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भारत रत्न और दल बदल की स्वीकारोक्ति, जाओ जहां जाना है की प्रतिक्रिया और धनखड़ को बुरा लगना

आज देखिये लोकसभा का अंतिम कार्य दिवस, प्रचारकों की सीधी-स्पष्ट प्रस्तुति और प्रयास तथा इंडियन एक्सप्रेस का खास अंदाज

संजय कुमार सिंह

आज के अखबारों में 17वीं लोकसभा के अंतिम कार्यदिवस की खबरें प्रमुखता से होनी थीं वही हैं और पहले ऐसा होता हो या नहीं, इस बार जो हुआ वह महत्वपूर्ण तो है ही उल्लेखनीय और याद रखने लायक भी है। कहने की जरूरत नहीं है कि उसकी रिपोर्टिंग भी वैसी ही है। द टेलीग्राफ की लीड का फ्लैग शीर्षक अगर, 17वीं लोकसभा भाजपा की तीखी चुनावी पिच पर समाप्त हो गई तो मुख्य शीर्षक से बताया गया है कि नारा था, जय श्री मोदी। अमर उजाला में लीड का शीर्षक है, विकसित भारत अब देश की आशा व आकांक्षा का सामूहिक संकल्प है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बोले – रिफॉर्म, परफॉर्म और ट्रांसफॉर्म की सामूहिक शक्ति से बदली तस्वीर। कहने की जरूरत नहीं है कि यहां सामूहिक शक्ति से मतलब जो हो, नारा जय श्री मोदी का था और निश्चित रूप से इस शीर्षक के साथ उल्लेखनीय है। अब प्रधानमंत्री ने कहा है तो खबर है ही। मामला प्रस्तुति का है और मैं वही रेखांकित करता हूं।

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मंदिर पर चर्चा

इस क्रम में प्रधानमंत्री ने लोकसभा में कहा और टाइम्स ऑफ इंडिया ने बताया है कि, संसद (का) मंदिर प्रस्ताव विरासत पर जश्न मनाने की एक संवैधानिक मंजूरी है। इंट्रो है, विपक्ष पर कटाक्ष किया, हर कोई इसमें सक्षम नहीं है। मुझे लगता है कि मणिपुर से लेकर अदाणी और पेटीएम पर चुप्पी भी सबके लिए संभव नहीं है। खासकर तब जब चुप रहने के लिए मनमोहन सिंह को मौन मोहन सिंह कहा जाता था। पर अभी वह मुद्दा नहीं है। द हिन्दू में यह खबर लीड नहीं है। वहां पाकिस्तान में सरकार का गठन लीड है। संसद की खबर का शीर्षक है, संसद ने प्रस्ताव पास कर मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की सराहना की। द हिन्दू ने अपनी इस खबर के साथ अयोध्या के मंदिर की फोटो छापी है जिसमें हेलीकॉप्टर से फूल गिराया जा रहा है और इसके कैप्शन का बोल्ड इंट्रो है, टेम्पल पिच। इसके अनुसार गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि इस (मंदिर) मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला भारत के धर्म निरपेक्ष चरित्र का परावर्तन है।

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धर्म निरपेक्ष चरित्र का परावर्तन

सबको पता है कि फैसले के समय संबंधित पूर्व मुख्य न्यायाधीश पर एक असामान्य आरोप लगा था, उससे संबंधित कई सवाल अनुत्तरित हैं और मुख्य न्यायाधीश को ईनाम देने की भी कार्रवाई हुई है। ऐसे में धर्म निरपेक्ष चरित्र का परावर्तन ‘विचार’ हो सकता है, तथ्य हो जरूरी नहीं है। फिर भी कहा है तो खबर है ही। हालांकि, प्रधानमंत्री ने जो कहा उसे हिन्दुस्तान टाइम्स ने लीड का मुख्य शीर्षक बनाया है तो द हिन्दू में वह सिंगल कॉलम की अलग छोटी सी खबर है। मुद्दा यह या वह खबर नहीं है। मुद्दा वह है जिसपर ज्यादातर अखबार अमूमन शांत हैं। जैसे 22 जनवरी को अधूरे मंदिर का उद्घाटन, फिर संसद के बजट सत्र को पहले ही शनिवार तक रखने- बताने की बजाय एक दिन के लिए बढ़ाया जाना। इसका कारण श्वेत पत्र बताया और समझा जाना और फिर जो हुआ वह सब भी। ऊपर के शीर्षक में आपने देखा कल मंदिर पर चर्चा हुई। भले विधिवत हुई पर कार्यकाल पहले ही शनिवार तक रखा जा सकता था। श्वेत पत्र की तरह या उसके साथ मंदिर पर चर्चा का एंजडा रखा जा सकता था और उसकी पूर्व घोषणा हो सकती थी। पर यह सब नहीं हुआ और खबरों में उसकी चर्चा भी नहीं है या कहीं छोटे में हो तो प्रमुखता से नहीं है। बेशक बहुमत चाहे तो बहुत कुछ हो सकता है। 

