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सत्ता ने अपनी असफलता छिपाने के लिए अर्नब जैसे सॉफिस्टिकेटेड ट्रोल गढ़े हैं!

Vijay Shanker Singh : अर्नब गोस्वामी का मामला एक कैमोफ्लाज है। अर्नब की चीखती और शोर मचाने वाली पत्रकारिता की आड़ में सरकार द्वारा जो कुछ भी किया जा रहा है, उसे देखिए, पढिये और समझिए। अर्नब ने जो कुछ भी कहा या किया है, उस पर लोगों ने मुक़दमे दर्ज कराये हैं और अब यह काम पुलिस का है, कि वह अपनी कानूनी कार्यवाही करे।

पत्रकारिता के मानदंडों और उसके गिरने उठने पर बहस होती रहती है। नैतिकता पर बहस और नसीहतें हमारी विशेषता हैं। यह हम वैदिक काल से करते आये हैं और आज तक यह जारी है। पर इस पूरे शोर शराबे में खून में व्यापार की तासीर वाली सरकार कर क्या रही है, यह समझना बहुत ज़रूरी है। अर्नब न कभी महत्वपूर्ण रहे हैं और न आज हैं। उन्हें एक अंग्रेजीदां ट्रोल ही समझिये और इससे अधिक कुछ नहीं।

असल सवाल है, सरकार, जो बिल गेट्स से सर्वे करा कर अपनी पीठ थपथपा रही है कि वह दुनियाभर में सबसे अच्छा काम इस कोरोना आपदा काल मे कर रही है, को एक्सपोज करना और उस सच को उजागर करना जिसे तोपने ढंकने के लिये अर्नब जैसे सॉफिस्टिकेटेड ट्रोल गढ़े गए हैं।

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सरकार हमेशा असल सवालों और मूल मुद्दों से बचना चाहती है क्योंकि वह उन पर कुछ कर ही नहीं रही है क्योंकि वह एक प्रतिभाहीन सरकार है औऱ भ्रमित तो अपने जन्म से ही है।

आज के ज्वलन्त मुद्दे है, कोरोना आपदा प्रबंधन, बिगड़ती आर्थिकी और इन सब भंवर में से सरकार कैसे देश को संकट से मुक्त कराती है। कोरोना आपदा वायरसजन्य है तो आर्थिकी का यह संकट, सरकार की गलत और गिरोहबंद पूंजीवादी नीतियों का परिणाम है। अर्नब के शोर को इसीलिए उछाला गया है कि आज जब चारों तरफ टेस्ट किट से लेकर पीपीई तक की कमी और उनकी गुणवत्ता पर सवाल उठ रहे हैं, तो लोगों का ध्यान भटके और पूरा गांव कुत्तों को खदेड़ने में लग जाय । जब खराब आर्थिकी और वित्तीय कुप्रबंधन पर सवाल उठ रहे हैं, तो केवल इसी लिहो लिहो का विकल्प बचता है जिससे सरकार कुछ समय के लिये अपने विरुद्ध उठ रहे सवालों को टाल सकती है ।

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एक बात याद रखिये मक्खी मारने के लिये हथौड़ा नहीं उठाया जाता है। ट्रोल तो चाहेंगे कि जनता इसी में उलझी रहे और सरकार इलेक्टोरल बांड के एहसान उतारती रहे। सरकार की प्राथमिकता में केवल और केवल उनके चहेते पूंजीपति हैं, और कुछ भी नहीं, कोई भी नहीं। अर्नब एंड कम्पनी को बुद्ध की साधना में आये मार की तरह लीजिए। मेरी समझ मे यह इसी प्रकार की चीज के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। बस कानून ने उनके कृत्य पर मुकदमा दर्ज किया है तो अब कानून उस पर अपनी कार्यवाही करें।

अब यह पोस्ट Lakshmi Pratap Singh की वाल से है, को पढ़े।

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कुछ खबरे जो हेडलाइंस नहीं बनी:

1.) तीन दिन पहले RBI ने सरकार की short term borrowing limit यानी सरकार की RBI से उधार लेने की लिमिट 1.2 से अचानक 65% बड़ा कर 2 लाख करोड़ कर दी है। हाल ही में सरकार ने जो 1.75 लाख करोड़ RBI से लिया था वो कहाँ गया उसपे सवाल पूछने पे वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया था कि उन्हें भी पता नहीं। ध्यान दीजिये ये SBI नहीं RBI है जिसे सरकार कंगाल कर रही है।

