिये गये। अपनी मांग याद दिलाने दिल्ली (राजधानी) आ रहे हैं तो उन्हें रोकने के लिए दिल्ली सीमा पर ऐसे उपाय किये गये हैं जैसे पाकिस्तान सीमा पर नहीं किये गये थे और किये गये होते तो शायद पुलवामा नहीं होता। कल उस घटना के पांच साल हो गये पर पुलवामा में हुए हमले में मारे गये रक्षा कर्मियों के परिवार से किये गये वायदे पूरे नहीं हुए हैं।

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ना सम्मान ना वादे पूरे

राहुल गांधी ने भी शहीदों के परिवार के लोगों से मुलाकात की। टाइम्स ऑफ इंडिया में एक खबर जबलपुर डेटलाइन से है। खबर के अनुसार पास के एक गांव में शहीद अश्विन कच्छी को याद किया गया। इस मौके पर सुरक्षा कर्मियों के अलावा उनके परिवार से मिलने कोई नहीं आया। अखबार ने लिखा है कि मध्य प्रदेश सरकार ने भी तब कई वादे किये थे जो पूरे नहीं हुए। टाइम्स ऑफ इंडिया ने उमर खालिद की खबर भले नहीं दी है पर बताया है कि फूलन देवी के बेहमई कांड के लिए 43 साल बाद एक व्यक्ति को उम्र कैद हुई है। अमर उजाला में भी यह खबर पहले पन्ने पर प्रमुखता से है।

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अदालती व्यवस्था

43 साल बाद सजा की खबर तो प्रमुखता से है लेकिन उमर खालिद को जमानत नहीं मिलने की खबर को वो महत्व नहीं मिला जो मिलना चाहिये। सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि यूएपीए जैसे मामले में बेल नियम नहीं है और निचली अदालतों से जमानत नहीं मिलने के बाद अक्टूबर 2022 से लेकर फरवरी 2024 के बीच सुप्रीम कोर्ट में 14 बार समय मिलने के बावजूद भिन्न कारणों से उसकी सुनवाई नहीं हुई और वह जमानत से वंचित रहा। दूसरी ओर, हाल में खबर थी कि गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों को अनुचित और अवांछित बताते हुए उन्हें रद्द करने की अपील की है। दोबारा जेल भेजे गये लोगों में से एक को जमानत मिल गई यह खबर इससे पहले आई थी। 

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मणिपुर में फिर हथियार लूटे

द टेलीग्राफ में आज पहले पन्ने पर एक खबर मणिपुर की है। शीर्षक है, भीड़ ने मणिपुर के शस्त्रागारों से हथियार लूटे। इसके साथ छपी एक पुरानी फोटो के कैप्शन से बताया गया है कि राजधानी इंफाल के पूर्वी जिले में मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह के पैतृक आवास पर भीड़ ने हमले की कोशिश की तो आरएएफ और सीआरपीएफ के लोग तैनात किये गये थे। आप जानते हैं कि मणिपुर की हालत मई 2023 से खराब है, स्थिति अभी भी नियंत्रित नहीं है, नागरिक असुरक्षित हैं, सरकार की ओर से स्थिति को ठीक करने के चाहे जो प्रयास हुए हों, प्रधानमंत्री अभी तक वहां गये नहीं और मुख्यमंत्री को बदला भी नहीं गया है। मुख्यमंत्री के घर पर हमले की आज प्रकाशित तस्वीर 29 सितंबर 2023 की है। कहने की जरूरत नहीं है कि दिल्ली में इसकी खबरें भी ठीक से नहीं दिखाई देती हैं, अखबारों की भूमिका पर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के लिए गिल्ड के खिलाफ ही एफआईआर हो गई थी। ऐसे में नेशनल मीडिया को वहां अपने प्रतिनिधि तैनात करने चाहिये थे, पता नहीं वह भी हुआ है कि नहीं।

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प्रधानमंत्री का अलग राग

इस हालत में प्रधानमंत्री अबू धाबी में सबको साथ लेकर चलने वाली सरकारों की जरूरत बता रहे हैं पर ये नहीं पता है कि वे अचानक दोहा क्यों जा रहे (गये) हैं और छुट्टी पर जा रहे हों ऐसा नहीं है क्योंकि छुट्टी वो लेते नहीं हैं औऱ 18 घंटे काम करने वाला प्रधानमंत्री ऐसे देश से बाहर रहेगा तो काम कैसे चलेगा। वह भी देश को बताये बिना। भले ही वे यह दावा कर रहे हैं और अमर उजाला ने बताया है कि विश्व सरकार शिखर सम्मेलन में उन्होंने कहा है कि सरकार पर लोगों का भरोसा बढ़ा है। प्रधानमंत्री ने किस आधार पर और किस पैमाने से ऐसा कहा, यह पता नहीं चला। इंडियन एक्सप्रेस में आज ही खबर है कि कुश्ती फेडरेशन में ब्रजभूषण शरण सिंह के बेटे औऱ सहयोगी कुश्ती फेडरेशन में काबिज हो गये हैं। पहलवान बजरंग पूनिया तथा साक्षी मलिक ने अपना विरोध फिर शुरू करने की चेतावनी दी है।

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अखबारों की चिन्ता

इस स्थिति में अखबारों को ‘डूबती विरासत’ की चिन्ता है और सोनिया गांधी के राजस्थान से राज्यसभा का पर्चा भरने पर नवोदय टाइम्स ने रायबरेली के राजनीतिक मायने बताये हैं और कहा है, रायबरेली में खत्म होता एक परिवार का वर्चस्व और यह भी कि (वंशवाद विरोधी सरकार के राज में) प्रियंका गांधी चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं है। द टेलीग्राफ ने सोनिया गांधी के राजस्थान से राज्यसभा के लिए नामांकन दाखिल करने की खबर को लीड बनाया है। फ्लैग शीर्षक है, अमेठी के बाद रायबरेली की पकड़ फिसल सकती है। मुख्य शीर्षक है, सोनिया ने भरोसेमंद चुनाव क्षेत्र छोड़ा। हिन्दुस्तान टाइम्स ने इसे पार्टी के आंतरिक मामले की तरह छापा है, कांग्रेस के एक बड़े बदलाव के तहत सोनिया का राज्यसभा में जाना तय। राज्यसभा चुनाव के भाजपा उम्मीदवारों की खबर अखबारों में प्रमुखता से है।

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दलबदलुओं को ईनाम

हालांकि, किसी ने प्रमुखता से यह नहीं बताया है कि भाजपा औऱ शिव सेना (शिन्दे) ने दलबलुओं को राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया है। वह भी इतनी जल्दी। द टेलीग्राफ ने सिंगल कॉलम की खबर दी है कि भाजपा ने कांग्रेस छोड़कर गये अशोक चव्हाण को और उसकी सहयोगी शिव सेना (शिन्दे) ने मिलिन्द देवड़ा को राज्यसभा के लिए नामांकित किया है। यही नहीं, इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव बीजद की मदद से राज्यसभा में पहुंचेंगे। खबर के अनुसार, उड़ीशा से भाजपा के पास संख्या कम है फिर भी वैष्णव का जीतना तय है क्योंकि बीजेडी ने बयान जारी कर कहा है कि पार्टी राज्य के बृहत्तर हित में वैष्णव की उम्मीदवारी का समर्थन करेगी ताकि रेलवे और दूरसंचार के क्षेत्र में विकास हो सके। इनसे अलग, अमर उजाला ने लिखा है, छह दशक में यह पहला मौका है जब गांधी परिवार के किसी सदस्य ने अपनी राजनीतिक जमीन बचाने के लिए राज्यसभा का रास्ता चुना है। अखबार ने यह भी बताया है कि, 77 साल की सोनिया गांधी ने 2019 के चुनाव के समय कहा था कि यह उनका आखिरी चुनाव है।

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इसमें खबर यही है कि भाजपा के रेल मंत्री को बीजद सहायता दे रहा है क्योंकि उसे विकास चाहिये और गैर भाजपाई सरकारों का आरोप है कि डबल इंजन का मामला न हो तो भाजपा की केंद्र सरकार राज्यों को उसका हिस्सा भी समय पर सही से नहीं देती है। यह अलग बात है कि गाजियाबाद में ट्रिपल इंजन की सरकार होने के बाद भी मनुष्यों के पार्क में गायें चरती हैं और पार्क मनुष्यों के उपयोग लायक नहीं रह गये हैं।

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