Connect with us

Hi, what are you looking for?

टीवी

यह पत्रकारिता पर हमला कैसे कहा जा सकता है?

-राजकेश्वर सिंह-

1-किसी आपराधिक मामले में पुलिस किसी को गिरफ्तार कर ले…. और गिरफ्तार किया गया व्यक्ति पत्रकार हो… तो यह पत्रकारिता पर हमला कैसे कहा जा सकता है?

Advertisement. Scroll to continue reading.

2-किसी भी पत्रकार को यह छूट कैसे मिल सकती है कि वह पत्रकार होने के नाते किसी को भी ( नेता-अफसर या फिर कोई और) कुछ भी कह सकता है? बदतमीज़ी कर सकता है या सवाल पूछने पर मनमाफिक जवाब न मिलने पर उसे बोलने ही न दे।

3-अर्नब के साथ खड़े होने वाले लोगों को इस सवाल का जवाब ज़रूर देना चाहिए कि जब अर्नब पत्रकारिता के सभी मानकों की धज्जियां रोज़ उड़ाते थे, तब उन्होंने उनके विरोध में क्या आवाज़ उठाई थी?

Advertisement. Scroll to continue reading.

4-भारतीय आपराधिक प्रक्रिया संहिता में संपादकों / प्रेस मालिकों / स्टार एंकरों के लिए आत्महत्या के लिये उकसाने के मामले में पुलिसिया कार्रवाई के क्या कोई विशेष प्रावधान है? (अर्नब के मामले में दो दो लोगों के सुसाइड नोट मौजूद है)

5-ऐसे मामले में क्या सरकार मुक़दमा चलाने से मना कर दे (जैसा पिछली सरकार ने किया था) या फिर पुलिस जांच करके कार्रवाई करे, जैसा हो रहा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

6-कई लोग कह रहे हैं कि अर्नब पत्रकारीय अपराध किये हैं, लेकिन पुलिस ने जो किया , जैसे किया वह ग़लत है। उसका विरोध होना चाहिए।यह तर्क एक तरह से बौद्धिक बेईमानी वाला है। अर्नब अपराधी भी हैं और पुलिस उनके साथ वह न करें जो प्राय: अपराधियों के साथ करती है। कुछ अराजकता तो पुलिस हर गिरफ़्तारी में करती ही है। तब तमाम बुद्धिजीवी ज़्यादातर चुप क्यों रहते हैं?

7-जब अर्नब ने गंभीर पत्रकारीय अपराध किये है तो फिर यह उदारता उन अपराधियों पर मीडिया क्यों नहीं दिखाता, जिनकी गाड़ियां पुलिस अभिरक्षा में पलट जाती है.या फिर पकड़ने के बाद भी पुलिस मुठभेड़ करती है… तब तो यही मीडिया पुलिस कार्रवाई पर मन ही मन जश्न मनाता है। ग़लत हमेशा ग़लत होता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

8-इन सवालों के आलोक में अर्नब की गिरफ़्तारी से आज एक बात बहुत साफ़ हो गई कि पत्रकारों के भी अपने राजनीतिक दल हैं। उनके अपने पत्रकार हैं और समान विचारधारा वाले ये सब लोग अब खुलकर साथ आ गये हैं। सड़क पर उतर रहे हैं। पत्रकार होकर भी एक लंबे अर्से से पेशगत मर्यादा को दरकिनार कर तमाम ज़रूरी सवालों से मुंह फेरने वाले कई पत्रकार अब सामने आ गये हैं।

पत्रकारों की इन कारगुज़ारियों से आगे के लिए अब यह अच्छा होगा किसी व्यक्ति को पत्रकार के भेष में कुछ और करने की ज़रूरत नहीं होगी, बल्कि वह खुलकर अपने दल, गुट के साथ रहेगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

बस ध्यान यह रखना होगा कि परिस्थितियाँ बदलने पर वह फिर खुद को पत्रकार बताकर निष्पक्ष पत्रकारिता की दुहाई न देने लगे।या फिर नेताओं की तरह अपना दल छोड़कर मौक़े पर फ़ायदेमंद दल के साथ न चला जाये।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement