पहले फुल कोर्ट रेफरेंस की नोटिस जारी हुई, बाद में रद्द की दी गयी सूचना…. जजों की नियुक्ति में मनमानी के खिलाफ प्रधानमंत्री मोदी को खत लिखने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस रंगनाथ पांडेय का विदाई समारोह (फुल कोर्ट रेफरेंस) रद्द कर दिया गया है। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रंगनाथ पांडेय को उनकी सेवानिवृत्ति पर आज अपरान्ह 3:45 बजे विदाई समारोह इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लखनऊ पीठ में होना था जिसकी आधिकारिक नोटिस वरिष्ठ निबंधक मानवेन्द्र सिंह के हस्ताक्षर से जारी की गई थी लेकन अचानक दूसरी नोटिस जारी करके कहा गया कि समारोह को “अप्रत्याशित परिस्थितियों” के कारण रद्द कर दिया गया है।
फुल कोर्ट रेफरेंस उच्च न्यायालय एक पारंपरिक समारोह है, जिसे रिटायर हो रहे जज के सम्मान के रूप में आयोजित किया जाता है। सभी न्यायाधीश, कर्मचारी और वकील इस समारोह में पहुंचते हैं। इसमें हाईकोर्ट के अलग-अलग विंग के वरिष्ठतम व्यक्ति द्वारा रिटायर हो रहे जज के सम्मान में भाषण दिया जाता है।
दरअसल जस्टिस पांडे ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में अपने ढाई तीन साल के कार्यकाल के दौरान एक बार भी उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति में न तो कॉलेजियम प्रणाली पर सवाल उठाया न ही भाई भतीजावाद पर सवाल उठाया। 4 जुलाई को अवकाश ग्रहण करने के तीन दिन पहले एक जुलाई को सीधे प्र्धानमंत्री नरेंद्र मोदी को न केवल पत्र भेजकर कॉलेजियम प्रणाली पर सवाल उठाया बल्कि पत्र को एक सर्वाधिक बिक्री का दावा करने वाले सत्ता के चाटुकार अख़बार को लीक कर दिया।
मजे की बात यह रही की इस पत्र में जस्टिस पांडे ने अपना बायोडाटा भी प्रधानमंत्री के पास भेज दिया जिससे पत्र में लगाए गए आरोपों की प्रथमदृष्टया हवा निकल गयी। जस्टिस पांडेय ने लिखा, ‘महोदय क्योंकि मैं स्वयं बेहद साधारण पृष्ठभूमि से अपने परिश्रम और निष्ठा के आधार पर प्रतियोगी परीक्षा में चयनित होकर न्यायाधीश और अब उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त हुआ हूं।’
जस्टिस पांडेय यहीं नहीं रुके बल्कि पत्र की शुरुआत में वे लोकसभा चुनावों में जीत के लिए मोदी को बधाई देना और परिवारवाद की राजनीति के खात्मे के लिए प्रशंसा करना नहीं भूले। अब सवाल उठ रहा है कि जब जस्टिस पांडेय बेहद साधारण पृष्ठभूमि से अपने परिश्रम और निष्ठा के आधार पर यहां तक पहुंचे हैं तो पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के कॉलेजियम और फिर बाद में उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम ने कैसे बिना सिफारिश, बिना भाई भतीजावाद और बिना एनजेएसी के उनका चयन पहले अस्थायी जज फिर स्थायी जज के रूप में कर लिया।
जानकारों की मानें तो राज्य सरकार में प्रधान सचिव (न्यायिक) का उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों के बीच बहुत अच्छा संबंध होता है, क्योंकि प्रधान सचिव (न्यायिक) बेंच और प्रदेश शासन के बीच समन्वयक का कार्य करता है। ऐसे में यदि उसकी नियुक्ति के पीछे बिटविन द लाइंस क्या है, इसे मैं पाठको के विवेक पर छोड़ दे रहा हूं।
जस्टिस पांडेय ने इसके बाद एक न्यायिक अधिकारी के रूप में अपने 34 सालों के अनुभव पर बात की। उन्होंने दावा किया कि कॉलेजियम सिस्टम के माध्यम से जजों की नियुक्ति केवल जातिवाद और भाई-भतीजावाद के आधार पर होती है। कॉलेजियम सिस्टम में मौजूदा मुद्दों को उठाते हुए उन्होंने कहा कि अगले जजों की नियुक्ति पूर्व जजों के साथ उनके रिश्तों पर निर्भर करती है। इसके परिणामस्वरूप, उस जज के न्यायिक कामकाज के भेदभावपूर्ण रहने पर प्रश्न उठता है। उन्होंने आरोप लगाया कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों के जजों की नियुक्ति बंद कमरों में और चाय के कप पर लॉबिंग और पक्षपात के आधार पर की जाती है। हालांकि, नियुक्त होने वाले जजों के नामों को केवल प्रक्रिया पूरी होने के बाद सार्वजनिक किया जाता है।
जस्टिस पांडे ने 1979 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और 1982 में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। उन्हें 2014 में जिला और सत्र न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। वे 2016 तक उत्तर प्रदेश सरकार के प्रधान सचिव (न्यायिक) के रूप में सेवा में रहे। अगले वर्ष इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में उनकी नियुक्ति हुई। उन्हें 17 सितंबर, 2018 को उच्च न्यायालय का स्थायी न्यायाधीश बनाया गया था।
प्रयागराज के वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार जेपी सिंह की रिपोर्ट.