-श्वेता सिंह-
सुशांत को इंसाफ दिलाने के बहाने टीआरपी बटोरने वाला चैनल अब चीख-चीख कर अपने एडिटर को इंसाफ दिलाने की दुहाई दे रहा है। अपनी दमदार आवाज के पीछे कितनों की आवाज दबाई है, इसका अंदाजा अर्नब को भी है। शानदार आफिस में धमाकेदार इंट्री कर जनता को सच से रूबरू कराने वाले ने इंटीरियर डिजाइनर के पैसे दबाए रखा।
कोई छोटी मोटी रकम न थी। 88 लाख रुपये। दो साल तक एड़ियां रगड़ने के बाद भी जब अन्वय नाइक को अपने हक के पैसे नहीं मिले। उन्होंने अपनी मां के साथ खुदकुशी कर ली।
अपने सुसाइड नोट में अन्वय ने अर्नब को अपनी मौत का जिम्मेदार ठहराया था। इंटीरियर डिजाइनर ने तंग आकर अपनी जान दे दी। उसकी मौत के जिम्मेदार अर्नब के खिलाफ पुलिसिया कार्रवाई कैसे गलत हो गयी !
अपने फायदे के हिसाब से सिलेक्टिव मुद्दों पर मुहिम छेड़ने वाले से कैसी सहानुभूति ! सेलीब्रिटी के पीछे अपने रिपोर्टर्स दौड़ाने वाले चैनल का मालिक खुद दूसरों का पैसा डकार गया। उसकी किसी को खबर तक नहीं। इन्वेस्टिगेटिव स्टोरी तो बनती है। खुद के पीछे चंद रिपोर्टरों को लगवा लेते।
कौन सा सच? किसका हक? कैसा इंसाफ? काहे की सहानुभूति! सही हुआ! जिस कैटेगरी की पत्रकारिता का परचम लहरा रहे थे, उसका यही सिला मिलना था।
-मनीष सिंह-
मेरे यहाँ प्रेस क्लब वाले अर्नब की गिरफ्तारी पर विरोध कर रहे हैं। वही अर्नब की पार्टी वाले भी कर रहे हैं।
अर्नब ने अपने शानदार स्टूडियो का जो इंटीरियर करवाया है, जहां से आप उसकी शानदार अंग्रेजी की बकवास सुनते हैं, उसके 88 लाख का पेमेंट नही किया। अगला दो साल तक एड़ियां रगड़ने के बाद निराश होकर सुसाइड कर लिया। बाकायदा सुसाइड नोट में नाम लिखकर मरा है, अमाउंट लिखा है।
आप अवश्य विरोध करें, अगर आप भी दूसरो का पैसा हड़पने के हामीदार हों। ईश्वर आपको भी ऐसे ही मौका दे.. किसी गरीब का पैसा हड़पने का।
मामला किसी पत्रकारीय कर्म से नही, छिंनालीय कर्म से जुड़ा है।