हाल में ही संपन्न हुए पुस्तक मेले में महिला पत्रकार और युवा रचनाकार अणुशक्ति सिंह के उपन्यास ‘शर्मिष्ठा : कुरु वंश की आदि विद्रोहिणी’ का लोकार्पण हुआ. वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस उपन्यास में महाभारत की एक उपेक्षित पात्रा शर्मिष्ठा के संघर्ष का वर्णन मार्मिकता से किया गया है. किताब का विमोचन कवयित्री अनामिका, स्वतन्त्र लेखिका और सम्पादक मनीषा कुलश्रेष्ठ तथा कहानीकार रश्मि भारद्वाज आदि के हाथों हुआ.
बाद में एक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया. इसका संचालन रश्मि भारद्वाज ने किया. उन्होंने कहा कि इस उपन्यास में शर्मिष्ठा आधुनिक स्त्री है, जो ऐतिहासिक होते हुए भी, अपनी विचारधारा में आधुनिक है. शर्मिष्ठा वह स्त्री है जो पुत्रवधू के लिए रोती है, ना कि अपने पुत्र के लिए. इस उपन्यास में दो स्त्रियाँ समानान्तर खड़ी होती दिखती हैं.
कवयित्री अनामिका ने कहा कि यह उपन्यास ऐसा है, जैसे इतिहास मिथक बाल खोले सामने बैठा है और इसकी जटाओं को गाँठों के साथ सुलझाने की जो ज़रूरत है, उसे लेखिका अणुशक्ति सिंह ने पूरी किया है. अणुशक्ति सिंह वह आधुनिक स्त्री हैं, जो अलग-अलग कोणों से इतिहास की दबी गुत्थियों को सुलझाती हैं, जैसे बिना सवाल पूछे बर्फ़ की पट्टी दुखती चोट पर रख दी गयी हो. यह मानवीय दृष्टिकोण के माध्यम से लिखा गया उपन्यास है. इसमें कोई एक पात्र प्रधान नहीं बल्कि सभी महत्त्वपूर्ण हैं.
अनामिका ने कहा कि अणुशक्ति ने इतिहास के रिक्त स्थानों की पूर्ति की है, ज्ञान को संज्ञान बनाने की कोशिश की है जिसके लिए वह बधाई की पात्र हैं.
मनीषा कुलश्रेष्ठ ने कहा कि अणुशक्ति ने ‘शर्मिष्ठा’ उपन्यास में कल्पना से भी अधिक सुंदर चित्रण किया है. शर्मिष्ठा ऐसी पात्रा रही है, जिसके पास अभिव्यक्ति की परिस्थिति न थी. ऐसे में इस पात्र को वाणी देना आवश्यक हो जाता है. वहीं ‘शर्मिष्ठा’ का एकल माँ होना भी उस पर लिखने को उन्हें उत्साहित करता है.
ज्ञात हो कि अणुशक्ति की ‘शर्मिष्ठा’ छपने के बाद बिक्री के लिए रखते हुए आउट आफ स्टाक हो गई. इस किताब को इतना जमकर लोगों ने खरीदा कि कोई प्रति नहीं बची. तब वाणी प्रकाशन को सोल्ड आउट का बोर्ड लगाना पड़ा. जल्द ही किताब फिर से मार्केट में आ जाएगी और अमेजन पर भी बिक्री के लिए उपलब्ध होगी.
शर्मिष्ठा के आवरण पर उद्धरित ब्लर्ब मनीषा कुलश्रेष्ठ ने ही लिखा है. पढ़िए उनकी टिप्पणी-
अणुशक्ति की प्रखर लेखनी से हम सब उनकी कुछ प्रकाशित कहानियों और कविताओं के चलते परिचित हैं। पहली पुस्तक कृति के रूप में किसी युवा लेखक का सीधा उपन्यास प्रकाश में आए तो यह साहस और प्रशंसा का विषय है क्योंकि उपन्यास विधा ऐसी विधा है जिसे साधना या तो अभ्यास के साथ आता है, या यह विधा साधने की प्रतिभा आपमें प्रकृति प्रदत्त होती है।
अणुशक्ति ने दूसरा साहस किया है – पौराणिक-मिथकीय पात्र चुन कर। वह भी ऐसा पात्र जिसके आस-पास प्रकाशित पात्र पहले से हैं जिनपर कथा, कविताएं रचे जा चुके हैं।
‘शर्मिष्ठा’ इन चमकते सौर मंडल के सदस्यों – ययाति, पुरुरवा, देवयानी और शुक्राचार्य के बीच एक संकोची चंद्र रही है। इसे अपने जीवनीपरक उपन्यास के माध्यम से प्रकाश में लाने का सार्थक प्रयास किया है अणुशक्ति ने।
शुक्राचार्य की पुत्री, घमंडी, महत्वाकांक्षी और ईर्ष्यालु देवयानी के समक्ष असुरराज वृषपर्वा की पुत्री राजकुमारी शर्मिष्ठा सर्वगुण सम्पन्न होते हुए भी अपने निश्छल व्यक्तित्व के चलते राजकीय जीवन और स्वतंत्रता हार जाती है और देवयानी की दासी बन कर रहती है। फिर चाहे ययाति से उसे प्रेम और पुत्र प्राप्ति हो। हस्तिनापुर तो वही है न, जहां से कोई स्त्री आहत मर्म लिए बिना नहीं लौटती।
शर्मिष्ठा के जीवन-संघर्ष को बड़े सुंदर ढंग से पिरोया गया है इस उपन्यास में। भाषा इतनी सारगर्भित है कि कितना बड़ा कालखंड, परिवेशों, कितने कितने चरित्रों और घटनाओं को सहज ही इस उपन्यास के कलेवर में समेट लेती है। अणुशक्ति ने पौराणिक अतीत से एक पात्र शर्मिष्ठा को चुन कर एक रोचक और पठनीय उपन्यास रचा है….जिसका कथ्य गहरे कहीं समकालीन प्रवृत्तियों पर भी खरा उतरता है। अणुशक्ति को साधुवाद।
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