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संसद की संशोधित कार्यसूची

तथ्य यह है कि तृणमूल कांग्रेस के राज्य सभा सदस्य साकेत गोखले ने कल ट्वीट कर (एक्स पर) बताया था कि आज, मोदी सरकार कमजोर हो रही है और इस चौंकाने वाले आयटम के साथ फिर से संसद का मजाक बना रही है। जल्दबाजी में जारी की गई “संशोधित” कार्य सूची कल देर रात जारी की गई। इस तरह, मोदी सरकार ने आज राज्यसभा में निम्नलिखित पर चर्चा की घोषणा की है, “ऐतिहासिक राम मंदिर एवं प्राण प्रतिष्ठा”। क्या यह संसदीय चर्चा का विषय है? आख़िर इसमें “चर्चा” करने लायक क्या है? संसद को अब तेजी से हताश भाजपा और मोदी द्वारा एक चुनावी मंच के रूप में उपयोग किया जा रहा है। इससे संबंधित कार्यवाही और उसकी खबरें आप ऊपर पढ़ चुके हैं। आज के अखबारों में कल की संसद कार्यवाही और घोषणाओं से संबंधित एक और खबर प्रमुखता से है।

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सीएए लागू होगा

द टेलीग्राफ ने इसे लीड के साथ सिंगल कॉलम में छापा है, अमर उजाला में लीड के बराबर लीन कॉलम में हैं और नवोदय टाइम्स में लीड है। टेलीग्राफ में इस खबर का शीर्षक है, चुनाव आया, सीएए आया। अमर उजाला में शीर्षक है, चुनाव पूर्व लागू होगा सीएए, नहीं छिनेगी किसी की नागरिकता : शाह । उपशीर्षक है, बोले – यह देश का कानून …. मुस्लिम समुदाय को बेवजह भड़काया जा रहा है। नवोदय टाइम्स में शीर्षक है, सीएए में अब और देर नहीं। गृहमंत्री शाह ने कहा – नागरिकता दी जाएगी, किसी की छीनी नहीं जायेगी। इसके नियम लोकसभा चुनाव से पहले जारी किये जाएंगे। इन खबरों से आप समझ सकते हैं कि सरकार अपने काम के समय कितनी मुस्तैद रही है। इसमें भारत रत्न बांटना भूल जाना (या समय पर नहीं बांट पाना) शामिल है। उसपर आने से पहले बताऊं कि ऐसी सरकार की तारीफ लोकसभा और राज्यसभा के अध्यक्ष ने की।

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दोनों सदन प्रमुखों ने की प्रशंसा

इंडियन एक्सप्रेस की आज की लीड सबसे अलग और समग्र लग रही है। मेरा मतलब पूरे मकसद को समेटते हुए से है। मुख्य खबर का फ्लैग शीर्षक है, 17वीं लोकसभा की अंतिम बैठक में राम मंदिर पर चर्चा। मुख्य शीर्षक है, दोनों सदनों के अध्यक्षों ने कहा, “देश को एकजुट करने में नरेन्द्र मोदी ने बेजोड़ भूमिका निभाई”। मुझे लगता है कि मोदी सरकार कहा जाता तो भी बात वही होती और यहां इस मौके पर यही बात होनी चाहिये थी। पर जैसा टेलीग्राफ की लीड का शीर्षक है,खबर यही है। रिपोर्टर भी क्या करे। वैसे भी रिपोर्टर तो सिर्फ खबर देता है प्रस्तुति तो डेस्कवालों की होती है। इस लिहाज से इंडियन एक्सप्रेस में आज सिंगल कॉलम में फोटो के साथ छपी राज्यसभा अध्यक्ष के दुखी होने  खबर पक्षपात का बढ़िया उदाहरण है।

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आप जानते हैं कि सरकार ने भारत रत्न घोषित करने का अभियान छेड़ रखा है। तीन किस्तों में पांच हस्तियों को भारत रत्न घोषित किया जा चुका है जबकि एक साल में अधिकतम तीन ही लोगों को यह सम्मान देने का नियम रहा है। यह कोई वार्षिक सम्मान नहीं है और 65 वर्षों में 48 हस्तियों को ही दिया गया है और कुछेक बार तीन लोगों को दिये जाने के साथ लगातार कई साल तक नहीं दिये जाने का भी रिकार्ड है। मोदी सरकार ने भी 2019 के बाद यह सम्मान अब अपने कार्यकाल के अंतिम वर्ष में देना शुरू किया और सबसे पहले कर्पूरी ठाकुर को दिया तो लगा कि एक वर्ग विशेष को खुश करने के लिए वर्षों बाद कर्पूरी ठाकुर को याद किया गया है। उसके साथ ही बिहार में नीतिश कुमार का दल बदलना अपनी जगह अलग खेल है।

भारत रत्न की राजनीति

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इसके कुछ ही दिन बाद ट्वीटर पर भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी को यह सम्मान देने की घोषणा से लगा कि प्रधानमंत्री अपने दल के लोगों के दबाव में होंगे। यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि पात्रों के चयन पर एतराज न भी हो तो घोषणा का तरीका सम्मान के अनुकूल नहीं है। इसके बावजूद चौधरी चरण सिंह के पोते जयंत के दल बदल की खबरों के बीच फिर तीन लोगों को एक साथ भारत रत्न देने की घोषणा और ट्वीटर पर जयंत का “दिल जीत लिया” कहना सम्मान देना कम और मांगने पर दिया जाना या मांग कर लिया गया ज्यादा लगता है। यह मेरा निजी दृष्टिदोष हो सकता है। और यह मुद्दा नहीं है लेकिन इसके बाद संसद में जो हुआ उसका वीडियो कल सोशल मीडिया पर घूम रहा था और उसकी खबर अगर किसी और अखबार में पहले पन्ने पर नहीं है तथा इंडियन एक्सप्रेस में है तो उसकी भी राजनीति समझने लायक है। खासकर तब जब उपराष्ट्रपति धनखड़ जायज विरोध और सवाल से दुखी हों, उसे प्रमुखता मिले, फोटो छपे और सवाल करने वाले की वरिष्ठता, उम्र आदि को छोड़कर उसकी बात बाद में कही जाये अंदर फोटो भी नहीं लगाई जाये, तब।

मैं इसे गलत नहीं कह रहा, बता रहा हूं कि ऐसा हुआ है। जो हुआ वह इंडियन एक्सप्रेस की प्रस्तुति है और मैं उसी प्रस्तुति की चर्चा यहां करता हूं। आज इस खबर का शीर्षक है, विपक्ष ने भारत रत्न पर जयंत को बोलने देने पर उठाए सवाल उठाए तो धनखड़ ने कहा, दुख हुआ। इस खबर की शुरुआत होती है, राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को कहा कि वे “तकलीफ में” और “शर्मिंदा” हैं, यहां तक ​​​​कि इस्तीफा देने की भी सोच रहे थे। ऐसा आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी के दादा तथा पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिए जाने पर बोलने की अनुमति देने के उनके फैसले पर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के सदस्यों के सवाल उठाने के कारण था। अखबार ने यह भी लिखा है, धनखड़ ने विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे पर चरण सिंह और उनकी विरासत का अपमान करने का आरोप भी लगाया।

