सुभाष सिंह सुमन-
रिकवरी एजेंट की बदमाशी अभी बड़ी कॉमन चीज है. आस-पास देखेंगे तो बहुत सारे लोग इससे परेशान मिलेंगे. लोग परेशान होते हैं, उसका सबसे बड़ा कारण है लापरवाही और दूसरा बड़ा कारण है जानकारी का अभाव. आपको एक बात याद रखनी चाहिए कि आपने लोन लिया है, चोरी-डकैती नहीं की है. आपको किसी भी बैंक या एनबीएफसी ने लोन अपने हिसाब से डॉक्यूमेंट/सबूत लेकर दिया है. उस लोन का बाकायदा एग्रीमेंट हुआ है. सब कुछ लीगल है. तो बिना बात के अपराधबोध को त्यागना सबसे पहले जरूरी है. लोन दो टाइप के होते हैं. एक टाइप में होम लोन, कार लोन, प्रॉपर्टी या कोई सामान गिरवी रखकर लिया लोन आदि. इन्हें सिक्योर्ड लोन कहते हैं. ऐसे लोन के मामले में अगर आप किस्तें नहीं भर पाते हैं तो बैंक उसे आपके घर, आपकी कार या गिरवी रखे सामान से रिकवरी करते हैं. इनमें ज्यादा परेशानी नहीं होती है. परेशानी होती है पर्सनल लोन, क्रेडिट कार्ड ड्यू वगैरह के मामले में. इन्हें कहते हैं अनसिक्योर्ड लोन.
अब पूरे प्रोसेस को पहले समझ लीजिए. आपसे कोई किस्त मिस होती है, तो बैंक/एनबीएफसी से आपको फोन आने शुरू होंगे. आप बात करेंगे तो आपसे पूछा जाएगा कि आप कब तक पेमेंट कर सकते हैं. अब आप उस डेट पर भी पेमेंट नहीं कर पाते हैं. उसके बाद बैंक इस तरह के लोन अकाउंट को रिकवरी में डाल देते हैं. पहले बैंक अपने स्तर पर रिकवरी का प्रयास करते हैं. मामला हाथ से निकलने पर थर्ड पार्टी को दे देते हैं. थर्ड पार्टी के पास वैसे लोन जाते हैं, जिनमें बैंकों को लगता है कि वसूली उनकी क्षमता से बाहर है या उसके लिए बहुत प्रयास करने की जरूरत है. असली समस्या यहीं से शुरू होती है. रिकवरी का यह काम टेंडर के माध्यम से दिया जाता है. जिसकी बोली सबसे कम रही, उसे ठेका मिल जाता है. उसके बाद कर्ज लेने वाले को परेशान करना शुरू करते हैं. पहले आपको कॉल करेंगे, धमकाएंगे. ब्लैकमेल करने वाले मैसेज करेंगे, व्हाट्सऐप पर कॉल करेंगे. फिर आपके परिवार के लोगों को कॉल जा सकता है या आपके दोस्तों को कॉल कर सकते हैं. रिकवरी एजेंट फेसबुक तक खंगालते हैं और फेसबुक फ्रेंड्स को भी कॉल-मैसेज भेजने लगते हैं. कई बार ब्लैकमेलिंग का स्तर बहुत भयानक हो जाता है, जिसमें तस्वीरें मॉर्फ करना (अश्लील तस्वीरें बना देना) और उन्हें दोस्तों-परिजनों को भेजना शामिल है.
ये कोई नया-नया शुरू नहीं हुआ है. कई सालों से ऐसा चल रहा है. कोविड के बाद बढ़ गया है, क्योंकि उसके बाद पर्सनल लोन/क्रेडिट कार्ड लेने वाले बढ़ गए हैं और डिफॉल्ट भी बहुत बढ़ गया है. कोविड के बाद एक और चीज बदली है और वो है रिकवरी का तरीका. पहले यह काम ज्यादातर बड़े स्तर पर हो रहा था. जैसे बैंक ने किसी एक कंपनी को पूरे देश में रिकवरी का ठेका दे दिया. अब बैंक इसे लोकल लेवल पर डील करने लगे हैं. जैसे दिल्ली के किसी इलाके के लोन को रिकवर करने का ठेका उसी इलाके की कंपनी को मिल जाएगा. बिहार के किसी इलाके का काम उसी इलाके की कंपनी को मिल जाएगा. लोकल लेवल पर रिकवरी कंपनियां चलाने वाले लोग सभ्य समाज से थोड़े बाहर के लोग होते हैं- प्रॉपर्टी डीलर टाइप के, बदमाश टाइप के- जिन्हें आम लोग दबंग कहते हैं. अब ये लोकल दबंग होते हैं तो अपने एरिया में डराने-धमकाने या ब्लैकमेल करने में हिचकते नहीं हैं. ऊपर से इन्हें नियम-कायदे मालूम नहीं होते हैं, क्योंकि इन्हें कोई ट्रेनिंग नहीं मिली होती है. तो ये किसी भी हद तक जाकर रिकवरी करने का प्रयास करते हैं.
ये हो गए जेन्यूइन मामले. एक कम जेन्यूइन मामला बनता है ऐप बेस्ड लोन का. हजारों ऐप मार्केट में चल रहे हैं, जो 5 मिनट में लोन देने का झांसा देते हैं. आम लोग इनके झांसे में तुरंत आ जाते हैं. पैसे की जरूरत हुई, फटाफट ऐप इंस्टॉल किया, डॉक्यूमेंट मांगते गए और देते गए. ऐसे मामलों में 10 पर्सेंट बोलकर 50 पर्सेंट भी ब्याज वसूला जा सकता है. समय पर ईएमआई भरते रहने के बाद भी परेशान किया जा सकता है. लोन पूरा चुकाने के बाद भी ब्लैकमेलिंग हो सकती है. इसमें बहुत सारे चीनी ऐप इंवॉल्व हैं. इस तरह के कई सौ ऐप बंद किए गए हैं. हर महीने बंद किए जा रहे हैं, लेकिन इंटरनेट की दुनिया बड़ी और उलझी हुई है तो हर महीने नए-नए मार्केट में आ जाते हैं. साइबर ठगी करने वालों का गिरोह भी इस काम में एक्टिव है. ये तीसरा मामला होता है, जिसमें न तो बैंक कॉल कर रहा होता है और न ही उसके रिकवरी एजेंट, बल्कि उनके नाम पर साइबर ठग कॉल-मैसेज कर रहे होते हैं.
अब इन सब का निदान क्या है? यही जरूरी चीज भी है. तो सबसे पहले पर्सनल फाइनेंस के अनुशासन का पाठ पढ़ लीजिए. अगर आपने जेन्यूइन जरूरत के लिए कर्जा उठाया है और इरादा चुकाने का है, तो आपको ऐसी परेशानियां होंगी नहीं. बैंक आपको फंड अरेंज करने के लिए पर्याप्त समय देते हैं, बशर्ते आप बात कर रहे हों. कुछ मामले बेहद अप्रत्याशित हो सकते हैं, ऐसे में आपकी पूरी प्लानिंग गड़बड़ा सकती है. अगर आपकी स्थिति ऐसी दयनीय हो गई है कि किसी भी सूरत में किस्तें नहीं भर सकते तो इस स्थिति में अपने बैंक से बात करिए. बैंक के कॉल नहीं उठाना या नंबर बंद कर लेना समस्या का समाधान नहीं, बल्कि समस्या को बढ़ाना है. आप बैंक से बात करेंगे तो आपको लोन सेटल करने का विकल्प मिलेगा. इसमें आपको पूरा लोन नहीं भरना पडे़गा. आप अपनी परेशानियां बताएंगे तो उसे सुना और समझा जाएगा. बैंक खुद आपको बीच का रास्ता दे देगा, क्योंकि रिकवरी एजेंट को बैंक एनपीए अकाउंट औने-पौने दाम में ही बेचते हैं. उसमें बैंकों को घाटा ही होता है. इस तरह सारी समस्या यहीं समाप्त हो जाएगी.
अब मान लेते हैं कि ये काम नहीं हो पाया और अब अकाउंट रिकवरी एजेंट के पास चला गया. रिकवरी एजेंट आपको परेशान करने लग गए. रिजर्व बैंक का नियम कहता है कि थर्ड पार्टी के रिकवरी एजेंट को भी सारे कायदे मालूम होने चाहिए. बैंक यहां निश्चित तौर पर अच्छे से जांच नहीं करते हैं, लेकिन थर्ड पार्टी को टेंडर दे देते हैं. अब यहां आप अपने काम की कुछ बातें जान लीजिए.
1: रिकवरी एजेंट आपको सुबह 8 बजे के पहले या शाम के 7 बजे के बाद कॉल नहीं कर सकते हैं.
2: रिकवरी एजेंट आपको फोन कॉल पर धमकी, गाली-गलौज या ब्लैकमेलिंग नहीं कर सकते हैं.
3: रिकवरी एजेंट किसी भी तरह का असभ्य/अभद्र मैसेज नहीं कर सकते हैं.
4: रिकवरी एजेंट आपको सोशल मीडिया पर मैसेज नहीं कर सकते हैं.
5: रिकवरी एजेंट आपके किसी भी परिचित को फोन या मैसेज नहीं कर सकते हैं.
6: रिकवरी एजेंट आपके घर में जबरन नहीं घुस सकते हैं.
7: रिकवरी एजेंट आपके साथ आमने-सामने मारपीट या गाली-गलौज नहीं कर सकते हैं.
8: रिकवरी एजेंट बिना अपने गले में आईडी कार्ड लटकाए आपके घर नहीं पहुंच सकते है.
इनमें से कुछ भी होता है तो वह कानूनन अपराध है. ऐसी स्थिति में सबसे पहले एक बार रिकवरी एजेंट को रिजर्व बैंक के इन प्रावधानों के बारे में बता सकते हैं. उन्हें बात समझ आएगी, इसकी उम्मीद न के बराबर है. चूंकि रिकवरी एजेंट लोकल होंगे तो उनके लिए रिजर्व बैंक के गवर्नर से बड़ा तोप लोकल पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर होंगे, तो बिना किसी देरी के पुलिस स्टेशन जाएं. आप ऐसे मामलों में रिकवरी एजेंट पर कई सेक्शन में एफआईआर करा सकते हैं. जैसे पर्सनल स्पेस में घुस रहा है, सोशल मीडिया पर परेशान करना स्टॉक करने में आएगा. ये सब में 66 ई जैसे सेक्शन जैसे लग सकते हैं. घर आकर जबरदस्ती कर रहा है तो सेक्शन 447, 448 लग सकता है. मारपीट करने पर सेक्शन 323, एक्सटॉर्शन का सेक्शन 383, रॉन्गफुली रिस्ट्रेन करने का सेक्शन 341, क्रिमिनल इंटिमिडेशन का सेक्शन 503, 504 … ये सब सेक्शन भी मामले के हिसाब से लग सकता है. कर्ज लेने वाली महिला हुई तो आईपीसी 354 का मामला बन सकता है. कास्ट के हिसाब से एसएसी/एसटी और दलित एक्ट के सेक्शन लग सकते हैं. अगर घर में कोई बच्चा है और उसके सामने मारपीट या गाली-गलौज की जाती है तो पॉक्सो एक्ट भी लग सकता है. किसी वकील की मदद ले लेंगे तो और भी सेक्शन की जानकारी मिल जाएगी, पुलिस भी इसमें आपकी मदद कर सकती है. ये सब आपका अधिकार है और संविधान आपको देता है. आप जरूरत पड़ने पर इनका इस्तेमाल कर सकते हैं. पुलिस में शिकायत करना फर्स्ट ऐड/प्राथमिक उपचार है. उसके बाद आप अपने बैंक में शिकायत करिए. रिजर्व बैंक को शिकायत करिए. ये आप ओम्बड्समैन के पास कर सकते हैं. आपके साथ रिकवरी एजेंट कुछ भी गलत करते हैं तो उसकी जिम्मेदारी बैंक के ऊपर बनती है और रिजर्व बैंक ऐसे मामलों में बहुत सख्त कार्रवाई करता है. अगर अनअथॉराइज्ड लोन ऐप या साइबर ठगों का मामला रहा तो पुलिस में शिकायत से ही उसका समाधान हो जाएगा.
अगर आपने न लोन लिया है, न किसी के गारंटर बने हैं, लेकिन सिर्फ इस कारण आपको रिकवरी एजेंट कॉल कर रहा है कि डिफॉल्ट करने वाला आपसे किसी तरह से कनेक्टेड है, तो ऐसे में बिना सेकेंड थॉट के शिकायत करिए. डिफॉल्ट करने वाला आपका सगा भाई ही क्यों न हो, अगर आप गारंटर नहीं बने हैं तो कोई भी बैंक या रिकवरी एजेंट आपको कॉल या किसी भी तरह से संपर्क नहीं कर सकता है. बैंक ने आपके किसी जानकार या सगे-संबंधी को कर्ज देने से पहले आपसे पूछा नहीं था, तो आपकी किसी प्रकार की जिम्मेदारी या जवाबदेही नहीं बनती है. तो तुरंत रिकवरी एजेंट के खिलाफ शिकायत करिए. आज आप नजरअंदाज करेंगे तो कल किसी और के गले मुसीबत पड़ेगी.
अब सबसे जरूरी बात. आप कर्ज लेने से अपराधी नहीं हो जाते हैं, इसे याद रखिए. अगर कर्ज ले लिया है तो उसे चुकाने को प्राथमिकता में रखिए. कर्ज लेकर घी पीना ठीक बात नहीं है. अगर आप गलत शिकायत करेंगे तो आपको लेने के देने पड़ जाएंगे. कर्ज की वसूली का प्रोसेस अंत में कोर्ट ही जाएगा और वहां सबसे पहले आपकी औकात नापी जाएगी. अगर आपके पास किसी तरह का एसेट मिलता है, तो उससे पूरी रिकवरी की जाएगी, ब्याज और जुर्माना समेत. तो कानून से मिले अधिकारों को जानिए और पूरी जिम्मेदारी के साथ उनका इस्तेमाल करिए. ऐप वगैरह के मामले में भी जागरूक हो जाइए. ऐप कॉल लॉग, कॉन्टैक्ट, मैसेज, मैप-लोकेशन, कैमरा जैसे कई परमिशन मांगते हैं. कोई भी परमिशन ध्यान से दें.
इसे लिखने में प्रिय अनुज दिल्ली हाई कोर्ट के वकील Gagandeep Singh Bidhuri और बिहार पुलिस के इंस्पेक्टर (तकनीकी सेल प्रभारी) Pankaj Anand भाई की मदद ली गई है. तस्वीर सिर्फ बेहतर रीच के लिए लगाए हैं.
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