Shamshad Elahee Shams : भारतीय फ़ौज की शुचिता पर सवाल हरगिज न उठाना, बस उसके पराक्रम की प्रशंसा करना, सीमा पर वे बैठे हैं इसी लिए १२५ करोड़ भारतीय सुरक्षित हैं जैसे कूपमंडूप जुमले अक्सर सुनाई पड़ते हैं. स्वस्थ्य लोकतंत्र में सरकार के खजाने से पैसा प्राप्त करने वाली किसी भी संस्था से प्रश्न करना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी है. प्रश्न परिधि से फ़ौज को बाहर छोड़ना समाज को फ़ौजी अधिनायकवाद की तरफ मोड़ने का प्रस्थान बिंदु है. भारत जैसी सड़ी गली राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक व्यवस्था में भारतीय फ़ौज आखिर कैसे शुचिता का कोई मानक बन सकती है, यह मेरी समझ से बाहर है.
भारतीय फ़ौज के पास सिर्फ एक महकमा है जो फ़ौजी कामकाज से इतर है. सीएसडी कैंटीन. सीएसडी की कारगुजारिया अक्सर समाचार पत्रों की सुर्खिया बनती रहती है फिर देशभक्ति का पानी उन खबरों पर ऐसा पड़ता है कि पाठक/ नागरिको को उसके अंत का पता ही नहीं चलता. भारतीय व्यवस्था की एक नियामक संस्था कैग ने इन स्टोर्स के आडिट की अनुशंसा की थी जिसका विरोध भारतीय फ़ौज ने ही कस कर किया था. अगर ये दूध के धुले थे तब इन्हें विरोध की जरुरत क्यों पडी? इन्हें स्वयं ही सरकार से आग्रह करना चाहिए था कि वह जब चाहे आडिट करें.
क्या हमें मालूम नहीं कि इन्ही कैंटीन के एक ब्रिगेडियर स्तर के इन्चार्ज अधिकारी की गिरफ्तारी हो चुकी है, सीबीआई के छापे इन्ही कैन्टीन पर पड़ चुके है. क्या हमें मालूम नहीं है सस्ती शराब खरीद कर एक जवान जब अपने घर लौटता है तब उसका घर एक शराब का मिनी ठेका बन जाता है? सी एस डी इतना बड़ा स्कैम है जिसमे तलवारों और अशोकलाट का निशान चिपकाने वालों से लेकर दो तीन फीतियों वाले तक अपने अपने कद के अनुरूप भ्रष्टाचार में लिप्त हैं.
जानी वाकर शराब बनाने वाली एक विदेशी कंपनी ने २०११ में चले एक मुकदमे में अमेरिकी न्यायालय में बाकायदा यह माना था कि उसने शराब बेचने के ठेके प्राप्त करने के लिए २००३ से २००९ के बीच भारत सहित दुनिया के कई देशो में २.७ मिलियन डालर रिश्वत दी थी. इस रकम में १.७ मिलियन डालर का भुगतान भारतीय फ़ौज के अधिकारियों को दिया गया था. जब विदेशियों तक को ये नहीं छोड़ते तो देसी पूंजीपति इनके दामाद नहीं लगते कि उनका उत्पाद ये फ्री में बेच दे. देशभक्ति की बीमारी का बुखार यदि उतर जाए तो गौर करें.. इन्ही बड़े-बड़े आदमियों की बड़ी-बड़ी कारे, घर और रौबदार चेहरे कितने बदसूरत नज़र आयेंगे? हाँ, हथियारों की खरीद फरोख्त, उनकी जांच, परीक्षण और संस्तुतियों की फाइल्स कब कैसे कहाँ से चलती होगी, इसका अंदाजा पुराना जानी सुरेश नंदा जरूर बता देगा. नंदा का पता है न कौन था?
एनआरआई शमशाद एलही शम्स की एफबी वॉल से.
sanjeev kumar
October 10, 2016 at 4:25 pm
aakhir ye janab chahte kya hai, jab is waqt Indian fauj ki sabhi jagah tarif ho rahi hai.