पता चला है कि भाष्यम श्रीनिवासन नहीं रहे। इनका जाना वैसे ही है जैसे कुछ साल पहले टंडनजी का जाना रहा या चाची का जाना। कौन थे ये शख्स? बनारस में बीएचयू से लेकर अस्सी चौराहे के बीच कभी भी और कहीं भी अचानक दिख जाने वाले भाष्यम उन सैकड़ों लोगों में एक थे जो बनारस को बनारस बनाते हैं।
पिछले साल लोकसभा चुनाव के पहले शायद 8 मई का दिन था जब इन्होंने अपने हाथों से लिखा एक मोदी विरोधी परचा मुझे अस्सी पर पकड़ाया था और कुछ बुदबुदाते हुए निकल लिए थे। भाष्यम कौन थे, क्या थे, यह बेहतर जानना हो तो Prof Anand Kumar से संपर्क करें। हो सकता है वे कुछ बोलने से सकुचाएं। Aflatoon जी और बनारस के कुछ पुराने लोग इनके अतीत पर कुछ रोशनी डाल सकते हैं।
बनारस में मुझे पहचानने वाले शायद एकाध लोग होंगे, लेकिन मैं सैकड़ों को पहचानता हूं। ऐसे चेहरे मुझे आश्वस्त करते हैं कि बनारस अब भी काम भर का बच रहा है। मेरी चिंता बस इतनी है कि भाष्यम जैसे लोग खत्म होते जा रहे हैं। मुझे डर है कि किसी दिन मैं बनारस गया तो कहीं ऐसा न हो कि गोदौलिया से लंका के बीच कोई पहचाना हुआ चेहरा ही न दिखे।
अभिषेक श्रीवास्तव के एफबी वाल से