-अविनाश पांडेय ‘समर अनार्या’-
अर्नब गोस्वामी से 12 घंटे की पूछताछ के बाद अब गिरफ्तारी को पत्रकारिता पर हमला बता तड़प रहे लिबरलों, ज़रा ठहरो और अब कुछ तथ्य सही कर लो-
- पत्रकारों को उनके लिए अपराधों के लिए दंड मुक्त का कोई प्रावधान नहीं है और सांप्रदायिक हिंसा फैलाकर देश की एकता और अखंडता को ख़तरे में डालना 1 बड़ा और गंभीर अपराध।
- देश में पत्रकारिता असल में ख़तरे में है। पर वह पत्रकारिता असली वाली पत्रकारिता है, निज़ाम के कटखने कुत्ते अर्णब गोस्वामी जैसी पत्रकारिता नहीं। अभी पिछले हफ़्ते 3 कश्मीरी पत्रकारों पर यूएपीए लगाया गया है। उनके नाम है मसरत ज़हरा, ग़ौहर गिलानी और पीरज़ादा आशिक़। ये तीनों द हिन्दू, वॉशिंगटन पोस्ट और अल जजीरा जैसे प्रख्यात मीडिया हाउसेस के लिए काम करते हैं।
- वैसे इन हमलों से दलाल मीडिया के पत्रकारों के भेष में घूम रहे गुंडे तक नहीं बचे हैं। अभी पिछले साल उत्तर प्रदेश में जीआरपी पुलिस ने न्यूज़ ट्वेंटी फ़ोर के ऐसे ही एक पत्रकार के मुँह में पेशाब कर दिया था। तब किसी अंजना ओम मोदी या रोहित सरदाना जैसों की ज़ुबान तक नहीं खुली थी कि शायद अगला नंबर उनका न लग जाए। ख़ुद भी न्यूज़ ट्वेंटी फ़ोर ने अपने पत्रकार को पत्रकार मानने से इंकार कर उसे सिर्फ़ स्ट्रिंगर बता दिया था।
- भारत में पत्रकारिता के हाल ऐसे भी ठीक नहीं थे। विश्व प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत का स्थान 2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद से लगातार नीचे ही गिरा है।इसका मतलब ये नहीं कि 2014 के पहले सब कुछ अच्छा था। 2014 में भी हम 140 में नंबर पर ही थे।
- इन हाल में दरअसल उत्तर तालिका की ओर आगरा में हिंसा फैलाकर TRP कमाने की साज़िश वाले चैनलों के ख़िलाफ़ आपराधिक कार्रवाई बहुत ज़रूरी है। ये डर ही शायद उनको थोड़ा ठीक करे। आप ख़ुद देख रहे होंगे कि गोस्वामी के बाद रजत शर्मा तक की आवाज़ कैसे बदल गई है। अब वे तबलीग़ी जमात के प्लाज़्मा देने वाले सदस्यों को हीरो बता रहे हैं। वैसे भी जैसा मैंने शुरू में ही कहा था कि अपराध करने वाले पत्रकारों के लिए दंड मुक्ति का कोई प्राविधान भारतीय संविधान में नहीं? यह छूट भारत में केवल राष्ट्रपति और राज्यपाल को है। वह भी उनके पद पर रहते हुए ही, उसके बाद नहीं।
- ज़्यादा राजनैतिक शुचिता दिखाना बंद करिये। वो सिर्फ़ ऐसा गोबर है सुनने में तो अच्छा लगता है लेकिन नुक़सान भी पहुँचाता है।