अर्नब गोस्वामी को चौदह दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा गया है। यानि 14 दिन तक वे अपने हिंदी इंग्लिश चैनलों पर चीख चिल्ला कर देश भर के घरों में ध्वनि प्रदूषण न फैला पाएंगे। अर्णब को संतोष बस इस बात की है कि उन्हें पुलिस से ज्ञान पाने से मुक्ति मिल गई है। कोर्ट ने पुलिस रिमांड की मांग को खारिज कर दिया।
पुलिस रिमांड की मांग खारिज किए जाने को अर्णब गोस्वामी ने अपनी जीत बताया। उन्होंने कहा कि वे हार नहीं मानेंगे, लड़ाई जारी रहेगी।
रिपब्लिक भारत न्यूज़ चैनल की एक खबर में दावा किया गया है कि कोर्ट ने पुलिस को फटकार लगाई। कोर्ट का कहना था कि बिना उसकी इजाजत लिए ही केस खोल दिया गया जिसमें अर्णब की गिरफ्तारी की गई है।
इस बीच अर्णब के ही एक मामले में मुंबई हा़ईकोर्ट में कल सुनवाई होनी है।
छत्तीसगढ़ के बेबाक पत्रकार राजकुमार सोनी की टिप्पणी पढ़ें-
अर्णब को जेल! सुपारी किलर और कथित राष्ट्रभक्त पत्रकार अर्णब गोस्वामी को 14 दिन की न्यायिक रिमांड पर जेल भेज दिया गया है. मेरी निगाहें टीवी के उन नामचीन पत्रकारों को खोज रही हैं जो रिया चक्रवर्ती के जेल जाने पर देश की जनता को बता रहे थे- रिया ने जेलर से कंबल मांगा ? रिया ने पतली दाल के साथ दो चपाती खाई ? रिया रात भर करवट बदलती रही ? क्या देश का कोई नामचीन पत्रकार यह बताएगा कि अर्णब को किस बैरक में रखा गया है ? जेल में उसने कितनी बार बड़ा पाव मांगा ?
सचमुच वक्त कितनी जल्दी बदल जाता है न ?
–राजकुमार सोनी
4 नवम्बर 2020
इस अर्णब अरेस्ट कांड पर इंदौर के वरिष्ठ पत्रकार सुनील सिंह बघेल की बेबाक टिप्पणी पढ़िए-
आखिर क्यों? पूछता नहीं थूकता है भारत..
पत्रकारिता के नाम पर चाटुकारिता करने वाले तो हमेशा से रहे हैं.. लेकिन पिछले एक दशक में पत्रकारिता की शाख को जितना नुकसान इस एक अकेले आदमी ने पहुंचाया है, उतना सारी गोदी मीडिया ने मिलकर भी नहीं। घटनाक्रम से खुश तो नहीं हूं। क्योंकि समय का चुनाव और परिस्थिति गलत है.. लेकिन धर्म और धर्म राष्ट्रवाद की चादर ओढ़ कर, पत्रकारिता के नाम पर चाटुकारिता करने वालों का यही हश्र होना चाहिए…
गिरफ्तारी पर खुशी तो तब होती जब यह गिरफ्तारी तब होती, जब आत्महत्या का दुखद मामला पहली बार सामने आया था..
बेशक एक पत्रकार की हैसियत से दुखी भी हूं.. दुखी इसलिए कि काश यह प्रतिभाशाली व्यक्ति वास्तव में पत्रकारिता कर रहा होता.. और सरकार की इस कार्रवाई पर पत्रकार बिरादरी ही नहीं आम दर्शक का एक का बड़ा हिस्सा भी इसके साथ खड़ा होता..
यह पत्रकारिता के नाम पर चाटुकारिता करने वालों के लिए आत्ममंथन का समय है..
सोचने वाली बात है कि आज हर वह व्यक्ति, जिस में थोड़ी भी स्वतंत्र रूप से सोचने समझने की क्षमता बाकी है, वह इस गिरफ़्तारी पर #पूछताहैभारत के साथ खड़ा होने के बजाए #थूकताहैभारत की कतार में क्यों खड़ा है..??