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अतुल माहेश्वरी की आज 12वीं पुण्यतिथि है!

निशीथ जोशी-

।।।श्री अतुल माहेश्वरी जी को शत नमन और विनम्र श्रद्धांजलि।।

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आज पुनः 3 जनवरी है ठीक 12वर्ष पूर्व हमने इस तारीख को हमने पत्रकारिता जगत की एक महान व्यक्तित्व को खो दिया था। नाम है अतुल माहेश्वरी। बीती रात पंजाब केसरी/ नवोदय टाइम्स के ऑफिस में जब हम दिल्ली नवोदय टाइम्स से देहरादून कार्यालय में डिप्टी रेजिडेंट एडिटर के रूप कुछ दिन पूर्व ही ज्वाइन करने वाले अपने पुराने साथी शेष मणि शुक्ला जी से अतुल भाई साहब के बारे में चर्चा कर रहे थे।

हम कह रहे थे कि उन जैसा व्यक्ति पत्रकारिता जगत में न आया था न पुनः आयेगा तो वे भी यही कह रहे थे। उनको उनके पुत्र तन्मय जी, भाभी श्री और राजुल महेश्वरी जी को याद कर रहे थे तो यह खयाल नहीं आया कि अगली सुबह ही अतुल भाई साहब की पुण्य तिथि है।

अतुल भाई साहब हमारे जीवन में संकट मोचन के तौर पर थे हैं और रहेंगे। उन्होंने को भरोसा दिया। प्रेम दिया और फिर परिणाम लिए वह वही कर सकते थे अमर उजाला समूह में। सत्य को जानना। कान भरने वालों को पहचान कर सीधे व्यक्ति विशेष से जानकारी प्राप्त करना और फिर निर्णय लेना।

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जाने क्यों तीन जनवरी को अक्सर थोड़ा अनमाना सा हो जाते हैं हम। आज भी यही हुआ। उठते ही जो पहला नाम और छवि अंतर में उभरी वह थी अतुल माहेश्वरी जी की। जब फेस बुक खोली तो लगातार चार पोस्ट रोहित गौड़,सुरेश गुप्ता, अखंड प्रताप सिंह मानव और सुमंत मिश्रा की मिली। कैसे वे आज भी लोगों के हृदय में जीवित हैं इससे ही एक झलक मिल जाती है।आज मन मस्तिष्क में एक विचार आया कि ऐसे व्यक्तित्व पर एक छोटी सी फिल्म जरूर बनाई जानी चाहिए। जिस बड़े फलक पर वे सोचते थे, काम करने का अवसर देते थे वह उनकी पत्रकारिता के प्रति जुनून के साथ अखबार और खबर की विश्वसनीयता को सबसे ऊपर रखने का संकल्प था।

पूरे महेश्वरी परिवार के लिए यह दिन बहुत पीड़ा देने वाला होता है। जब हम कुछ सालों में उनके मुरीद हो गए तो परिवार और जिन्होंने सालों साल उनके साथ काम किया उनका प्रेम और अपनत्व पाया उन पर क्या बीतती होगी। भले ही अतुल माहेश्वरी जी शरीर में नहीं हैं जाने क्यों ऐसा लगता है कि उनकी आत्मा जहां भी वहां से लगातार आशीर्वाद बरसाती रहती है। हमें वे सदा साथ लगते हैं जो उन्होंने बताया, सिखाया कार्य, व्यवहार में। उन महान आत्मा को शत शत नमन। ईश्वर और महान गुरुजनों से प्रार्थना है कि महेश्वरी परिवार पर सदा अपनी कृपा बनाए रखें। ताकि उनके वे सपने और संकल्प पूर्ण हो सकें जो भारत की पत्रकारिता को लेकर उन्होंने बुने थे।

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वैसे भी यह वर्ष उन लोगों को दंड देने वाला है जिन्होंने अतुल माहेश्वरी जी को भयभीत और दिग्भ्रमित किया था उनके अंतिम कुछ महीनों में एक मुकदमे को लेकर । यह हमारी भविष्य वाणी मानिए।

राजेंद्र त्रिपाठी- हे कर्मयोगी! आपको शत शत नमन। ऐसा लगता ही नहीं कि आपको इस धरा को छोड़ महाप्रयाण की यात्रा पर निकले 12 बरस हो गए। हमें तो लगता है कि आप कहीं गए ही नहीं। यहीं कहीं आसपास हैं। अभी आवाज देगें- पंडित जी ,आज क्या खास खबर है? और फिर हम दौड़े चले आएंगे बताने को।आप को याद कर आज फिर आंखें नम है,मन उदास है। गला भर आया। सादर नमन भाई साहब!!

