वाराणसी। सत्ता का संरक्षण और सरपरस्त खादी धारियों के आगे पुलिस प्रशासन के नाकारात्मक रवैये ने दबंग भूमाफियाओ को कब्जे का किला फतेह करने की पूरी छूट दे रखी है।
कब्जे के इस खेल में पीड़ित पक्ष का दावा कहीं पीछे छूट जाता है। गुजरते वक्त के साथ आश्वासन और अपमान लिए पीड़ित पक्ष गुमनामी के अंधेरों में खो जाते हैं। दरअसल कब्जा करने वालों के पीछे एक संगठित गिरोह काम कर रहा होता है जिसका कोई न कोई सूत्र सीधे सत्ता से जुड़ा होता है।
आज अखबार में वरिष्ठ उपसंपादक के पद पर कार्यरत महिला पत्रकार सुमन द्बिवेदी अकेली दबंग भूमाफियाओं के कब्जे की शिकार नहीं बनी हैं। उसी मकान के भूतल पर रह रहे एक और परिवार के कमरे में ताला बंद कर घर के बाहर हाक दिया गया था। न्याय की फरियाद लिए पीड़ित ने स्थानीय चौकी भेलूपुर थाने से लेकर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के यहां खूब चक्कर काटे। सत्ता से जुड़े लोगों को अपनी आपबीती सुनाई। किसी ने अनसुनी कर दी तो किसी ने सबकुछ भूल जाने की सलाह दी।
खुद के साथ हुए कब्जे की कहानी अपनी जुबानी अखिलेश कुमार सिंह इस तरह सुनाते हैं- ”मेरे पिता के निधन के बाद 19 अप्रैल 20170 को श्रवण दास ने मेरे कमरे में ताला बंद कर दिया. मुझे बुरी तरह से मारा गया. मैंने थाना, पुलिस, अधिकारी, नेता सबको अपनी बात बताई. इसका परिणाम मुझे 28 जून 2017 को घर से बेदखल कर दिया गया।’
चर्चा तो इस बात की भी है कि इस मकान को बिल्डर को बेचने की तैयारी है। इसलिए रास्ते की बाधाओं को एक-एक कर हटाने के लिए फील्डिंग सजाई गई है। पहले अखिलेश और इस बार वरिष्ठ महिला पत्रकार सुमन द्बिवेदी को निशाने पर लिया गया है ताकि रास्ता साफ कर खरीद-फरोख्त के काम को अंजाम दिया जा सके।
बनारस से भास्कर गुहा नियोगी की रिपोर्ट.