नई दिल्ली। देश के लगभग सभी केंद्रीय और स्वतंत्र मज़दूर संघों का नए इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड बिल के खिलाफ 8 जनवरी को होने वाला बड़का चक्का जाम मोदी सरकार के लिए बड़ी दिक्कतें खड़ी करने वाला है। मजदूर संघों का दावा है कि इस प्रदर्शन में 25 कर्मचारी संगठन शामिल होंगे।
मतलब यह प्रदर्शन मोदी सरकार को हिला देने वाला होगा। इस प्रदर्शन की अगुआई मुख्य रूप से अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ के सी.एच वेंकटचलम और भारतीय ट्रेड यूनियनों के फ़ेडरेशन सीटू के महासचिव तपन सेन करने वाले हैं।
इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड बिल मज़दूर के साथ ही ट्रेड यूनियनों और लोकतंत्र के विरोध में भी बताया जा रहा है। ट्रेड यूनियनें मोदी सरकार का यह कदम उद्योगपतियों को शोषण के लिए संरक्षण देना और श्रमिकों को बंधुआ मज़दूर बनाने की ओर बता रही हैं।
भाजपा के मातृ संगठन आरएसएस का मजदूर संगठन बीएमएस ने 8 जनवरी को ट्रेड यूनियनों के चक्का जाम को समर्थन तो नहीं दिया पर यह संगठन 3 जनवरी को निजीकरण के विरोध में राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन करने जा रहा है।
हालांकि श्रम मंत्री संतोष कुमार गंगवार के अनुसार विधेयक का उद्देश्य औद्योगिक संबंधों को सुव्यवस्थित करना और व्यापार सूचकांक को आसान बनाना है। इस विधेयक में श्रम सुधार के हिस्से के रूप में श्रम मंत्रालय ने 44 श्रम क़ानूनों को चार लेबर कोड में तब्दील करने का फ़ैसला किया है, जिसमें मज़दूरी, औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति को समाहित किया गया है।
ट्रेड यूनियन के अधिकारियों के अनुसार इस बिल द्वारा मोदी सरकार ने फ़ैक्ट्रियों और कंपनियों के लिए रास्ता आसान करते हुए कर्मचारी यूनियनों के लिए हड़ताल पर जाना मुश्किल बना दिया है।
सरकार से नहीं लेनी होगी अनुमति : बिल में प्रस्ताव ये भी है कि मालिक किसी मज़दूर को किसी भी मुद्दत के लिए नौकरी दे सकता है और नौकरी ले भी सकता है। हालांकि 100 से अधिक कर्मचारियों वाली फ़र्मों को बंद करने और छंटनी के लिए सरकार से अनुमति की आवश्यकता होगी। लेकिन इसने राज्य सरकारों को इस सीमा को कम करने या बढ़ाने के लिए थोड़ा ढीलापन दिया है।
सरकार का प्रस्ताव यह था कि 100 कर्मचारियों से संख्या को 300 या इसके ऊपर किया जा सकता है। सरकार ने मज़दूर संघों के ऐतराज़ के बाद इसे इस बिल में शामिल नहीं किया पर सरकार की मंशा तो जाहिर हो चुकी है। आगे चलकर इस प्रस्ताव को शामिल किये जाने का पूरा अंदेशा है।
इस मामले में सीटू महासचिव तपन सेन का कहना है कि कल अगर इसमें सरकार बदलाव करे तो संसद में आने की ज़रूरत नहीं है़। सरकार अपनी मर्जी से एक ऑर्डर पास करके परिवर्तन कर सकती है। उनके अनुसार सरकार ने विधायिका की प्रक्रिया की धज्जियां उड़ा दी है।
इस आंदोलन में वामपंथी संगठनों की ट्रेड यूनियनों के साथ ही दूसरी अन्य ट्रेड यूनियनें भी सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। साथ ही विपक्ष में बैठे राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता भी इस प्रदर्शन में शामिल हो रहे हैं।
एनआरसी और सीएए के विरोध में चल रहे राष्ट्रव्यापी आंदोलन के कार्यकर्ताओं के भी इस आंदोलन में भाग लेने की पूरी उम्मीद है। वैसे भी महाराष्ट्र के बाद जिस तरह से झारखंड में केंद्र में काबिज भाजपा ने मुंह की खाई है उससे विपक्ष के हौसले बुलंद हो गये हैं।
8 जनवरी का आंदोलन ट्रेड यूनियनों ही नहीं बल्कि विपक्ष के लिए भी अपनी ताकत दिखाने का पूरा मौका है। इस आंदोलन में न केवल ट्रेड यूनियनें, किसान संगठन बल्कि छात्र संगठन भी बढ़-चढ़कर भाग लेने वाले हैं।
