Deepak Sharma : १३-१४ साल पहले जब मै प्रिंट से टीवी पत्रकारिता में आया, तो आजतक के मुख्य संपादक अरुण पुरी कहा करते थे कि नेताओं के बयान नही खबर दिखाईये. उनका मानना था कि जिनके पास समस्या का हल नहीं है, उन नेताओं की फालतू बहस दर्शक को सुनाने का क्या फायदा. पुरी साहब का तर्क था कि दर्शक खबर देखना चाहते हैं. खबर जिसकी अहमियत हो. वो चाहे कोई बड़ा घपला हो या कोई बड़ी समस्या या कोई अहम घटना. फोकस खबर पर होना चाहिए. रिपोर्टर का कैमरा खबर के पीछे दौड़े, उसकी पड़ताल करे, उसे खंगाले और स्क्रीन पर दिखाए.
वो कहते थे कि पुख्ता सवाल अगर किये जाएँ तो उन ताकतवर नेताओं या नौकरशाहों से किये जाएँ जो सत्ता में बैठकर अहम फैसले ले रहे हैं. जिन्होंने फैसला नहीं लिया, फाइल नहीं देखी, जो मुद्दे को जड़ से नहीं जानते, उनसे बात करके खबर के साथ छल मत कीजिये. उनकी बातें सही थी. पता नही आज 71 साल की उम्र में वो टीवी की न्यूज़ को किस पैमाने से देखते हैं. लेकिन पुरी साहब की बातों से उदय शंकर या कमर वाहिद नकवी जैसे न्यूज़ चैनल के महारथी इत्तेफाक रखते थे. बहरहाल टीवी पत्रकारिता के उस दौर पर शायद अब विराम लग चुका है.
आज तो कैमरा दिनभर संबित पात्रा के आगे जमा हुआ है. आज कैमरा सुधांशु त्रिवेदी पर फोकसड है. आज स्क्रीन पर राघव चड्ढा, संजय झा, शाईनी और ना जाने कौन कौन दिन रात दीखते है? ये बिना बात बोलते हैं और देश बेवजह सुनता है.
देश से संवाद करने वाले संवादाताओं की जगह आज स्टूडियो में रमे हुए चेहरों ने ले ली है. सच तो ये है कि उपन्यास लिखने और पढ़ने वाले एंकर इनसे सवाल पूछते हैं और जो न कभी सांसद रहे, ना कभी विधायक रहे ना कभी पार्षद रहे वो जवाब देते हैं. मेरा संबित पात्रा या राघव चड्ढा से कोई दुराव नही है लेकिन मे आप लोगों से पूछना चाहता हूँ की रोज़ रात में आप इन्हें सुनते देखते क्यूँ है? और हाँ अगर इनकी बहस से देश का भला हो रहा है तो बताईयेगा ज़रूर.
आजतक न्यूज चैनल में लंबे समय से कार्यरत रहे पत्रकार दीपक शर्मा के फेसबुक वॉल से.