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उत्तर प्रदेश

चला गया लखनऊ का एक दमदार पत्रकार और संपादक!

Ajai Kumar : उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार तथा स्पूतनिक समाचार पत्र के संपादक, लखनऊ निवासी श्री अरविंद शुक्ला 57 वर्ष का विगत रात रायपुर (छ्त्तीसगढ़ ) में निधन हो गया। उनका शव विमान द्वारा लखनऊ लाया गया। अंतिम संस्काररविवार को बैकुंठ धाम भैसकुण्ड में दोपहर 12:00 बजे किया गया। श्री अरविंद शुक्ला अत्यंत सरल, सौम्य और व्यवहार कुशल इंसान थे। उनकी असमय मृत्यु से उनकी धर्मपत्नी व पत्रकार गीता शुक्ला व दो पुत्रियां अत्यंत पीड़ादायक स्थिति में हैं। सभी एक समारोह में शामिल होने रायपुर गए थे, जहाँ श्री अरविंद जी का शरीर शांत हो गया। उत्तर प्रदेश का पूरा पत्रकार जगत इस दुख से अपने को सम्बद्ध करता है।

Naved Shikoh : हिंदी मीडिया के केंद्र दिल्ली और लखनऊ की पत्रकारिता ठंडी पड़ गई है। चौथे स्तम्भ के आंगन में निर्भीक और निष्पक्ष पत्रकारिता का आकाल पड़ा है। सत्ता की ताकत के सामने आलोचनात्मक और तर्कसंगत सवाल खड़े करने वाले हिम्मती पत्रकारों की एक-एक खबर की अहमियत है।

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पत्रकारिता के सिद्धांतों और मूल्यों का दायित्य निभाने वाली पत्रकार बिरादरी दुर्लभ हो गई है। ऐसे में आज मुफ्लिसी में आटा गीला होने की कहावत को चरितार्थ करते हुए निडर पत्रकारो़ की लुप्त प्रायः जमात से आज एक हरदिल अज़ीज़ पत्रकार कम हो गया।

लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार अरविंद शुक्ला मौत की आग़ोश में सो गये। प्रदेश की राजधानी लखनऊ के पुराने अखबार स्पूतनिक के संपादक 57 वर्षीय अरविंद शुक्ला का रायपुर में निधन हो गया। इनका शव आज रात लखनऊ लाया जायेगा।

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स्वर्गीय शुक्ल अपने पीछे एक भरापूरा परिवार छोड़ गये हैं। इनकी धर्मपत्नी डा.गीता शुक्ला जी पत्रकार हैं। अरविंद शुक्ल जी अपने परिवार के साथ एक विवाह समारोह में शिरकत करने रायपुर गये थे। आज सुबह चार बजे उन्हें दिल का दौरा पड़ा, आनन फानन में उन्हें अस्पताल ले जाया गया। अपचार के दौरान ही उनकी मृत्यु हो गई।

Arvind Shukla

पत्रकारिता जगत से लेकर आम पाठक वर्ग अरविंद शुक्ला जी की निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता का क़ायल रहा। साफ-सुथरी छवि वाले श्री शुक्ल का अखबार स्पूतनिक हर दौर की सत्ता की ख़ामियों पर सवाल उठाने वाली निर्भीक खबरों के साथ पत्रकारिता के मूल्यों और सिद्धांतो को निभाता रहा। इनकी रिपोर्टिंग और विश्लेषण में निष्पक्षता और आक्रमकता के तेवर दिखाई देते थे।

इस पत्रकार के कलम की धार के आगे ना कोई डर बाधा बना और ना कोई समझौता। चाटूकारिता और चापलूसी की पत्रकारिता के तमाम दौर गुजरे, पर अरविंद काजल की कोठरी में भी साफ-बुर्राक रहे। आज जब मीडिया की दुनिया कॉरपोरेट की गुलाम होती जा रही है।

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गैर औद्योगिक घरानों वाले मंझौले और लघु समाचार पत्र चलाने के लिए पत्रकार सरकारी विज्ञापनों की मदद के लिए लाइन में लगे हैं। ऐसे में पत्रकारों को अपने कलम को विज्ञापन के लिए गिरमी रखना पड़ रहा है। कोई झुक कर तो कोई ब्लैकमेलिंग के जरिए अपनी पत्रकारिता और अखबार को जिदा रखे है। ऐसे में अरविंद शुक्ल जी का कलम और अखबार ना किसी के आगे झुका और ना डिगा।

सन 1998 की बात है, लखनऊ के होटल ताज में एक प्रेस कांफ्रेंस के बाद अरविंद जी से मेरी पहली मुलाकात हुई थी। जब हम दोनों ने एक दूसरे को अपना परिचय दिया तो मुझे पता चला कि वो स्पूतनिक नाम के अखबार के संपादक हैं।

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तमाम बातों में मैंने इनसे कह दिया कि आपका एक प्रतिनिधि आप जैसी शालीन, अनुशासित और सिद्धांतवादी शख्सियत के विपरीत फील्ड में अक्सर अनुशासनहीनता करता दिखाई देता है। सुनकर वो मुस्कुरा दिए। दूसरे दिन अरविंद जी ने ट्रेनिंग पर लोकल इवेंट कवर करने वाले उस व्यक्ति को निकाल दिया। ख़ैर ये बातें तो अब यादें बन कर रह गयीं हैं। दिवंगत आत्मा को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम इनकी पत्रकारिता के संस्कारों की विरासत को आगे बढ़ायें।

Ak Singh : नमन….. लखनऊ में पत्रकारिता के दौरान अरविंद शुक्ला जी से काफी करीब से जुड़ा रहा. हम दोनों ही ओसीआर बिल्डिंग के विधायक निवास में रहते थे. मैं ग्राउंड फ्लोर (और मेरी पत्रकारिता भी) और वो टॉप फ्लोर (और उनकी पत्रकारिता भी). मेरा उनसे लगभग हररोज सामना होता रहता था. उस दौरान वो मेरे व्यक्तिगत जीवन से लेकर अन्य विषयों पर बड़े ही आत्मीयता से बात करते थेय मैं उन्हें बड़ा भाई मानता था. नम आँखों से विनम्र श्रद्धांजलि.

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Surender Agnihotri : वादा तोड़कर चले गए. कल ही जब सुबह भ्रमण के दौरान मिले नहीं तो मैंने अरविंद जी को फोन किया था. उन्होंने 20 जनवरी को वापस आकर मिलने का वादा किया था! काश वह वादा पूरा होता और हमें यह पीड़ादायक समाचार न मिलता!

S.R. Darapuri : अरविंद जी ने मेरे मायावती के आलोचनात्मक लेखों को प्रमुखता से स्पूतनिक में जगह दी थी, वह भी तब जब वह मुख्यमंत्री थी। उनका जाना निर्भीक पत्रकारिता के लिये सचमुच बहुत बड़ी क्षति है। सादर नमन!

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सौजन्य – फेसबुक

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