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मनमानी और जबरदस्ती विवाद

मेरा मानना है कि ऐसे मामलों की रिपोर्टिंग में अपना पूर्वग्रह दिख ही जाता है और जब वीडियो सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध है तो संक्षेप में बताने के जोखिम से बचना चाहिये। पर इन दिनों हो यही रहा है। वीडियो भी पक्ष विपक्ष द्वारा अलग शेयर किये जा रहे हैं और अपने आग्रहों के अनुसार खबर को सही-गलत, अच्छा-बुरा या बडा-छोटा माना जा रहा है जबकि कोशिश होनी चाहिये कि जनता को सब कुछ इस तरह बता दिया जाये कि उसे अपनी राय बनाने में सहूलियत हो। पर राय क्या बने इसमें सहूलियत मुहैया कराई जा रही है। धनखड़ से संबंधित इस खबर में लिखा है, अपने संक्षिप्त भाषण में उन्होंने (जयंत) चरण सिंह को सम्मानित करने के लिए भाजपा सरकार की सराहना की और इस बात पर अफसोस जताया कि इसे राजनीतिक चश्मे से देखा जा रहा है और इसे चुनाव तथा राजनीतिक गठबंधन से जोड़ा जा रहा है।

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खुद उन्होंने यह भी कहा, ”मैं मानता हूं कि मैं 10 साल तक विपक्ष के साथ था। मैंने कुछ समय पहले ही यहां (ट्रेजरी बेंच) बैठना शुरू किया है। मैंने पिछले 10 वर्षों में इस सरकार के कामकाज में चरण सिंह के आदर्शों की झलक देखी है,” उन्होंने कहा। यही नहीं, दल बदल स्वीकार करते हुए उन्होंने यह भी कहा, “केवल वही सरकार जो ज़मीनी हकीकतों से जुड़ी हो, ज़मीनी आवाज़ों को समझती हो और उन्हें मजबूत करती हो, ‘धरतीपुत्र’ चरण सिंह को भारत रत्न से सम्मानित कर सकती है।” खबर में यह भी लिखा है, उपराष्ट्रपति ने कहा, जब जयंत चौधरी बोल रहे थे तो जयराम रमेश क्या कह रहे थे? मैंने सुना है, ‘जाओ, जहां जाना है’ और इसपर उपराष्ट्रपति की टिप्पणी भी है।  

“दिल जीत लिया” और दल बदल

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स्पष्ट है कि पूरा मामला भारत रत्न की घोषणा के बाद देने वाली पार्टी से जुड़ जाना और उसके समर्थन व प्रशंसा का है और ऐसे में विपक्ष ने अगर इसकी आलोचना की या इसपर सवाल उठाया तो कुछ भी गलत नहीं किया। सच पूछिये तो अपना काम किया और इसमें चरण सिंह की आलोचना कहीं नहीं है भले उनके पौत्र के व्यवहार की हो या उसप प्रतिक्रिया हो। फिर भी उपराष्ट्रपति को बुरा लगना असल में कुछ भी करने का अधिकार मांगना है या कुछ भी करने के अधिकार की आलोचना पर नाराज होने का है। खरगे ने कहा था कि विशेषाधिकार का उपयोग न्यायोचित तरीके से किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में हेमंत सोरेन के मामले के लिए बनी विशेष पीठ से उनके वकील कपिल सिबल ने यही कहा था कि विशेषाधिकार का उपयोग किया जाना चाहिये पर पीठ ने मामले को सुने बगैर विशेषाधिकार का उपयोग नहीं करने का निर्णय किया और यहां किये जाने के बाद सवाल उठाने पर नाराज हो गये।

राजा का दरबार

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इससे पहले सोशल मीडिया पर घूम रहे एक वीडियो में गौरव गोगई लोकसभा को ‘राजा का दरबार’ बना दिये जाने जैसी बात कर रहे थे। इसपर लोकसभा अध्यक्ष ने उन्हें टोका था और सदन के फैसले पर सवाल नहीं उठाने के लिए कहा था। मुझे लगता है कि यह आत्मनिरीक्षण जैसा मामला है। बहुमत ‘राजा का दरबार’ बनाना चाहे, राजा जैसा व्यवहार करे तो कहा क्यों नहीं जाना चाहिये, उसपर चर्चा क्यों नहीं होनी चाहिये। चर्चा तो नहीं हुई संसद का क्या हाल था वह आज की खबरों से मालूम हुआ भले सरकारी पार्टी ने कुछ और कहा था अखबारों में वही या कुछ और छपा।

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