Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

मीडिया वाले ड्रैगन को बैगन बनाकर भून ही रहे थे कि बीच में गैंगस्टर विकास दुबे आ गया!

अपराध के ‘रक्तबीजों’ को सींचता कौन है! हमारे देश का मीडिया अजब-गजब है। एक मुद्दे को चबाते हुए पचा नहीं पाता कि उसकी उल्टी कर दूसरे की तरफ लपक पड़ता है। ड्रैगन को बैगन बनाकर भून ही रहा था कि बीच में गैंगस्टर विकास दुबे आ गया..। प्राइम टाइम में सीधे श्मशान से अपने-अपने पैकेज के रैपर खोलने ही जा रहे थे कि..’सदी के महानायक’ कोरोना के साथ लीलावती अस्पताल पधार गए। कोरोना अब तेरी खैर नहीं, इसे ‘जंजीर’ में बाँधकर ‘शोले’ से जला देंगे बिग बी..से लेकर रेखा के रोमांस का ‘सिलसिला’ भी घुल गया। एंकर मोहतरमा रिपोर्टर से चीख-चीखकर पूछ रहीं थी..कि अब कोरोना की अगली स्ट्रैटजी क्या हो सकती है।

बंदरों के समान उस्तरे से अपनी ही नाक उतार रहे इन छिछोरों ने परदे पर गत्ते की तलवार भाँजने वाले लखटकिया (अरबटकिया) अभिनेता को सदी का महानायक घोषित कर दिया तो महात्मा गांधी, सुभाष बाबू, भगत सिंह, चंद्रशेखर और सरहद पर प्राण देने वाले परमवीर योद्घा क्या हैं..!

समझ में नहीं आता कि ब्रैकिंग सूचनाओं की यह सँडांध श्रोताओं/दर्शकों/पाठकों को किस नरक-कुंड में धकेलने को आमादा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

बहरहाल लेख का विषय यह नहीं बल्कि सिस्टम की सँडांध का है, जहाँँ विकास दुबे जैसे अपराधी पनपते हैं और मरने के बाद भी उनके रक्तबीज से बहुगुणित संख्या में पजाते रहते हैं।

अपने देश में नेता-गैंगस्टर-पुलिस के घालमेल की तुलना आप शराब-सोडा-कबाब से कर सकते हैं। नेता और अपराधी शराब में सोडे की तरह एक दूसरे में घुले हैं..। जो आज गैंगस्टर है कल नेता हो सकता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

दोनों की युति से चुनावी रथ का पहिया आगे बढ़ता है। पुलिस को इस काकटेल में स्नैक्स समझिए कभी-कभी कबाब की हड्डियां जायका खराब कर देती है..मुश्किल तभी होती है..।

विकास दुबे मुख्तार अंसारी, शहाबुद्दीन, अतीक अहमद जैसे रसूख को प्राप्त कर पाता कि कच्ची उमर में ही फँस गया..और जो तय है वही हुआ।

Advertisement. Scroll to continue reading.

राजनीति के अपराधीकरण या अपराध के राजनीतिकरण की ओर बढ़ते हुए विकास दुबे के मार्फत अपराध की राजनीति को भी समझते चलें..।

सोशल मीडिया मेंं गैंगस्टर की जाति को लेकर उबाल है। जिसका मूलस्वर यह कि ठाकुर जाति के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुन-चुनकर ब्राह्मण बाहुबलियों को निपटा रहे हैं। इन संदेशों की छुपी मंशा यह है कि उन्हें मुसलमान बाहुबलियों का संहार करना चाहिए.. ठाकुर-बाम्हन तो मिल-पटकर रह भी लेंगे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इसलिए बार-बार याद दिलाया जा रहा कि बिहार में डीएम की हत्या करने का आरोपी शहाबुद्दीन सही सलामत है, न उसका घर धंसाया, न मुठभेड़ हुई। अतीक और मुख्तार के जेल में रहने के बावजूद उनका कालासाम्राज्य वैसे ही चल रहा है।

अपने यहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही नहीं स्वच्छंदता भी है सो सामाजिक समरसता जाए चूल्हे-भाड़ में जिसको जो मन पड़ेगा..लिखेगा. जहर घुलता है तो और घुले।

Advertisement. Scroll to continue reading.

पिछले छह दशकों से अपराधी-पुलिस का साझा सहकार चलता रहा है, एक दूसरे का पूरक बनकर एक जैसी कार्यपद्धति अख्तियार करते हुए।

यह मैं नहीं कहता, साठ के दशक में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस आनंद नारायण मुल्ला ने एक फैसले में कुछ इसी तरह की तल्ख टिप्पणी की है – “मैं जिम्मेदारीपूर्वक सभी अर्थों के साथ कहता हूँ, पूरे देश में एक भी कानून विहीन समूह नहीं हैं जिसके अपराध का रिकार्ड अपराधियों के संगठित गिरोह पुलिस बल की तुलना में कहीं ठहरता हो”

Advertisement. Scroll to continue reading.

