डीडी न्यूज के बुलेटिन एडिटर कुमार अविनाश की शनिवार रात अचानक मौत हो गई। उम्र यही कोई 34 साल और मृत्यु की वजह हार्ट अटैक। पीछे रह गए दो छोटे-छोटे बच्चे, पत्नी और अन्य परिजन। पिछले कुछ दिनों से बेचैनी महसूस कर रहे थे, एक हाथ में दर्द था, बार-बार डॉक्टर के पास चलने के लिए रिपोर्टर्स से आग्रह भी किया, एक दिन दिखाने गए तो सरकारी अस्पतालों में हड़ताल थी। आखिरकार अल्पायु में ही काल ने उनको ग्रस लिया।
उनके बड़े भाई कुमार आलोक भी डीडी-न्यूज में सीनीयर कॉरेस्पोंडेंट हैं। अपने साथी की यूं अचानक मौत पर हर कोई अवाक हैं, सो श्रद्धांजलि देने के लिए सोमवार शाम 4:30 बजे कमरा नंबर 427 में शोक सभा रखी गई। सभा में सभी पहुंचे- डीजी वीणा जैन, एडीजी मनोज पांडे और बाकी सभी सरकारी और संविदा पर काम करने वाले रिपोर्टर, एडिटर, कॉपी राइटर आदि कर्मचारी। सतीश नंबूदरीपाद नामक अधिकारी ने रोनी सूरत बनाकर मंद-मंद आवाज में एक शोक संदेश पढ़ा जो कुछ को सुनाई दिया कुछ को नहीं। संदेश में महाभारत के श्लोक का भी जिक्र आया। और फिर सभी ने खड़े होकर दो मिनट का मौन रखा। सभी कर्मचारियों को उम्मीद थी कि जब चैनल की मुखिया खुद मौजूद है तो कोई मृतक के परिवार के लिए कोई घोषणा होगी। पर ये क्या, मौन के उपरांत समस्त अधिकारी एक-एक करके कमरे से सरक लिए।
आला अधिकारियों का ये रवैया पीछे रह गए पत्रकार कर्मचारियों को बहुत नागवार गुजरा और उनके अंदर का सोया क्रांतिकारी पत्रकार जाग उठा। सबसे पहले अशोक श्रीवास्तव ने अपना विरोध दर्ज कराया और अपने साथ लाए उस प्रस्ताव को पढ़ा, जिसमें अविनाश की पत्नी को डीडी-न्यूज में नौकरी और बच्चों के नाम दस लाख की एफडी कराने की मांग की गई थी। प्रस्ताव में अधिकारियों का ध्यान इस ओर भी दिलाया गया कि संविदा पर काम करने वाले डीडी-न्यूज के अधिकांश पत्रकारों का न तो पीएफ कटता है, न ग्रेचुएटी मिलती है और न कोई स्वास्थ्य बीमा है, इसलिए अविनाश के परिवार के पास किसी भी प्रकार का आर्थिक सहारा नहीं बचा है तो इस मांग पर जल्द से जल्द कदम उठाया जाए।
इसके उपरांत रमन हितकारी ने संविदा कर्मचारियों के साथ सहानुभूति जताते हुए प्रस्ताव रखा कि सरकार की ओर से सहायता जब आएगी तब आएगी तब तक सभी कर्मचारी अपने वेतन में से धन एकत्रित कर सहायता के रूप में श्री अविनाश के परिवार को प्रदान करें। दोनों ही प्रस्तावों पर वहां उपस्थित सभी लोगों ने सहमति प्रदान की, लेकिन प्रश्न वही उठा कि आखिर कब तक हम इस तरह व्यवस्था के हाथों का शिकार बनते रहेंगे। सालों से संविदा कर्मचारियों की समस्या को उठाया जाता रहा है, और आज एक कर्मचारी काम के दबाव में चल बसा तो उसको श्रद्धांजलि देने के लिए भी अधिकारियों के पास वक्त नहीं है। बस्तर के माओवादी इलाकों में रिपोर्टिंग करनी हो या फिर कश्मीर के आतंकवाद की, केदारनाथ की आपदा में जाना हो या फिर बिहार की बाढ़ में, संविदा पर रखा गया रिपोर्टर हर जोखिम में डीडी न्यूज को खबरें लाकर देता है और संस्थान उसको एक छोटा सा बीमा भी प्रदान नहीं कर सकता और जब उनका एक साथी आज गुजर गया तो अधिकारियों के पास उसके लिए दो मिनट से ज्यादा नहीं हैं। लिहाजा डीजी वीणा जैन को फिर से कक्ष में बुलाया जाए और अपना विरोध दर्ज कराते हुए श्री अविनाश के परिवार के लिए अभी घोषणा कराई जाए।
