क्या ऑटो इम्यून रोग इतना ख़तरनाक होता है… डॉ दीपक आचार्य का निधन!

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पुष्य मित्र-

अभी हमें इस जीवन के बारे में कितना कुछ जानना है। जो जिस विषय का विशेषज्ञ है, जिंदगी उसे भी कई दफा अल्पज्ञ साबित कर देती है।

इस तस्वीर में विशाल प्रकृति के बीच खड़े हमारे मित्र दीपक आचार्य हैं। सुबह-सुबह उनके न होने की खबर ने अंदर से हिला दिया। मैं यहां उन्हें टैग भी कर रहा हूं, ताकि आप जान समझ सकें कि सेहतमंद जीवन जीने के हमारे पारंपरिक ज्ञान की उनकी कितनी अच्छी समझ थी।

वे अक्सर मध्यप्रदेश के उस पातालकोट इलाके में पाए जाते, कहते हैं पहाड़ियों के बीच बसे उस इलाके में सूरज की रोशनी भी ठीक से नहीं पहुंचती। वे जंगलों में भटकते ताकि आदिवासियों से जड़ी बूटियों और उनके पारंपरिक भोजन के बारे में जान सकें, जिसके वजह से वे इतने सेहतमंद रहते हैं।

वे अक्सर अपनी फेसबुक वॉल पर अलग अलग खाद्य सामग्रियों के गुणों की जानकारी देते और उनके कई प्रयोगों को हम अपना लेते। इसी साल उन्होंने मुझसे कहा था डायबिटीज के बावजूद आम खाने में हर्ज नहीं। एक साल उनसे मैंने मकर संक्रांति के मौके पर खिचड़ी के गुणों के बारे में प्रभात खबर के लिए लिखवाया था, तभी से उनके साथ दोस्ती सी थी। मिले नहीं थे कभी वैसे।

अचानक पिछले हफ्ते उनका पोस्ट दिखा कि ऑटो इम्यून रोग के कारण में नागपुर के एक अस्पताल में आईसीसीयू में हैं। उनके शरीर के रोग प्रतिरोधक शक्तियों ने उनके ही हृदय, किडनी और लिवर पर एक साथ हमला कर दिया है। दो दिन बाद उन्होंने एक और पोस्ट अपने अस्पताल के दो बच्चों के बारे में लिखी और बताया कि उनका तीन दफे डायलिसिस हो चुका है। दोनों पोस्ट में उन्होंने पूरी जिंदादिली से दावा किया था कि घबराना नहीं है, मैं लौट कर आ रहा हूं। हम उनके झांसे में आ गए और आज सुबह उनके जाने की खबर मिली।

हैरत होती है, क्या शरीर ने उन्हें अपने भीतर हो रहे बदलाव का इशारा नहीं किया? क्या ऑटो इम्यून रोग इतना कम वक्त देता है और इतना तेज हमला करता है? और क्या अपने शरीर में रोग प्रतिरोध क्षमता को बढ़ा लेना भी जानलेवा है?

दीपक चले गए। मगर उनकी पोस्ट और उनकी किताब जंगल लेबोरेट्री हमारे बीच है। ये दोनों चीजें हमेशा हम सबकी मदद करेंगी। मगर दीपक का ऐसे जाना अखर गया।

विदा दीपक आचार्य!

देखिए उनका एफबी वॉल- https://www.facebook.com/patalkot?mibextid=LQQJ4d


संदीप यादव-

दीपक आचार्य यानी हमारे प्रिय डॉक साहब नहीं रहे। सबके स्वास्थ्य का ख़याल रखने वाले डॉ दीपक आचार्य के जीवन का मंत्रा था- भटको, भटको तो पाओगे।

हम सबको फ़ेसबुक के माध्यम से स्वास्थ्य के प्रति लगातार अच्छी अच्छी बातें बताते थे क्या ख़ाना चाहिए कैसे ख़ाना चाहिए, उनकी सभी पोस्ट पसंद की जाती थी, बहुत से लोग उनकी बातों को तुरंत का तुरंत फॉलो करने लगते थे, मैं स्वयं भी उनके भक्तों में से था।

दीपक भाई डॉक्टर, वैज्ञानिक, वाइरोलोजिस्ट तो थे ही, मेरे लिए और मुझ जैसे तमाम प्रशंसकों के लिए वो किसी संत महात्मा से कम नहीं थे, स्वास्थ संबंधी जो भी बात लिखते थे उसके refrence भी ज़रूर देते थे, रिसर्च पेपर्स की भी बात करते थे।
मैं जब भी बीमार हुआ उनसे मैंने बात बताई, वो घरेलू नुस्ख़ों से इलाज बता देते थे, आश्चर्यजनक लाभ होता था।

दीपक भाई सिर्फ़ दोस्त ही नहीं थे हमारे, बड़े भाई जैसा रिश्ता भी बन गया था उनसे, मेरे कई जानने वालों को मैंने उनसे जोड़ा था वो सबका मार्गदर्शन किया करते थे।

कुछ दिन पहले उनके स्वास्थ को लेके एक पोस्ट आई मैंने फ़ोन किया पिक नहीं हुआ लेकिन देर शाम उनका कॉल आया भी था लेकिन वो misssed कॉल में रह गया।

दीपक भैया- कैसे क्या हो गया यार…

आप से मिलना कभी नहीं हुआ लेकिन आप बहुत गहरे से जुड़ गये थे हमसे- इस मतलबी दुनिया में जिन गिने चुने लोगों से गहरा रिश्ता बना उन में से एक आप भी थे-

क्या कहूँ-

हमें भी भटकने के लिए छोड़ दिया और ख़ुद भी जाने कहाँ भटकने चले गये ।

पातालकोट से आपके वो रैंडम फ़ेसबुक लाइव बहुत याद आ रहे हैं दीपक भैया-

ईश्वर आपको … क्या कहूँ भैया,

मैंने कहा था शो बंद हो रहा है कुछ दिन पातालकोट आऊँगा भटकूँगा आपके साथ, जंगल नदी पहाड़ आदिवासी सभ्यता देखूँगा समझूँगा-

आप बोले – आइये आइये मज़ा आएगा इस समय मौसम भी सुहाना है।

आई लव यू दीपक भैया- हमेशा याद रहोगे आप हमें-

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Comments on “क्या ऑटो इम्यून रोग इतना ख़तरनाक होता है… डॉ दीपक आचार्य का निधन!

  • वास्तव में दीपक अदभुत ज्ञान के सागर थे। बहुत याद आओगे
    विनम्र श्रद्धांजलि

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