इस टिप्पणी को सरलीकृत करके आमतौर पर उल्लेख किया जाता है कि भारत में पुलिस अपराधियों के संगठित गिरोह से ज्यादा कुछ भी नहीं।

पुलिस तंत्र ऐसा स्वमेव बना या बनने के लिए विवश किया गया इसकी कहानी अँग्रेजों के समय से शुरू होती है। तब उसकी एक मात्र भूमिका स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को अपराधी बताकर दमन करने की थी। इसी पुलिस की लाठी से शेर-ए-पंजाब लाला लाजपतराय की हत्या हुई थी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

वोहरा, रुस्तम जी समेत पुलिस तंत्र में सुधार के लिए बने तमाम आयोगों और समितियों की सिफारिशों और संतुस्तियों के बाद भी पुलिस के प्रायः सभी मूल कानून और संहिताएं अँग्रेजों के जमाने की हैं।

आजाद भारत का सत्ता समूह गुलाम भारत के जमाने की पुलिस चाहता है ताकि विरोधियों को अपराधी बताकर उसी तरह दमन किया जाता रहे जैसा कि अँग्रेजों के जमाने में था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

विपक्ष जब सत्ता समूह बनकर आता है तो चूँकि उसे भी बदला भँजाना होता है इसलिए वह भी वैसा ही पुलिस तंत्र चाहता है..जो विरोधियों के लिए दमनकारी हो।

बहुत पहले एक नाट्यकृति पढ़ी थी। लेखक और नाटक का नाम विस्मृत है पर तथ्य और कथ्य आज भी याद है। नाटक रावण और मारीच पर केंद्रित था। रावण को सत्ताधारी दल का नेता और मारीच को स्थानीय गुंडा बताया गया था। रावण उसे राम (विपक्षी दल के नेता)को मारने की सुपारी देता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

विपक्षी दल के नेता के गुणों से प्रभावित गुंडा जब सुपारी लेने से मना करता है तब सत्ताधारी दल का नेता धमकाता है..कोई मरे या न मरे पर तेरा मरना तो तय है..इसलिए बेहतर है कि तू मेरे दुश्मन को मारते हुए मर या फिर मेरी पुलिस से मुठभेड़ में मरने के लिए तैय्यार रह।

यह नाटक साठ सत्तर दशक का है। अपराध राजनीति में प्रवेश ही पा रहा था..। राजनीति में पूँजीपतियों के धनबल, गैंगस्टरों के बाहुबल के बीच गठबंधन होना शुरू हो चुका था। इधर जयप्रकाश नारायण ने जितने भी दुर्दांत दस्युओं का आत्मसमर्पण करवाया था उनमेंसे ज्यादातर राजनीति में अपने भविष्य की तलाश में लग गए थे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मुंबई में हाजी मस्तान, वरदाराजन मुदलियार और करीमलाला जैसे स्मगलर अपराध में जातीय और क्षेत्रीय अस्मिता के प्रतीक बनकर उभर रहे थे। चुनावी फायदों के लिए विभिन्न दलों के नेता आधीरात कंबल ओढ़कर इनके ठिकाने आने लगे थे।

उत्तरप्रदेश और बिहार में हरिशंकर तिवारी और सूरजदेव सिंह जैसे कई बड़े सफेदपोश राजनीति की छतरी ओढ़ चुके थे। समाजवादी डकैतों को सोशल जस्टिस के लिए बीहड़ पर उतरे बागी बताने लगे थे..।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सन् सत्तर-पचहत्तर के आसपास राजनीतिक लोकतंत्र में अपराध की विषबेल का लिपटना शुरू हो चुका था..। इसके बाद मामला तेज रफ्तार से आगे बढ़ा।

नब्बे के आर्थिक उदारीकरण के दौर में प्रायः सभी तरह के अपराधी उद्योगपति बनने की होड़ में जुट गए, रियल स्टेट और ठेकेदारी इनके कब्जे में आती गई।

Advertisement. Scroll to continue reading.

राजनीति में अकूत धन की ताकत का निवेश चमत्कारी साबित होने लगा। और जब देखा कि बड़े-बड़े कतली गिरोहबाज विधायक, सांसद और मंत्री हैं, वही पुलिस उनको सैल्यूट कर रही है तो राजनीति अपराधियों के लिए सुरक्षित स्वर्ग बनता गया। विकास दुबे तो बड़ा कतली गैंगस्टर था, उसकी ख्वाहिश भी बड़ी थी। आज तो मोहल्ले का गुंडा भी पार्षदी अपनी जेब में रखता है।

इतिहास में अपराधियों की राजनीति में प्रवेश की इतनी फूलप्रूफ योजनाओं के दृष्टांतों के चलते आखिर विकास दुबे चूक कहाँ गया..?

Advertisement. Scroll to continue reading.