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शादाब रिज़वी- आपको 12 बरस हो गए हमें छोड़कर गए, मगर हमें तो लगता है कि आप कहीं गए ही नहीं, यहीं कहीं आसपास हैं। सादर नमन भाई साहब!

शेषमणि शुक्ला- देहरादून में अमर उजाला दफ्तर के बाहर एक मित्र से कल शाम बात कर रहा था। जाने क्यों मन बेचैन था। बातचीत में कई बार स्वर्गीय अतुल माहेश्वरी जी का जिक्र आया। उनके साथ काम करने से जुड़ी तमाम बातों को याद करते रहे। उस वक्त दिमाग में कहीं नहीं था कि 3 जनवरी उनकी पुण्यतिथि है। सुबह नींद भी जल्दी खुल गई। कुछ मित्रों से बात करते हुए फिर अतुल जी का जिक्र हुआ। फेसबुक पर आया तो उनकी पुण्यतिथि से सम्बंधित कुछ पोस्ट देख मन उदास हो गया और अपनी बेचैनी का सबब भी पता चल गया।
आप बहुत याद आते हैं भाई साहब…
विनम्र नमन।

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विनोद पाठक- मैंने वर्ष 1999 में अमर उजाला में बतौर ट्रेनी रिपोर्टर पत्रकारिता करियर की शुरुआत की थी। अमर उजाला नवोदित पत्रकारों के लिए बेस्ट ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट था। शायद यह श्रद्धेय अतुल माहेश्वरी जी की प्रेरणा से संभव हो सका था। ऑफिस में प्रेम से सभी अतुल जी को भाईसाहब कहते थे। वे बेहद दूरदर्शी सोच वाले व्यक्ति थे। उनकी विलक्षण बुद्धि के सभी कायल थे। उनके लिए अमर उजाला का स्टाफ परिवार के समान था। वर्ष 2000 में मैं खुर्जा में तैनात था और उनदिनों मम्मी का ऑपरेशन होना था। मैंने अतुल जी भाईसाहब को पत्र लिखा। पत्र मिलते ही उन्होंने मेरा ट्रांसफर मेरठ कर दिया। मेरठ में दो-तीन अवसरों पर अतुल जी भाईसाहब से मिलने का अवसर मिला। वे कहते थे कि पत्रकारों को सदैव सीखते रहना चाहिए। आज भी पत्रकारिता का छात्र बनकर रोजाना कुछ न कुछ सीखने का क्रम जारी है। अतुल जी भाईसाहब को शत्-शत् नमन…

देवप्रिय अवस्थी- अमर उजाला परिवार के अतुलनीय प्रबंध संचालक अतुल माहेश्वरी को गए आज 12 बरस हो गए. अखबार के प्रबंधन और संपादन के मामले में, खासकर हिंदी अखबारों के. उन सरीखा नवोन्मेषी कोई हुआ नहीं है और शायद होगा भी नहीं.
मैं लगभग 40 के पत्रकारिता कैरियर के उत्तरार्ध में 2008 में अमर उजाला से जुड़ा. हालांकि इसके पहले दो बार इस अखबार से जुडने के प्रस्ताव निजी कारणों से नकार चुका था. मुझे यह कहने में किंचित भी संकोच नहीं कि मुझे अमर उजाला में सबसे अच्छी कार्य संस्कृति देखने को मिली जिसका पूरा ताना-बाना अतुल जी ने ही बुना था. अखबार की व्यवस्था से जुड़े लगभग हर पहलू की गहरी समझ रखने और सभी कर्मचारियों को वृहत परिवार का हिस्सा समझने- मानने में उनका कोई सानी नजर नहीं आता.
पुण्य तिथि पर अतुल जी को सादर नमन.

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