दरअसल देश में केंद्र सरकार की गलत नीतियों के कारण न केवल असंगठित क्षेत्र के मजदूर, निजी संस्थाओं के साथ ही सरकारी विभागों में काम करने वाले लोगों के साथ ही किसानों के सामने रोजी-रोटी का बड़ा संकट पैदा हो गया है। सबसे बड़ी समस्या किसानों के सामने आ खड़ी हुई है।
यह कहना गलत न होगा कि खेती-किसानी का संकट नहीं बल्कि यह संकट समूचे समाज और सभ्यता का संकट बन गया है। सभ्यता के मूल्यों में चौतरफा गिरावट, हिंसा, उन्माद, उत्पीड़न और अवैधानिकताओं को स्वीकृति मिलना इसी के प्रतिबिंबन हैं। मोदी सरकार विभिन्न कारणो से पैदा हो रहे लोगों के आक्रोश को भटकाने के लिए अब शिक्षा, शिक्षकों और विश्वविद्यालयों, किताबों और बौद्धिकता को अपने हमले का निशाना बनी रहीहै।
8 जनवरी को इन सबके चलते ही विभिन्न ट्रेड यूनियनों चक्का जाम का कार्यक्रम रखा है। इस प्रदर्शन में देश, समाज और सभ्यता को बचाने के लिए विनाशकारी नीतियों को बदलकर उनकी जगह जनहितैषी और देशहितैषी नीतियों को लागू करने की मांग की जाएगी।
यह जगजाहिर हो चुका है कि हाल के दिनों में भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़े सारे संकेतकों ने समूचे देश को चिंता में डाल दिया है। मैनुफैक्चरिंग की विकास दर का ऋणात्मक हो जाना, नागरिकों की मासिक खपत में करीब 100 रुपयों की कमी आ जाना, बेरोजगारी दर का तेजी से बढना और दैनिक उपभोग की चीजों के दाम में लगातार वृद्धि होते जाना इन सब बातों के उदाहरण हैं।
जीडीपी ने मोदी सरकार की पोल पूरी तरह से खोल दी है। यह गिरावट सरकार द्वारा अपनाई गई देशी-विदेशी कॉर्पोरेट-हितैषी नीतियों का नतीजा है। मोदी सरकार है कि इन विनाशकारी नीतियों के उलटने के बजाय संकट को और अधिक बढ़ा रही है।
हाल में रिजर्व बैंक के सुरक्षित भंडार में से पौने दो लाख करोड़ रुपये निकालकर ठीक इतनी ही राशि की सौगातें कॉर्पोरेट कंपनियों को दिया जाना इसी मतिभ्रम की नीतियों को आगे बढ़ाने का उदाहरण है।
देश की किसान आबादी की हालत और भी अधिक खराब होती जा रही है। करीब 18 करोड़ किसान परिवारों में से 75 प्रतिशत परिवारों की आय मात्र 5000 रुपये मासिक या उससे भी कम है। उस पर खाद, बीज और कीटनाशकों में विदेशी कॉर्पोरेट कंपनियों को मनमर्जी की कीमतें तय करने की छूट देकर और फसल खरीदी के सारे तंत्र को ध्वस्त करके पूरे देश में खेती को अलाभकारी बनाकर रख दिया गया है। देश की बड़ी ट्रेड यूनियनों के साथ ही भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति भी 8 जनवरी को बड़े स्तर पर आंदोलन करने जा रही है।
उधर हरियाणा में 26 दिसम्बर को दादरी रोडवेज डिपो के कर्मचारियों ने किलोमीटर स्कीम घोटाले की जांच करवाने सहित विभिन्न मांगों प्रदर्शन किया। अब उन्होंने ऐलान किया कि यदि उनकी मांगों को पूरा नहीं किया गया तो वह भी 8 जनवरी को रोडवेज बसों का चक्का जाम कर देंगे।
ज्ञात हो कि हाल ही में हरियाणा रोडवेज कर्मचारी तालमेल कमेटी द्वारा तय कार्यक्रम के अनुसार दादरी बस स्टैंड पर रोडवेज की सभी यूनियनों ने एकजुट होते हुए वर्कशाप परिसर में एक मीटिंग की। मीटिंग के बाद कर्मचारियों ने रोष प्रदर्शन करते हुए प्रदेश सरकार पर वादा-खिलाफी का आरोप लगाया। हरियाणा रोडवेज के प्रदर्शन में भी सर्व कर्मचारी संघ, सीटू, किसान सभा, आशा वर्कर्स यूनियन समेत कई विभागों के कर्मचारी शामिल हुए। कर्मचारियों नेताओं ने परिवहन मंत्री के किलोमीटर स्कीम के तहत 190 प्राइवेट बसें चलाने के ब्यान पर तीखी प्रतिक्रिया करते हुए रोड़वेज कर्मचारी प्राइवेट बसें चलाने का लगातार विरोध करने की बात कही है।
सोशल एक्टिविस्ट चरण सिंह राजपूत की रिपोर्ट.