शहाबुद्दीन, मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद, रघुराज प्रताप सिंह, अमरमणि त्रिपाठी, ब्रजेश सिंह जैसों की तरह सांसदी, विधायकी भोगने की जगह सीधे ऊपर भेज दिया गया।

दरअसल नेता-पुलिस-माफिया के गठजोड़ का खेल साँप-सीढ़ी जैसे होता है। सभी एक दूसरे के कंधे को सीढ़ी की तरह इस्तेमाल करते हैं। इनमें छोटे से लेकर बड़े, सभी साइज के स्वार्थ होते हैं। विकास दुबे पुलिस की आपसी अदावत औ छोटे स्वार्थ की भेंट चढ़ गया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अपराध जगत कांटे से काँटा निकालने के लिए जाना जाता है। कभी अपराधी अपने प्रतिद्वंद्वियों को निपटाने के लिए पुलिस को हथियार बनाते हैं।

जैसे कि मुंबई का एनकाउंटरर पुलिस काँप दया नायक था(इस आरोप में जेल में भी रहा)। तो कभी पुलिस ही आपसी अदावत के चलते अपने पुलिस सहकर्मी को निपटाने के लिए गैंगस्टर की मदद लेती है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

कभी -कभी पुलिस और गैंगस्टर समझ भी नहीं पाते कि वे किसके मोहरे के रूप में इस्तेमाल हो रहे हैं। बिल्कुल फिल्मी कथानक..नहीं यूँ कहें कि सही कथानक फिल्मों के लिए..। विकास दुबे इसी कथानक का एक मोहरा बनकर पिट गया।

कहानी बड़ी साफ है..। चौबेपुर के दरोगा विनीत तिवारी की उस परिक्षेत्र के डीएसपी देवेंद्र मिश्रा से अदावत थी। विनीत तिवारी विकास दुबे का खबरी और कानूनी मददगार था। विनीत ने विकास के दिमाग में यह बैठाया कि देवेन्द्र मिश्रा तुम्हारा दुश्मन है और तुम्हें बर्बाद कर देगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

देवेंद्र मिश्रा वाकई विकास दुबे को बर्बाद करना चाहता था यह कहानी स्पष्ट नहीं, पर विकास ऐसा ही मानकर चल रहा था।

जिस विकास दुबे ने थाने में घुसकर एक राज्यमंत्री को गोली मारी हो, रसूख के चलते जल्दी ही अदालत से रिहा होकर फिर माफियागिरी में जुट गया हो, उसकी ताकत को जानते हुए मूरख से मूरख पुलिस अधिकारी भी सात आठ सिपाहियों के साथ मुठभेड़ करने नहीं जाएगा, यह जानते हुए कि सामने गैंग के रूप में समूची पलटन है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

यह भी संभव है कि देवेंद्र मिश्रा को यह फर्जी इनपुट दिया गया हो कि वह आज विकास दुबे को आसानी से पकड़ सकता है। कुलमिलाकर डबलक्रास जैसी स्थिति है।

अब इस घटना के प्रमुख किरदार विनीत तिवारी की तफसील से जाँच की जाए तो एक यह नया सूत्र सामने आ सकता है कि विनीत तिवारी को यह सब करने के लिए उस प्रतिद्वंद्वी ने प्रेरित किया हो जिसे विकास दुबे के बढ़ते राजनीतिक वर्चस्व से खतरा रहा हो।

Advertisement. Scroll to continue reading.

गाँव की प्रधानी और जिला पंचायत में विकास दुबे परिवार का कब्जा था, निश्चित ही विकास की यह ख्वाहिश रही होगी कि वह भी अन्य गैंगस्टरों की भाँति विधायक-सांसद बने।

इस कहानी की बुनियाद में भावी चुनाव की विधायकी और सांसदी का मुद्दा जुड़ा निकले तो यह कोई हैरत की बात नहीं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

उज्जैन में सरेंडर कर चुके विकास दुबे को यूपी पुलिस ने कैसे मारा..तरीका सही था या गलत यह पुलिस तंत्र व न्यायजगत के बीच बहस का विषय है लेकिन इस घटना ने यूपी की राजनीति को एक ट्विस्ट जरूर दिया है।

विकास की मौत के बाद राजनीति साँप की तरह पलट रही है। जातीय ध्रुवीकरण की कोशिशें शुरू हो चुकी हैं। कानपुर इलाके की वह पट्टी दबंग ब्राह्मणों के लिए जानी जाती है..विकास दुबे की रूह का चुनावी इस्तेमाल होगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

यूपी में विधानसभा के चुनाव सामने हैं और भाजपा सपा दो के बीच मुकाबला। भाजपा सरकार पर विकास दुबे के मारने का आरोप है। संभव है कि समाजवादी पार्टी इस मुद्दे को वैसे ही टेकओवर करे जैसे कि मिर्जापुर जीतने के लिए फूलनदेवी का किया था।

बात फिलहाल थमने वाली नहीं.. क्योंकि राजनीति तड़ित की तरह चंचल और भुजंग की भाँति कुटिल होती है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

लेखक जयराम शुक्ल मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं. संपर्कः 8225812813

Advertisement. Scroll to continue reading.
1 Comment

1 Comment

  1. Ashok

    July 17, 2020 at 3:09 pm

    वाह वाह . बहुत सुन्दर विशलेषण . बधाई

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement