रेप पर बीबीसी द्वारा टेलीकास्ट की गई फिल्म पर मीडिया नैतीकता का सवाल उठा रहा है। नैतिकता का सवाल कौन खड़ा कर रहा है…जी टीवी के सुधीर चौधरी। वही सुधीर चिौधरी जो कारपोरेट जासूसी में जेल जा चुका है। हद हो गई। क्या भारतीय मीडिया खास तौर से टीवी वालों को नैतीकता का सवाल खड़ा करने का कोई मॉरल राइट्स है। इंडिया टीवी ने खुद अपने गिरेबान में झांक कर देखा है की वह कितना मॉरल है। चैनलों में टीआरपी की अंधी दौड़ के कारण जो कुछ परोसा जा रहा है, उसके चलते आज पूरा मीडिया कटघरे में है।
कैसे, जरा गौर फरमाइए। 2014 में टीवी चैनलों ने खबर चलाई कि वाराणसी में श्ममान पर लाशों की गिनती पर भी सट्टा लगाया जाता है! कुछ चैनलों पर काशी के मनिकर्णिका घाट पर दो लोगों को सट्टा लगाते दिखाया गया था। सट्टा इस बात पर लगाया जा रहा था कि एक घंटे में कितनी लाशें जल जाएंगी। सट्टेबाजी की खबर से हरकत में आई पुलिस ने छानबीन शुरू की तो मामला कुछ और ही निकला। जांच में पता चला कि लाशों पर सट्टेबाजी टीवी चैनलों के पत्रकारों द्वारा आयोजित थी। पुलिस के अनुसार न्यूज चैनल वाले दो लोगों को बहलाकर मणिकर्णिका घाट पर ले आए और उनसे लाशों की संख्या को लेकर सट्टा लगवाने लगे। इसकी रिकार्डिंग चैनलों पर दिखाई गई। इस मामले में स्थानीय पुलिस ने दो अज्ञात लोगों के खिलाफ चौक थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई और आधा दर्जन टीवी न्यूज चैनलों को सीआरपीसी की धारा 160 के तहत नोटिस भेजा था। क्या यही नैतिकता है?
वर्ष 2007 में सर्वोदय कन्या विद्यालय, दिल्ली की एक टीचर पर सेक्स रैकेट चलाने और छात्राओं को वेश्यावृत्ति के घिनौने धंधे में उतारने का आरोप एक न्यूज चैनल ने लगाया था। टीवी पत्रकार प्रकाश सिंह ने बाकायदा एक लड़की का स्टिंग भी किया, जिसमें उसने अपनी टीचर को सैक्स रैकेट की संचालिका बताया। चैनल पर खबर प्रसारित होते ही हड़कंप मच गया। बताते चलें कि उस समय सुधीर चौधरी ही चैनल प्रमुख थे। पुलिस जांच में मामला फर्जी और प्रायोजित निकला।
वाराणसी में 2007 में कुछ पटरी दुकानदार अपनी दुकानें हटाने की स्थानीय प्रशासन की कार्रवाई के विरोध में धरना-प्रदर्शन कर रहे थे। देश के दो बड़े प्रतिष्ठित चैनलों के पत्रकारों ने दुकानदारों को पुलिस प्रशासन पर दबाव बनाने के लिए जहर (कीटनाशक) खाने के लिए उकसाया। अपनी रोजी-रोटी को बचाने की खातिर गुरबर्ग क्षेत्र के दर्जन भर विकलांग दुकानदारों ने पत्रकारों की बात मानते हुए कैमरों के सामने कीटनाशक पी लिया। जहर खाने से छह दुकानदारों की मौत हो गई। वाराणसी के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक एसपी शिरोडकर ने दो स्थानीय व्यापारी नेताओं और दो टीवी चैनलों के रिपोर्टर के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज करवाया। जुलाई 2012 में असम में एक किशोरी के साथ हुई छेड़छाड़ की घटना के मामले में समाचार चैनल न्यूज लाइव के पत्रकार गौरव ज्योति नियोग को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। नियोग पर पब के बाहर किशोरी के कपड़े फाड़ने के लिए भीड़ को उकसाने का आरोप था। जब गुंडे लड़की की इज्जत तार-तार कर रहे थे, तब वो संवेदनशील मुद्दे को केवल फोटो अपोचुर्निटी और चैनल की टीआरपी बढ़ाने के रूप में उपयोग कर रहा था। आरुषी हत्याकांड में चैनलों ने नैतिकता की कौन सी सीमा का ख्याल रखा था।
सूची काफी लंबी है। वर्ष 2009 में ‘पेड़ न्यूज कर्मकांड’ हुए और 2010 में नीरा राडिया कांड। पेड न्यूज विवाद में खुलासा हुआ था कि मीडिया कवरेज की पैकेज डील होती है। वही नीरा राडिया कांड से पता चला कि देश और मीडिया को चलाने वाले कोई और हैं, जो राजनीति, नौकरशाही, न्याय व्यवस्था और मीडिया में मौजूद कठपुतलियों को नचा रहे हैं। पेड न्यूज और राडिया टेप प्रकरण के बाद मीडिया की विश्वसनीयता पर जो गहरा दाग लगा था, वह हाल के इस्सर कांड के बाद और गहरा गया है। ऐसे में बीबीसी पर नैतिकता-अनैतिकता की तोहमत उछालना कहां तक तर्कसंगत है।
लेखक संदीप ठाकुर से संपर्क sandyy.thakur32@gmail.com के जरिए किया जा सकता है.