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2.) भाजपा के राजयसभा सांसद राकेश सिन्हा ने मध्य मार्च में संविधान से “समाजवाद” (Socialist) शब्द को हटाने का प्रस्ताव दिया है। 23 को संसद निरस्त होने की वजह से इस निजी बिल पर चर्चा नहीं हो सकी। दरअसल इस के दो कारण हैँ, पहला तो RSS के हिन्दू राष्ट्र के सपने के बीच संविधान के सेक्युलर, और समाजवाद शब्द आड़े आते हैँ। पहले समाजवाद हटेगा फिर बारी आएगी सेक्युलर की और जब देश धर्म-निरपेक्ष नहीं है तो स्वतः आधिकारिक रूप से “हिन्दू राष्ट्र” घोषित करने मे आसानी रहेगी। 2015 के गणतंत्र दिवस के सरकारी विज्ञापन में समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द गायब थे जिसपे बवाल भी हुआ था।

दूसरा कारण है, समाजवाद शब्द वर्ष 1976 में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से इंदिरा गाँधी सरकार द्वारा संविधान की प्रस्तावना में संशोधन किया गया और इसमें तीन नए शब्द (समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता) जोड़े गए। मोदी जी को इंदिरा जी के कद से बड़ा बनने के लिए उनके निर्णयों को उलटना है। समाजवाद दरअसल पूंजीवाद (Capitalism) और साम्यवाद (Communism) के बीच की व्यवस्था है जिसमे दोनों की अच्छाइयां होती हैँ। धनाढ्य वर्ग से धन लेकर गरीबों को के लिए योजनाओं द्वारा दिया जाता है।

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3.) तीसरी बड़ी खबर है कि फिलहाल कोरोना जाँच किट, डाक्टरों द्वारा पहने जाने वाली प्रोटेक्टिव गियर, वेंटिलेटर इत्यादि पर 12% का GST, Import Duty व अन्य सेस लग रहे थे। स्वास्थ्य के लिए आने वाले उपकरणों पर भी “स्वास्थ्य सेस” लिया जा रहा था। राहुल गाँधी व शशि थरूर ने मांग की कि कोरोना के उपचार में प्रयोग होने वाली सभी किट्स, उपकरणों पर लगने वाले टेक्स को हटा दिया जाये ताकि टेस्ट व उपचार सस्ता हो जाये। सरकार के इशारे पे कपड़ा मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली संस्था The Apparel Export Council of India ने टेक्स हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से मना कर दिया। इनका मत था कि मेन्युफेक्चरिंग और किट्स कि कीमतों पे कोई असर नहीं पड़ेगा। एक बच्चा भी समझ सकता है कि यदि टेक्स हटेगा तो कीमत कम होंगी। पता नहीं इनके इस विचार के लिए एक्सप्लानेशन क्योँ नहीं मांगी गयी।

ये व्यापारी वर्ग है, कोरोना के उपकरण राज्य सरकारें खरीदेंगी लेकिन सोर्सिंग केंद्र सरकार कार रही है, GST लगेगा तो लागत में जोड़ के वसूल लिया जायेगा जनता के पैसे से। इस लिए व्यापारियों कि सेहत पे कोई नुकसान नहीं, अधिक पैसा तो जनता का जायेगा, और बजट कि वजह से दोष राज्य सरकारों पे आएगा।

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जब ज्यादा लोग मरते हैँ तो गिद्ध और लकड़भग्गे खुश होते हैँ, क्योंकि उनके लिए खाने का वही अवसर है। और हमारा सिस्टम तो गिद्धों का ही है, कोरोना के बहाने अपने मकसद पूरे करने मे लगे हैँ।

असल सवाल और मुद्दे यही और इनसे मिलते जुलते हैं जो लक्ष्मीप्रताप सिंह ने उठाये हैं और ऐसे ही सवाल न उठे, भटकाव हो तो अर्नब जैसे ट्रोल उतार दिए जाते हैं। अर्नब बहुत होगा तो माफी मांग लेंगे जो इस गिरोह की यूएसपी है। पर इसी हंगामे में वे सारे सवाल जो आज उठने चाहिए, फिलवक्त के लिये टल जाएंगे। अर्नब के खिलाफ जो मुकदमे दर्ज हैं उनकी पैरवी कीजिए और कानून को अपना रास्ता तय करने दीजिए। अर्नब जैसे कई ट्रॉल सरकार के पास हैं वह वक़्त ज़रूरत उन्हें निकालती रहती है और आगे भी निकालेगी। अभी सरकार के चार साल शेष है। उन्हें भी पता है कि वे पिछले 6 सालों में कुछ नहीं कर पाए और अब अगले चार साल में भी कुछ नहीं कर पाएंगे तो बस ऐसे ही ट्रॉल उनके सहारे हैं।

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यूपी पुलिस के सेवानिवृत्त अधिकारी विजय शंकर सिंह की एफबी वॉल से.

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