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न तो तरुण तेजपाल प्रकरण प्रेस पर हमला था और न ही अरनब गोस्वामी कांड अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अटैक है!

-पंकज मिश्रा-

रिया और उसके परिवार के खिलाफ जो कुछ भी हो रहा था वह पर्याप्त कारण था या कहें उससे भी ज्यादा , कि उंस घर मे भी कोई suicide जैसा हादसा हो जाता | और तब भी आप abetment to suicide के केस को पत्रकारिता पर हमला कहते.

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यह तो शुक्र मनाइये कि उस परिवार ने अपना courage और composure बनाये रखा | यह तो तब जबकि आरोपी अपने हिसाब से चैनल के जरिये ” न्याय ” की लड़ाई लड़ रहा था | इसमें चैनल था , एंकर थे , रिपोर्टर थे , दर्शक थे , माने कहने को पत्रकारिता का पीला रैपर था भी |

मगर यह मुआमला तो एक बिजनेस हाउस द्वारा पेमेंट न देकर किसी को इस हद तक कर्ज़ , आर्थिक तंगी में ला देने का है कि अगला suicide कर ले , बकायदा suicide note लिख कर , तो क्या यह प्रेस पर हमला है | एक बड़ा बनिया छोटे बनिये के साथ लूट और ठगी करे उसका पैसा मार ले , वो आदमी और उसकी मां आत्महत्या कर ले और बड़का बनिया न्याय योद्धा बना सबको रोज ललकारता फिरता रहे , और अचानक फ्रीडम of प्रेस का icon बने , ऐसा किस समाज मे होता है |

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तरुण तेजपाल पर molestation का केस हुआ , क्या वह प्रेस पर हमला था …

ऐसे तो कुलदीप सेंगर पर केस सन्सद पर हमला हुआ , राजनीति पर हमला हुआ |

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ग़ज़ब तर्क है भाई | महान पत्रकार अमीश देवगन के वचन याद कीजिये , ऐसी ही बातों पर वो कहते है , कुछ तो मर्यादा रखिये ….

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