Sanjaya Kumar Singh : अगर दीपक और सुधीर को शाहीनबाग में जवाब नहीं दिया जाना गलत है तो कुणाल कामरा को जवाब नहीं दिया जाना भी गलत है। अगर शाहीनबाग वालों को बोलना चाहिए तो अर्नब को क्यों चुप रहना चाहिए? पैमाना तो एक रखो भाइयों। मैं कुणाल के साथ हूं। कुणाल बनने के लिए हिम्मत चाहिए, तिहाड़ी तो लोग वैसे भी बन जाते हैं।
Deepali Das : जिनको भी अर्नब के लिए बुरा लग रहा है उन्होंने इसका मतलब हाल फिलहाल में उसका शो नहीं देखा है. अर्नब या इसके जैसे और पत्रकारों की दलाली अब पैसों और चाटुकारिता से आगे बढ़ चुकी है. यह अब मज़ाकिया भी नहीं रहा. यह कोई मीम या नारे नहीं लगा रहे जो कल को भुला दिया जाएगा. पूरे प्लान के तहत ये लोग हर रात देश को थोड़ा थोड़ा सड़ाते जा रहे हैं.
ये चैनल्स एक दंगाई सरकार का दूसरा हाथ हैं और दंगा सिर्फ हथियारों से ही नहीं होता. दिमाग में घर कर चुकी हिंसा और नफरत सैकड़ों साल के लिए समाज को इन्फेक्ट कर देता है और ये लोग उसी इंफेक्शन के कैरियर बन चुके हैं. देश जलाने में नेता भले आगे खड़े दिख रहे हैं लेकिन उनकी लगाई आग की लपटों को हर हाल में जिंदा रखने का काम यही पत्रकार कर रहे हैं.
ये न सिर्फ नफरत फैला रहे हैं बल्कि झूठ की झांकियों से हर वह गम्भीर मुद्दा जिसपर बवाल खड़ा करने से देश के लोगों का वाकई भला हो सकता है, हर हाल में उसे दफनाते जा रहे हैं. लोकतांत्रिक मूल्यों का खून करने के लिए सत्ता जितनी जिम्मेदार है उतने ही जिम्मेदार ये भी हैं. सरकार की नीतियों और पुलिस की गोलियों से अबतक मर चुके लोगों का खून इनके हाथ भी है, बल्कि इनका हाथ ज्यादा लाल है.
जब सिस्टम को जवाबदेही का डर खत्म हो जाता है, जब उसका सच दिखाने वाले कैमरे जानबूझ कर अपना मुंह मोड़ ले और अपने सवालों से मंत्रियों का पसीना निकाल देने वाले माइक निज़ाम के पैरों पर दण्डवत हो जाए तब उस देश में इंसाफ की लाठी से ज्यादा तेज पुलिस की लाठी चलती है. जब कोई पेड़ गिरता है तो गलती सिर्फ उस कुल्हाड़ी की नहीं होती, गलती उन दीमकों की भी होती है जो उसे खा खा कर अंदर से खोखला कर चुके होते हैं. इसलिए ये सिर्फ बेशर्म ही नहीं, इस देश के सबसे बड़े दुश्मन भी हैं. इनकी बेहयाई, अब ट्रोलिंग के कॉस्ट-बेनेफिट एनालिसिस से आगे बढ़ चुकी है.
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Arnab ke class laga di Kunal ne… Video
वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह और दीपाली दास की एफबी वॉल से.
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ambrish
January 29, 2020 at 1:30 pm
What is the sense of this ban on Mr Kunal ?
People who are hate mongers and disturbing the harmony of society are enjoying the privileges & Mr. Kunal, who did not do any such act is being shown the power.