एक दल डीजी को बुलाने उनके चैंबर की ओर गया और वापस आकर बताया कि डीजी आ रही हैं और उनको पता नहीं था कि हम लोग उनसे बात करना चाहते थे। डीजी पुनः उपस्थित हुईं और उपस्थित लोगों की बात सुनने से पहले अपनी बात रखी- देखिए मुझे पता चला कि आप लोग मुझ से बात करना चाहते हैं। लेकिन इससे पहले कि अपनी बात रखें मैं कुछ कहना चाहती हूं। हम सब एक परिवार की तरह हैं और मैं हमेशा बातचीत के लिए उपस्थित हूं। ये दुखद हादसा हुआ है हम यहां श्रद्धांजलि के लिए एकत्रित हुए हैं। श्रद्धांजलि में ऐसी ही परंपरा है कि दो मिनट का मौन रखकर और प्रार्थना के उपरांत हम अपने स्थान पर लौट जाते हैं। अगर कोई मुद्दा उठाना है तो उसके लिए अलग से बैठक बुलाई जाती है। शोक सभा में मुद्दे नहीं उठाए जाते। इसीलिए मैं मौन के उपरांत चली गई, मेरा उद्देश्य आप लोगों की अवहेलना करना या आप से बचना नहीं था।
बातचीत के लिए तो मैं हमेशा तत्पर और उपलब्ध हूं। मुझे यहां आए हुए सिर्फ बीस दिन ही हुए हैं, इन बीस दिनों में मैंने सिस्टम को समझने का प्रयास किया है और आप सबको आश्वासन देना चाहती हूं कि हम जो भी करेंगे वह आपके हित में होगा संस्थान के हित में होगा। श्री अविनाश की मृत्यु से हम सभी को गहरा धक्का लगा है। हम सभी इससे दुखी हैं। लेकिन अगर आप सब इस मृत्यु पर इस तरह निगेटिविटी फैलाएंगे तो यह उचित नहीं है। हम बहुत पाॅजिटिव एप्रोच के साथ आप लोगों की समस्याओं पर काम कर रहे हैं। पर हमारे हाथ में भी बहुत कुछ नहीं है। हमारे हाथ प्रसार भारती बोर्ड से बंधे हुए हैं।
इस पर वहां उपस्थित लोगों ने मृतक के परिवार के लिए अपनी मांग रखी और प्रस्ताव पढ़कर डीजी को सुनाया। डीजी ने प्रस्ताव को यह कहते हुए लिया- मैं आज ही इस प्रस्ताव को प्रसार भारती को भेज दूंगी। लेकिन जहां तक मृतक की पत्नी को नौकरी और मुआवजे का सवाल है उस पर मेरे हाथ में कुछ नहीं है सबकुछ प्रसार भारती को करना है।
उपस्थित पत्रकारों ने फिर मांगें उठाई कि सरकार करोड़ों रुपया इधर-उधर फूंक देती है, आखिर एक सामूहिक बीमा लेने में क्या दिक्कत है, जबकि उसका कोई इतना बड़ा खर्च भी नहीं होगा। इस पर डीजी ने फिर आश्वासन दिया-मुझे थोड़ा वक्त दो। खैर, डीडी-न्यूज के सभी पत्रकार इस तरह अपनी मांगें उठाते रहे, डीजी आश्वासन देती रहीं और शोक सभा समाप्त हो गई। अंदर ही अंदर सबको पता था कि कुछ होने वाला नहीं है। सब अपने काॅन्टैªक्ट को लेकर चिंतित हैं, और श्री कुमार अविनाश को भी यही चिंता सता रही थी कि काॅन्ट्रैक्ट रिन्यू होगा कि नहीं, उनकी चिंता ज्यादा बढ़ गई और हार्ट अटैक आ गया। हालांकि बातों-बातों में डीडी-न्यूज की डीजी ये भी कह गईं कि प्राइवेट चैनल में दूरदर्शन से ज्यादा तनाव और शोषण है फिर भी वह एक बेहतर चैनल चला पाते हैं और डीडी-न्यूज कहीं ज्यादा पीछे है। उनका उद्देश्य चैनल की टीआरपी बढ़ाना है, बेहतर बनाना है। इस पर एक पत्रकार ने पीछे से कहा कि चैनल की टीआरपी भी तभी बढ़ेगी जब हमारी टीआरपी बढ़ेगी तो डीजी ने कहा कि भरोसा रखिए सब ठीक होगा। पीछ से आवाज आई- 10-12 से भरोसा ही कर रहे हैं। एक डीजी आता है आश्वासन देता है फिर दूसरा आ जाता है, यही क्रम चलता आ रहा है।
पूरी शोक सभा के दौरान कई बार लोगों के आंसू निकले, सब खुद को धिक्कार रहे थे, अपने आप पर शर्म महसूस कर रहे थे, अपनी बुजदिली पर ताने कस रहे थे, अपने साथी के लिए कुछ न कर पाने की कसक थी, इस हालत के लिए खुद को ही जिम्मेदार बता रहे थे, किसी को एकता का अभाव नजर आया तो किसी को चुप रहना गलती लग रहा था। डीडी-न्यूज लंबे समय से सबकुछ सामान्य नहीं है, यहां बहुत कुछ ऐसा चल रहा है जो अगर मीडिया में खुलकर बाहर आ जाए तो भूचाल आ जाए, लेकिन अभी हमारा साथी हमारे बीच नहीं रहा, इसलिए अभी सिर्फ इतना ही।
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित